Omicron की दहशत के बीच आई Good News, तो क्या कोरोना का खात्मा करेगा ये वेरिएंट?
दक्षिण अफ्रीका में कोरोना को लेकर किए गये ताजा स्टडी में पाया गया है कि, कोरोना की चौथी लहर के दौरान ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित मरीजों को डेल्टा से संक्रमित मरीजों के मुकाबले 73 फीसदी कम अस्पतालों में भर्ती कराया गया।
वॉशिंगटन, जवनरी 04: कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट रिकॉर्ड रफ्तार से पूरी दुनिया में फैल रहा है और पिछले एक हफ्ते में पूरी दुनिया में एक करोड़ नये मरीज कोरोना वायरस से संक्रमित मिले हैं और नये अध्ययनों से पता चला है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट पूरी दुनिया में संक्रमण के हर रिकॉर्ड को तोड़ सकता है, लेकिन क्या ओमिक्रॉन वेरिएंट ही कोरोना वायरस महामारी को दुनिया से खत्म कर देगा या ओमिक्रॉन वेरिएंट कोरोना वायरस को इतना कमजोर कर देगा, कि इंसानों पर इसका असर नाममात्र ही रह जाएगा? वैज्ञानिकों ने स्टडी के दौरान बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल की हैं।
अमेरिकी वैज्ञानिक का बड़ा दावा
दुनिया के कई देशों में रिसर्च के बाद अब इस बात की पूरी तस्दीक हो चुकी है, कि कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट काफी तेजी से फैलता है, लेकिन ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित मरीज इतने सीरियस हालत में नहीं पहुंचते हैं, कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाने की नौबत आए। कुछ वैज्ञानिकों ने तो दावा कर दिया है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट ये साबित कर रहा है, कि कोरोना महामारी अब कमजोर पड़ चुका है। सैन फ्रांसिस्को के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और एंटीबॉडी वैज्ञानिक डॉ. मोनिका गांधी ने ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर बहुत बड़ा दावा किया है। डॉ. मोनिका गांधी ने कहा है, ओमिक्रॉन वेरिएंट कोरोना वायरस को ही खत्म कर सकता है।
कोरोना को खत्म कर देगा ओमिक्रॉन?
डॉ. मोनिका गांधी ने दावा करते हुए कहा कि, ''वायरस हमेशा हमारे साथ रहने वाला है, लेकिन मेरा मानना है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट इतनी ज्यादा एंटीबॉडी का कारण बन जाएगा, कि ये कोरोना महामारी को ही खत्म कर देगा।" आपको बता दें कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट दक्षिण अफ्रीका में एक महीने पहले ही खोजा गया था, और विशेषज्ञों ने चेतावनी भी दी है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट कभी भी अपनी स्थिति बदल सकता है और विश्व को बहुत बड़ी परेशानी में डाल सकता है। वहीं, लेकिन पिछले दिनों ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर जुटाए गये आंकड़ों से पता चला है कि, कई बार म्यूटेट करने और काफी ज्यादा लोगों में फैलने की वजह से वायरस का असर अब लोगों पर काफी कम होने लगा है।
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ओमिक्रॉन पर मिली अब ठोस जानकारी
दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस को लेकर किए गये सबसे ताजा स्टडी में पाया गया है कि, कोरोना वायरस की चौथी लहर के दौरान ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित मरीजों को डेल्टा से संक्रमित मरीजों के मुकाबले 73 फीसदी कम अस्पतालों में भर्ती करवाना पड़ा है और दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने कहा है कि, इस बार जितने आंकड़ों के आधार पर उन्होंने स्टडी की है, वो काफी ठोस हैं। केप टाउन विश्वविद्यालय के एक इम्यूनोलॉजिस्ट वेंडी बर्गर ने कहा कि, "डेटा अब काफी ठोस है कि अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या काफी ज्यादा कम हैं।"
ओमिक्रॉन को लेकर क्यों थी काफी चिंता?
ओमिक्रॉन वेरिएंट जब दक्षिण अफ्रीका में पहली बार मिला था, तो कोरोना के इस वेरिएंट ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था और वैज्ञानिकों को भी इस वेरिएंट को लेकर काफी ज्यादा चिंता था और उसके पीछे सबसे बड़ी वजह इस वायरस का काफी ज्यादा म्यूटेंट होना था और इस वायरस में कई स्पाइक प्रोटीन वैज्ञानिकों को मिले थे, लिहाजा ये वायरस काफी तेजी से लोगों को संक्रमित करने के लिए काफी था और ऐसा हो भी रहा है। स्पाइक प्रोटीन के जरिए ही वायरस इंसानों की कोशिकाओं में दाखिल हो पाता है और वायरस को लेकर शुरूआत में यही पता चल रहा था, कि वायरस पर वैक्सीन काफी कम असरदार है, जो सही भी है, लिहाजा ओमिक्रॉन वेरिएंट ने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को बेचैन कर दिया था, लेकिन अब ओमिक्रॉन का काफी ज्यादा बार म्यूटेंट होना ही इस वायरस के खात्मे के लिए जिम्मेदार बन गया है।
आखिर कम विषैला कैसे है ओमिक्रॉन?
वैज्ञानिकों ने रिसर्च के आधार पर कहा है कि, ऐसा प्रतीत होता है कि कई कारकों ने ओमिक्रॉन वेरिएंट को कोविड-19 की पिछली लहरों की तुलना में कम विषैला या गंभीर बना दिया है। एक कारक फेफड़ों को संक्रमित करने की वायरस की क्षमता है। कोविड संक्रमण आमतौर पर नाक में शुरू होते हैं और गले तक फैलते हैं। एक हल्का संक्रमण इसे ऊपरी श्वसन प्रणाली से ज्यादा दूर जाने नहीं देता है, लेकिन अगर वायरस फेफड़ों तक पहुंचता है, तो आमतौर पर अधिक गंभीर लक्षण होते हैं।लेकिन पिछले सप्ताह में पांच अलग-अलग रिसर्च में ये साबित हो गया है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट, दूसरे वेरिएंट्स की तरह फेफड़ों को आसानी से संक्रमित नहीं करता है। जापान और अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक संघ ने रिसर्च के आधार पर इसकी पुष्टी कर दी है, और हांगकांग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च रिपोर्ट का समर्थन भी किया है।
फेफड़ों पर कम डालता है असर
ये रिसर्च जापानी और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक बड़े संघ द्वारा ऑनलाइन प्री-प्रिंट के रूप में जारी किया गया है, जिसमें ओमाइक्रोन संक्रमित हैम्स्टर और चूहों के फेफड़ों के ऊपर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है, जिसमें पता चला है कि, ओमिक्रॉन ने चूहों के फेफड़ों का ना के बराबर नुकसान पहुंचाया है और हैम्स्टर के फेफड़ों पर भी इसका काफी कम असर हुआ है और जितना असर फेफड़ों पर हुआ है, उससे मरने की संभावना काफी ज्यादा कम होती है। बेल्जियम से बाहर किए गए एक अन्य अध्ययन में सीरियाई हैम्स्टर्स में इसी तरह के परिणाम मिले, जिन्हें वायरस के पिछले वेरिएंट्स के दौरान काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा था, लेकिन ओमिक्रॉन वेरिएंट ने उनका नुकसान काफी कम पहुंचाया है।
हांगकांग में भी फेफड़ों पर रिसर्च
हांगकांग में वैज्ञानिकों ने सर्जरी के दौरान एकत्र किए गए मरीजों से फेफड़ों के ऊतकों के नमूनों की एक छोटी संख्या का अध्ययन किया है, जिसमें वैज्ञानमिकों ने पाया है कि, दूसरे वेरिएंट्स की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट काफी कम तेजी से फैल रहा है। वैज्ञानिक बर्गर ने कहा कि, वायरस में इस बदलाव की संभावना इस बात से है कि, वायरस की शारीरिक रचना कैसे बदल गई? उन्होंने कहा कि, "यह कोशिकाओं में जाने के लिए दो अलग-अलग मार्गों का उपयोग करता था, और अब स्पाइक प्रोटीन में सभी परिवर्तनों के कारण यह उन मार्गों में से एक ही को पसंद कर रहा है"। उन्होंने कहा कि, "ऐसा लगता है कि फेफड़ों के बजाय ऊपरी श्वसन पथ के जरिए ये वायरस फेफड़ों को संक्रमित करना ज्यादा पसंद करते हैं और इसका मतलब ये हुआ कि, ये वायरस कम गंभीर संक्रमण पैदा करता है, लेकिन चूंकी ये सांस से अंदर जाता है, लिहाजा इससे दूसरों के संक्रमित होने का खतरा काफी ज्यादा होता है।
फिर वैक्सीन से कैसे बचता है ओमिक्रॉन?
वैज्ञानिकों ने स्टडी के दौरान पाया है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट वैक्सीन या एंटीबॉडी से बचने में काफी माहिर है। रिसर्च में पचा टला है कि, ओमिक्रॉन वेरिएंट शरीर के अंदर पहली रक्षा पंक्ति को तो आसानी से तोड़ देता है, लेकिन ये शरीर के अंदर दूसरी रक्षा पंक्ति को नहीं तोड़ पाता है। इसका मतलब इस तरह से समझिए, कि हमारे शरीर में मौजूद दो रक्षा पंक्तियों में एक टी-सेल है और बी-सेल है। टी-सेल उस वक्त किसी वायरस पर हमला करती है, जब एक बार वायरस शरीर के अंदर पहुंच जाता है और शरीर के अंदर मौजूद एंटीबॉडी उस वायरस को शरीर को संक्रमित करने से रोक नहीं पाती है और उस वक्त टी-सेल उस वायरस पर हमला करती हैं।
वैज्ञानिक बर्गर और सहकर्मियों ने हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह दिखाने के लिए कोविड रोगियों से व्हाइट ब्लड सेल्स का उपयोग किया और इसमें पता चला कि, पिछले वेरिएंट्स की तुलना में टी-सेस्ल ओमिक्रॉन के खिलाफ प्रतिक्रिया करने के बाद भी करीब 70 से 80 प्रतिशत कर बचे रहते हैं। इसका मतलब है कि जिन लोगों को या तो टीका लगाया गया है, या जिन्हें पिछले 6 महीनों में कोविड संक्रमण हुआ है, उनके लिए यह संभावना है कि उनकी टी-कोशिकाएं ओमिक्रॉन वेरिएंट को पहचान सकती हैं और अपेक्षाकृत जल्दी इससे लड़ सकती हैं।