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ब्राज़ील में कोविड-19 की वजह से बच्चों की इतनी मौतें क्यों हो रही हैं?

कोरोना वायरस संक्रमण से अब तक बच्चों को सुरक्षित समझा जा रहा था लेकिन ब्राज़ील के आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं.

By नतालिया पासारिन्यो और लुइस बर्रोचो
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ब्राज़ील में कोविड-19 की वजह से बच्चों की इतनी मौतें क्यों हो रही हैं?

कोरोना वायरस महामारी को शुरू हुए एक साल से अधिक का समय हो चुका है और इस समय ब्राज़ील में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है.

ऐसे साक्ष्य हैं जो बताते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण से किशोरों और युवाओं की मौत कम ही होती है लेकिन ब्राज़ील में अब तक इस वायरस के कारण 1,300 बच्चों की मौत हो चुकी है.

एक डॉक्टर ने जेसिका रिकर्ते के कोरोना से संक्रमित एक साल के बेटे को यह कहते हुए देखने से मना कर दिया था कि उसके लक्षण इस वायरस के प्रोफ़ाइल से मिलते जुलते नहीं हैं. दो महीने बाद उस बच्चे की इस वायरस से मौत हो गई.

पेशे से शिक्षक जेसिका ने दो साल तक लगातार फ़र्टिलिटी का इलाज कराया था और उसमें नाकाम होती रही थीं लेकिन आख़िरकार वो गर्भवती हो गईं.

वो कहती हैं, "उसका नाम रोशनी से जुड़ा हुआ था. वो हमारी ज़िदंगी में एक प्रकाश की तरह था. उसने हमें वो ख़ुशी दिखाई जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी."

उन्होंने अपने बेटे लूकस में सबसे पहले भूख न लगने की समस्या को देखा क्योंकि वो पहले अच्छी तरह से खाना खाता था.

जेसिका को पहले लगा कि दांत निकलने की वजह से ऐसा है लेकिन लूकस की गॉडमदर जो उनकी नर्स हैं उन्होंने कहा कि उसके गले में ख़राश हो सकती है लेकिन उसके बाद लूकस को बुख़ार शुरू हो गया और सांस लेने में दिक़्क़त होने लगी.

कोविड टेस्ट ना कराने से बढ़ीं मुश्किलें

जेसिका उसको अस्पताल लेकर गईं और कोविड टेस्ट करने के लिए उन्होंने कहा.

जेसिका कहती हैं, "डॉक्टर ने ऑक्सिमीटर के ज़रिए ऑक्सीजन चेक किया तो उसका स्तर 86% था. अब मैं जानती हूं कि यह साधारण नहीं है."

लेकिन उसे तेज़ बुख़ार नहीं था तो डॉक्टर ने कहा, "चिंता करने की बात नहीं है और कोविड टेस्ट की ज़रूरत नहीं है. शायद यह गले में ख़राश की मामूली दिक़्क़त है."

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डॉक्टर ने जेसिका से कहा कि कोविड-19 बच्चों में बेहद दुर्लभ है और उसने कुछ एंटिबायोटिक्स दवाइयां देकर उन्हें घर भेज दिया. इन संदेहों के बावजूद लूकस का प्राइवेट जगह से टेस्ट कराया जा सकता था.

जेसिका कहती हैं कि 10 दिन के एंटिबायोटिक्स के कोर्स के अंतिम दिन तक उसके लक्षण कम होते चले गए लेकिन उसकी थकान बरक़रार रही जिसके कारण उन्हें कोरोना वायरस की चिंता होने लगी.

वो कहती हैं, "मैंने कई वीडियो उसकी गॉडमदर, अपने परिजनों, मेरी सास और कई लोगों को भेजे तो उनका कहना था कि मैं इसके बारे में बहुत ज़्यादा ही सोच रही हूं. उन्होंने मुझे न्यूज़ देखने से मना किया क्योंकि उनका मानना था कि यह मुझे भ्रम में डाल रहा है. लेकिन मैं जानती थी कि मेरा बेटा ख़ुद से सांस नहीं ले पा रह है."

यह मई 2020 की बात है जब कोरोना वायरस महामारी लगातार फैल रही थी और उत्तर-पूर्व ब्राज़ील के तंबोरिल के सिएरा शहर में दो लोगों की मौत हो चुकी थी.

"हर कोई एक दूसरे को जानता था और पूरा शहर सदमे में था."

जेसिका के पति इसराइल को चिंता थी कि दूसरे अस्पताल में जाने पर संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाएगा और जेसिका और लूकस वायरस से संक्रमित हो जाएंगे.

लेकिन कई सप्ताह तक लूकस और अधिक सोने लगा तो आख़िरकार तीन जून को खाना खाने के बाद लूकस को लगातार उल्टियां होने लगीं.

जेसिका स्थानीय अस्पताल में गईं और उन्होंने उसका कोविड टेस्ट कराया.

लूकस की गॉडमदर जो वहां पर काम करती थीं उन्होंने बताया कि लूकस का कोविड टेस्ट पॉज़िटिव आया है.

अधिकतर बच्चों में MIS की स्थिति

जेसिका कहती हैं कि उस समय अस्पताल में रिसस्क्युरेटर (कृत्रिम तरीक़े से सांस देने वाली मशीन) तक नहीं था.

लूकस को सोबराल के पेडिएट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट में भेजा गया जो वहां से दो घंटे की दूरी पर था. वहां पर पता चला की लूकस को मल्टी-सिस्टम इनफ़्लेमेट्री सिंड्रोम (MIS) की शिकायत है.

यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें वायरस के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता चरम पर होती है जिसके कारण महत्वपूर्ण अंगों में सूजन आ जाती है.

विशेषज्ञ कहते हैं कि यह स्थिति छह सप्ताह से अधिक आयु के बच्चों में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद आ सकती है लेकिन यह बेहद दुर्लभ है.

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लेकिन साओ पाउलो विश्वविद्यालय की महामारी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ातिमा मारिन्हो का कहना है कि उन्होंने महामारी के दौरान अब तक MIS के सबसे अधिक मामले देखे हैं लेकिन यह सभी मौतों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है.

लूकस को जब अस्पताल में भर्ती किया गया तो जेसिका को उसी कमरे में रहने की अनुमति नहीं थी. उन्होंने अपनी ननद को अपने पास बुला लिया.

वो कहती हैं, "हम मशीन की बीप की आवाज़ सुन सकते थे जब तक मशीन बंद नहीं होती है तब तक लगातार बीप की आवाज़ आती रहती है. हम जानते हैं कि कोई व्यक्ति कब मरता है. कुछ मिनटों के बाद मशीन बंद होकर फिर चलने लगी और हमारा रोना शुरू हो गया."

डॉक्टर का कहना था कि लूकस को दिल का दौरा पड़ा था लेकिन वे उसे बचाने में सफल हो गए थे.

बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मेनुएला मोंते ने एक महीने तक लूकस का सोबराल के आईसीयू में इलाज किया. वो कहती हैं कि उन्हें आश्चर्य है कि लूकस की स्थिति बेहद चिंताजनक थी क्योंकि उसमें इस तरह के गंभीर लक्षण होने का कोई कारण नहीं था.

राज्य की राजधानी फोर्तालेज़ा के अलबर्ट सबिन चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल में बाल रोग विशेषज्ञ लोहोना तावारेस का कहना है कि जो भी बच्चे कोविड से संक्रमित पाए गए उनमें डायबिटीज़, हृद्य संबंधी और मोटापे जैसी अन्य बीमारियां भी थीं.

लेकिन लूकस के साथ ऐसा बिलकुल नहीं था.

लूकस आईसीयू में 33 दिन तक रहा और जेसिका उसे सिर्फ़ 3 बार ही मिल पाईं. लूकस को उसके दिल के लिए इम्युनोग्लोबुलिन दवाई की ज़रूरत थी जो कि बेहद महंगी है लेकिन सौभाग्य से एक मरीज़ ने उस दवा की एक ख़ुराक को अस्पताल को दे दिया था.

लूकस बेहद बीमार था इसलिए उसे इम्युनोग्लोबुलिन की दूसरी ख़ुराक की ज़रूरत थी. उसके शरीर पर लाल निशान पड़ने लगे और उसे लगातार बुख़ार आने लगा. उसे सांस लेने के लिए सपोर्ट की ज़रूरत थी.

लूकस की जब तबीयत थोड़ी ठीक हुई और वो ख़ुद से सांस लेने लगा तो डॉक्टर ने ट्यूब हटा दी. उन्होंने जेसिका और इज़रायल को वीडियो कॉल किया ताकि होश में आने के बाद लूकस ख़ुद को अकेला न महसूस करे.

जेसिका कहती हैं, "उसने जब हमारी आवाज़ सुनी तो उसने रोना शुरू कर दिया."

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यह आख़िरी बार था जब उन्होंने अपने बेटे को कोई प्रतिक्रिया देते हुए पाया था. अगले वीडियो कॉल में 'वो ऐसे था जैसे उसके शरीर में जान ही नहीं है.' अस्पताल ने एक सीटी स्कैन कराने के लिए कहा और पाया कि लूकस को स्ट्रोक हुआ है.

तब तक दोनों पति-पत्नी से कहा गया कि लूकस बेहतर तरीक़े से ठीक हो रहा है और उसे जल्द ही आईसीयू से निकालकर जनरल वॉर्ड में शिफ़्ट कर दिया जाएगा.

जेसिका ने बताया कि वो और इज़रायल जब उसे देखने के लिए पहुंचे तो डॉक्टर पहले की तरह आशावान थे.

उन्होंने कहा, "उस रात मैंने अपने सेल फ़ोन को साइलेंट कर दिया. मैंने सपने में देखा कि लूकस मेरे पास आया है और मेरी नाक को चूम रहा है. वह सपना प्यार, समर्पण की एक बड़ी भावना थी और मैं बहुत ख़ुशी-ख़ुशी सोकर उठी थी. मैंने जब अपना फ़ोन देखा तो पाया कि उसमें डॉक्टर की 10 मिस्ड कॉल थीं."

डॉक्टर ने जेसिका को कहा कि लूकस का हार्ट रेट और ऑक्सीजन लेवल बेहद तेज़ी से गिर रहा था और सुबह को उसकी मौत हो गई.

जेसिका लोगों को कर रही हैं जागरूक

वो मानती हैं कि लूकस का अगर कोविड टेस्ट उनके निवेदन करने के बाद मई की शुरुआत में ही हो चुका होता तो वो आज ज़िंदा होता.

वो कहती हैं, "यह ज़रूरी है कि अगर डॉक्टर यह मानते हैं कि यह कोविड नहीं है तो भी उन्हें इसकी पुष्टि के लिए टेस्ट करना चाहिए."

"एक बच्चा नहीं कह सकता है कि वो कैसा महसूस कर रहा है इसलिए हमें टेस्ट पर निर्भर रहना होता है."

इज़रायल और जेसिका
BBC
इज़रायल और जेसिका

जेसिका का मानना है कि उचित उपचार में देरी के कारण उसकी स्थिति ख़राब हुई. "लूकस को कई दिक़्क़तें शुरू हो चुकी थीं. फेफड़े 70 फ़ीसदी तक काम कर रहे थे, दिल 40 फ़ीसदी तक फैल चुका था. यह ऐसे स्थिति थी जिससे बचा जा सकता था."

डॉक्टर मोंते कहती हैं कि MIS कभी नहीं रोका जा सकता है इसका उपचार तब सफल होता है जब इसका इलाज शुरुआती चरण में ही शुरू हो जाए.

जेसिका अब उन लोगों को लूकस की कहानी सुनाकर उनकी मदद करना चाहती हैं जो गंभीर लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं.

"मैं उन लोगों के लिए यह कर रही हूं जो काश मेरे लिए यह कर पाते. अगर मेरे पास जानकारी होती तब मैं और सतर्क होती."

बच्चों पर कोविड का कम ख़तरा होता है?

डॉक्टर फ़ातिमा मारिन्हो कहती हैं कि यह एक ग़लतफ़हमी है कि बच्चों पर कोविड का कोई ख़तरा नहीं होता है. उनकी रिसर्च में पाया गया है कि इस वायरस से भारी संख्या में बच्चे और शिशु संक्रमित हुए हैं.

ब्राज़ील के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, फ़रवरी 2020 से लेकर 15 मार्च 2021 तक कोविड-19 के कारण नौ साल की आयु तक के कम से कम 852 बच्चों और एक साल की आयु तक के 518 बच्चों की मौत हुई है.

हालांकि, डॉक्टर मारिन्हो का अनुमान है कि यह संख्या दोगुनी हो सकती है. उनका मानना है कि कोविड टेस्टिंग कम होने की गंभीर समस्या के कारण भी नंबर कम हैं.

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डॉक्टर मारिन्हो का आंकलन है कि महामारी के दौरान अनस्पेसिफ़ाइड अक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम से होने वाली मौतें पिछले साल की तुलना में 10 गुना अधिक हैं.

इन आंकड़ों को जोड़ते हुए वो बताती हैं कि वायरस ने 1,302 शिशुओं समेत 9 साल से कम आयु के 2,060 बच्चों की जान ली है.

आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है?

स्वास्थ्यकर्मी
BBC
स्वास्थ्यकर्मी

विशेषज्ञों का मानना है कि ब्राज़ील में कोरोना के सबसे अधिक मामले बढ़ने की वजह यहां के शिशुओं और बच्चों के संक्रमित होने के कारण भी हो सकता है.

ब्राज़ीलियन सोसाइटी ऑफ़ पेडिएट्रिक्स के साइंटिफ़िक डिपार्टमेंट ऑफ़ इम्युनाइज़ेशन के अध्यक्ष रेनाटो कफ़ूरी कहते हैं, "हमारे यहां बिलकुल बहुत अधिक मामले आ रहे हैं और बहुत अधिक लोग अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं और बच्चों समेत हर आयु के लोगों में अधिक मौतें हो रही हैं. अगर महामारी पर नियंत्रण किया जाता तो इन हालात को कम किया जा सकता था."

ब्राज़ील कोरोना संक्रमण के मामलों में अभी दुनिया में दूसरे नंबर पर है. देश में इसके कारण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है. पूरे देश में ऑक्सीजन सप्लाई की कमी होती जा रही है, बुनियादी दवाओं की कमी है और देश के कई अस्पताल में आईसीयू बेड्स खाली नहीं हैं.

वहीं, ब्राज़ील के राष्ट्रपति ज़ायर बोलसोनारू ने लॉकडाउन का विरोध किया है और देश में P.1 नामक एक नए वैरिएंट का पता चला है जो कि अधिक संक्रामक समझा जा रहा है. महामारी की शुरुआत से किसी भी महीने की तुलना में पिछले महीने मरने वालों का आंकड़ा दोगुना रहा है.

टेस्टिंग की कमी के कारण बच्चों में इसके अधिक मामले पाए जाने की समस्या सामने आ रही है.

मारिन्हो कहती हैं कि बच्चों में कोविड के बारे में तब पता चल रहा है जब वे गंभीर रूप से बीमार हो जा रहे हैं. वो कहती हैं, "मामलों के पकड़ने की गंभीर समस्या का सामना हमें करना पड़ रहा है. आम जनता के लिए हमारे पास पर्याप्त टेस्ट नहीं हैं और बच्चों के लिए भी बहुत कम हैं. बीमारी के बारे में पता चलने में देरी हो रही है जिसके कारण बच्चों के इलाज में देरी हो रही है."

बच्चों में इस बीमारी के बारे में देर से पता चलने की वजह केवल कम टेस्टिंग ही नहीं है बल्कि कोविड-19 से संक्रमित बच्चों के लक्षण, विभिन्न आयु के युवा वर्ग के लक्षणों से अलग होते हैं जिसके कारण इसका पता लगाने में मुश्किल हो रही है.

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मेडिकल स्टाफ़ ने परिजनों और बच्चों के बीच वीडियो कॉलिंग के लिए टैबलेट्स और फ़ोन्स ख़रीदे हैं
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मेडिकल स्टाफ़ ने परिजनों और बच्चों के बीच वीडियो कॉलिंग के लिए टैबलेट्स और फ़ोन्स ख़रीदे हैं

वो कहती हैं, "आम कोविड के लक्षणों के मुकाबले बच्चों में डायरिया की अधिक दिक़्क़त है, इसमें उन्हें पेट दर्द और सीने में भी दर्द होता है. इसका पता चलने में देरी होती है तो बच्चा जब तक अस्पताल पहुंचता है तब तक उसकी हालत गंभीर हो चुकी होती है."

इसकी एक वजह ग़रीबी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी भी है.

20 साल की आयु से कम के 5,857 कोविड-19 मरीज़ों को लेकर किए गए एक शोध से पता चलता है कि बच्चों में कोविड-19 की इतनी बुरी स्थिति के लिए अन्य बीमारियां और सामाजिक-आर्थिक दिक़्क़तें भी बड़ी वजहें हैं.

मारिन्हो इस पर सहमति जताते हुए कहती हैं, "अधिकतर मरीज़ काले बच्चे या फिर वे हैं जो ग़रीब परिवारों से आते हैं या जिनके पास मदद नहीं पहुंच पाती है. इन बच्चों पर भी मौत का अधिक ख़तरा है."

वो कहती हैं कि छोटे घरों में अधिक लोगों के रहने के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाता है और ग़रीब समुदायों में स्थानीय स्तर पर आईसीयू की व्यवस्था नहीं होती है.

इसके अलावा इन बच्चों में कुपोषण की भी समस्या होती है जिसके कारण इनकी प्रतिरोधक क्षमता बेहद बुरी होती है.

मारिन्हो कहती हैं, "कोविड के कारण करोड़ों लोगों को ग़रीबी का मुंह देखना पड़ा है. एक साल के अंदर 70 लाख से 2.1 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं. लोग भूखे हैं. ये सब मृत्यु दर पर असर डाल रहा है."

साओ पाउलो स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के ब्रायन सूसा कहते हैं कि उनके शोध के अनुसार बच्चों के कुछ समूहों पर अधिक ख़तरा है इसलिए इन्हें कोविड का टीका पहले देना चाहिए. वर्तमान में 16 साल से कम आयु के बच्चों के लिए टीकाकरण की कोई व्यवस्था नहीं है.

डॉक्टरों की सराहनीय पहल

डॉक्टर सिनेरा कारनेइरो
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डॉक्टर सिनेरा कारनेइरो

कोरोना महामारी की शुरुआत से संक्रमण के डर के कारण आईसीयू में परिजन बच्चों से नहीं मिल सकते हैं.

अलबर्ट सबिन चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल में आईसीयू में तैनात डॉक्टर सिनेरा कारनेइरो कहती हैं कि यह बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि परिजन ही बता सकते हैं कि उनके बच्चे कब कैसा महसूस करते हैं क्योंकि वे उनके दर्द या मनोवैज्ञानिक पीड़ा को समझ सकते हैं.

वो कहती हैं कि जब परिजन अपनी ग़ैर-मौजूदगी में अपने बच्चों की तबीयत के बारे में सुनते हैं तो वे परेशान हो जाते हैं क्योंकि वे उनके साथ वहां मौजूद रहना चाहते हैं.

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डॉक्टर कारनेइरो कहती हैं, "बिना परिजनों की मौजूदगी में एक बच्चे की मौत बेहद पीड़ादायक है."

परिजनों और बच्चों के बीच बातचीत को सुधारने की कोशिश के तौर पर अलबर्ट सबिन हॉस्पिटल ने वीडियो कॉल के लिए फ़ोन और टैबलेट ख़रीदे हैं.

डॉक्टर कारनेइरो कहती हैं कि इसने बहुत मदद की है, "परिजनों और मरीज़ों के बीच में हम 100 से अधिक वीडियो कॉल कर चुके हैं. इस तरह की बातचीत तनाव कम करती है."

वैज्ञानिकों का तर्क है कि इस आयु वर्ग में मौत का ख़तरा अभी भी 'बेहद कम' है. वर्तमान आंकड़े बताते हैं कि ब्राज़ील में कोविड के कारण अब तक हुई 345,287 मौतों में से 0.58% उन लोगों की मौतें थीं जो 0-9 आयु वर्ग के बच्चे थे लेकिन यह संख्या भी 2,000 से अधिक बच्चों की है.

मदद कब मांगें?

कोरोना वायरस से जब बच्चा संक्रमित होता है तो उसे कम गंभीर समझा जाता है. अगर आपका बच्चा ठीक नहीं है तो यह ज़रूरी नहीं है कि उसे कोरोना वायरस की बीमारी ही हो.

रॉयल कॉलेज ऑफ़ पेडिएट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ ने परिजनों को सलाह दी है कि वे आपातकालीन मदद तभी मांगें जब उनके बच्चों को यह दिक़्क़तें हों:

  • जब उसके शरीर पर लाल निशान दिखने लगे या छूने पर असामान्य रूप से उसका शरीर ठंडा महसूस हो.
  • सांस लेने में वो रुक रहा हो या अनियमित तरीक़े से सांस ले रहा हो या फिर सांस लेते वक़्त अजीब आवाज़ें निकाल रहा हो.
  • सांस लेने में दिक़्क़त हो या फिर उत्तेजित हो जाए या किसी बात पर प्रतिक्रिया न दे.
  • होंठ नीले पड़ जाएं, सुस्त हो या व्याकुल दिखे.
  • किशोर लड़कों के अंडाकोश में दर्द हो.
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English summary
Why are so many child deaths due to Covid-19 in Brazil?
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