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इमरान ख़ान के जाने पर इस्लामिक और बाक़ी दुनिया में क्या प्रतिक्रिया है?

इमरान ख़ान की तारीफ़ अल अक़्सा मस्जिद के इमाम ने खुलकर की है. इसके अलावा कई लोग कह रहे हैं कि इमरान ख़ान को इस्लाम की वकालत करने की क़ीमत चुकानी पड़ी है.

By BBC News हिन्दी
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इमरान ख़ान की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई है. पाकिस्तान के इस राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर दुनिया भर से प्रतिक्रिया आ रही है. कई लोग कह रहे हैं कि इस्लाम की वकालत करने की उन्हें क़ीमत चुकानी पड़ी तो कई लोग कह रहे हैं कि सेना से मतभेद के कारण उन्हें कुर्सी गँवानी पड़ी.

रविवार को अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में उनकी पार्टी संख्या बल में पिछड़ गई. 174 सांसदों ने इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ वोट किया था. इससे पहले इमरान ख़ान ने कुर्सी पर बने रहने के लिए कई कोशिशें कीं लेकिन नाकाम रहे. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट को दख़ल देना पड़ा तब जाकर अविश्वास प्रस्ताव वोटिंग हुई थी.

इमरान ख़ान ने हाथ से सत्ता जाने के लिए अमेरिका को भी निशाने पर लिया. उन्होंने नाम लेकर कहा था कि अमेरिका उन्हें हटाना चाहता है. हालांकि अमेरिका ने इस आरोप को सिरे से ख़ारिज कर दिया था. इमरान ख़ान ने सत्ता में आने के बाद से रूस और चीन से क़रीबी बढ़ाने की कोशिश की थी. पाकिस्तान की शिकायत रही है कि बाइडन ने इमरान ख़ान को एक फ़ोन तक नहीं किया था.

'द इंटरनेशल इंटरेस्टट के निदेशक समी हमदी ने एक वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा है, ''सऊदी अरब, यूएई और यूरोप के दक्षिणपंथियों के बीच इमरान ख़ान के जाने से ख़ुशी है. इमरान ख़ान की लोकप्रियता इस्लामिक दुनिया में बढ़ रही थी और वह इस्लाम के रक्षक के तौर पर उभरे थे.''

रेडियो पाकिस्तान की ख़बर के अनुसार, अल अक़्सा मस्जिद के इमाम शेख़ इकराम सबरी ने कहा है कि इमरान ख़ान मुसलमानों के नेता हैं और उन्होंने फ़लस्तीनियों के मुद्दे पर मज़बूती से साथ दिया है. पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री डॉ नूर उल हक़ क़ादरी ने अल-अक़्सा मस्जिद के इमाम से बात की थी. इसी बातचीत में उन्होंने इमरान ख़ान की तारीफ़ की थी.

इमाम ने कहा था कि इमरान ख़ान ने ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन और संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीनियों का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया था. इस बातचीत में डॉ नूर उल हक़ क़ादरी ने कहा था कि पाकिस्तान कभी भी इसराइल को मान्यता नहीं देगा. यूएई और बहरीन ने अमेरिकी पहल के बाद इसराइल से 2020 राजनयिक संबंध कायम किए थे. पाकिस्तान में इसे लेकर विरोध-प्रदर्शन भी हुआ था.

https://twitter.com/MALHACHIMI/status/1513242381830684673

अलग इस्लामिक संगठन

डॉ मुहम्मद अल-हकीमी अल-हमिदी अरबी भाषा में अल्मस्ताकिल्लाह टीवी के चेयरमैन हैं. उन्होंने ट्वीट कर लिखा है, ''दुनिया भर के मुसलमानों के दिल में इमरान ख़ान के लिए ख़ास जगह क्यों है? हम क्यों उनसे प्यार करते हैं और उनके लिए क्यों दुआएं मांगते हैं? इसका जवाब है कि उन्होंने हमारे पैग़ंबर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता खुलकर ज़ाहिर की. इस्लामोफ़ोबिया को लेकर भी वह मुखर रहे.''

संसद में 10 अप्रैल को तहरीक-ए-इंसाफ़ के सांसद अली मुहम्मद ख़ान ने कहा था कि इमरान ख़ान की ग़लती यह थी कि उन्होंने अलग मुस्लिम ब्लॉक बनाने की बात की थी. अली मुहम्मद ख़ान ने कहा था, ''इमरान ख़ान का गुनाह यह है कि उन्होंने स्वतंत्र विदेश नीति की बात की थी. मुस्लिम ब्लॉक की बात की थी. इमरान ख़ान ने प्रधानमंत्री रहते हुए मदीने की रियासत की बात की, मुस्लिम उम्माह की बात की थी. इमरान ख़ान का गुनाह यही था.''

https://twitter.com/ImIqbalWazir/status/1512900893825507333

दिसंबर, 2019 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को आख़िरकार सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के सामने झुकना पड़ा था.

पाकिस्तान मलेशिया में 19-20 दिसंबर को आयोजित कुआलालंपुर समिट में हिस्सा नहीं लिया था. इमरान ख़ान इस समिट में जाएंगे या नहीं इसे लेकर घोर अनिश्चितता बनी हुई थी.

बाद में विदेश मंत्री महमूद शाह क़ुरैशी ने साफ़ कर दिया कि बुधावार से शुरू हो रहे कुआलालंपुर समिट में इमरान ख़ान नहीं जाएंगे.

इमरान ख़ान ने मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद को फ़ोन कर खेद जताया था और कहा कि वो नहीं आ पाएंगे. वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन इस समिट में शामिल होने के लिए कुआलालंपुर पहुंच गए थे. अर्दोआन और इमरान ख़ान ने ही इस समिट की बुनियाद रखी थी.

कहा जा रहा था कि इमरान ख़ान ओआईसी की तर्ज पर अलग से इस्लामिक देशों का संगठन बनाना चाह रहे थे. ओआईसी में सऊदी अरब का दबदबा है और इस नई पहल से उसके नाराज़ होने की ख़बरें थीं.

इमरान ख़ान का दावा- पाकिस्तान में अमेरिका कर रहा हस्तक्षेप, क्या कहता है इतिहास

https://twitter.com/geertwilderspvv/status/1512896799027216385

डच नेता ग्रीट वाइल्डर्स ने इमरान ख़ान की विदाई पर ट्वीट कर कहा है, ''राष्ट्रपति और इस्लामिक अतिवादी इमरान ख़ान को जाना पड़ा. वह आतंकवाद के समर्थक और स्वतंत्रता, लोकतंत्र के अलावा भारत के दुश्मन थे.''

हालांकि इमरान ख़ान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे न कि राष्ट्रपति.

विदेश मंत्रालय का दुरुपयोग?

पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार 'द डॉन' ने पाकिस्तान में इमरान ख़ान की विदाई पर 11 अप्रैल को संपादकीय लिखा है. इस संपादकीय में डॉन ने कहा है, ''पूरे राजनीतिक संकट में विदेश मंत्रालय में काम करने वाले लोगों का इमरान ख़ान ने राजनीतिकरण किया है.''

''जिस केबल का हवाला दिया जा रहा है, उससे अमेरिका जैसे अहम साझेदार से रिश्ता ख़राब हुआ है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. इमरान ख़ान ने बहुत ही ख़तरनाक रास्ता चुना, जिसकी मौजूदगी को लेकर गहरा संदेह है. राष्ट्रीय सुरक्षा समिति ने पत्र की भाषा पर आपत्ति जताई है और किसी भी तरह की साज़िश की बात नहीं कह रही है. दूसरी तरफ़ इमरान ख़ान का कहना है कि अमेरिका की ओर से साज़िश रची गई है.''

डॉन ने लिखा है, ''इमरान ख़ान आख़िर तक कहते रहे कि वह साज़िश के शिकार हुए हैं लेकिन अब स्पष्ट है कि अमेरिकी दूतावास के रूटीन वाले केबल की आड़ ली गई. इस केबल में अमेरिकी राजदूत की वहाँ के अधिकारियों के साथ हुई बैठक पर विस्तार में बात कही गई थी. इमरान ख़ान ने ऐसा कर पाकिस्तान की विदेश नीति को नुक़सान पहुँचाया है. इमरान ख़ान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी पूरे मामले से ख़ुद को अलग नहीं कर सकते हैं. एक विदेश मंत्री के तौर पर क़ुरैशी को बताना चाहिए कि उन्होंने अपने ओछे हितों के लिए विदेश मंत्रालय के केबल का दुरुपयोग क्यों होने दिया.''

इमरान ख़ान
Getty Images
इमरान ख़ान

सेना से मतभेद

पाकिस्तानी पत्रकार अहमद नूरानी सितंबर 2020 में पाकिस्तान की सेना के अधिकारियों और उनकी बढ़ती संपत्ति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी.

इस रिपोर्ट के बाद लेफ़्टिनेंट जनरल आसिम सलीम बाजवा (रिटायर्ड) को चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के चेयरमैन का पद छोड़ना पड़ा था. उन्होंने पाकिस्तान में इमरान ख़ान के सत्ता से बेदख़ल होने पर बीबीसी हिन्दी से कहा, ''इमरान ख़ान ने ख़ुद को प्रधानमंत्री मानना शुरू कर दिया था. लेकिन हक़ीक़त यह थी कि उन्हें फ़ौज ने बनाया था. जब आपको किसी ने बनाया है तो काम भी उसी के हिसाब से करना होगा. अब इमरान ख़ान के लिए सत्ता में लौटना मुश्किल है.''

अहम नूरानी कहते हैं कि शहबाज़ शरीफ़ अब फौज के नए वफ़ादार के रूप में उभरे हैं और सेना उन्हें पीएम की कुर्सी पर बिठाने जा रही है. नूरानी कहते हैं कि इमरान ख़ान ने सेना की नियुक्तियों में दखल देने की कोशिश की थी और इसे वह क़तई बर्दाश्त नहीं करती. आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति में इमरान ख़ान की भूमिका सबसे ज़्यादा ख़िलाफ़ गई है.

https://twitter.com/ZacGoldsmith/status/1513030225508057090

इमरान ख़ान के साले क्या कह रहे?

लंदन की जेमिमा गोल्डस्मिथ को इमरान ख़ान की पहली पत्नी माना जाता है. जेमिमा के भाई और इमरान ख़ान के साले ज़ैक गोल्डस्मिथ ब्रिटेन की सरकार में मंत्री हैं. उन्होंने ट्वीट कर इमरान ख़ान का समर्थन किया है.

ज़ैक गोल्डस्मिथ ने ट्वीट कर कहा है, ''पाकिस्तान में पिछली रात जो कुछ भी हुआ वो बेहद दुखद था. इमरान ख़ान अच्छे और शालीन व्यक्ति हैं. विश्व स्तर पर इमरान ख़ान सबसे कम भ्रष्ट नेताओं में से एक है. बेशक आने वाले चुनाव में वह बड़े बहुमत से वापसी करेंगे.''

https://twitter.com/BenGoldsmith/status/1512895635837661193

उनके एक और साले बेन गोल्डस्मिथ ने लिखा है, ''मेरे जीजा बहुत अच्छे और सम्मानित व्यक्ति हैं. वह अपने देश के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं. प्रधानमंत्री रहते हुए, उनका रिकॉर्ड शानदार रहा.'' जेमिमा और इमरान ख़ान की शादी 1995 में लंदन में हुई थी.

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English summary
reaction of Islam and the rest of the world to the political crisis in Pakistan?
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