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चांद पर बिजली पहुंचाने की तैयारी! जानें लंबी रातों में कैसे छंटेगा अंधेरा ?

नासा इस बार चांद की जिस छोर पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतराने की तैयारी में है, वहां 14 दिन अंधेरा छाया रहता है। सूर्य के रोशनी की गैर-मौजूदगी में अंतरिक्ष यात्रियों को बिजली कैसे मिलेगी, इसपर मंथन चल रहा है।

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नासा 5 दशक के बाद एक बार फिर से अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर उतारने की तैयारी कर चुका है। लेकिन, नया मिशन पिछले मिशन की तुलना में काफी खास है। इस बार इंसान सिर्फ इंसानी झंडा गाड़ने के लिए चांद पर नहीं जा रहा है। इस बार का आर्टेमिस मिशन लंबे समय के लिए है। वहां पर लंबे वक्त तक ठहरने लायक इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना है। अगले दशक में मंगल अभियान से पहले यह उसके लिए भी एक रिहर्सल मिशन टाइप है। लेकिन, इसमें कई चुनौतियां हैं। क्योंकि, चंद्रमा पर इस बार जिस जगह पर अंतरिक्ष यात्री अपने कदम रखेंगे, वहां 14 दिनों तक सूरज की रोशनी का दर्शन तक दुर्लभ है। ऐसे में संकट है कि बिजली का इंतजाम कैसे होगा ? हाल के दिनों में वैज्ञानिक और एक्सपर्ट इसी पर मंथन करने में लगे हुए हैं।

आर्टेमिस मिशन से जुड़ी हैं कई चुनौतियां

आर्टेमिस मिशन से जुड़ी हैं कई चुनौतियां

अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा पचास साल बाद पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने जा रहा है। इस बार नासा का मकसद सिर्फ इंसान को चंद्रमा की सतह पर उतारना भर नहीं है, बल्कि आर्टेमिस मिशन का उद्देश्य वहां लंबे वक्त तक ठहरने लायक आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना है। यह इसलिए ताकि वहां लंबे समय तक इसकी खोज की जा सके और उसपर रिसर्च किया जा सके। लेकिन, अपोलो मिशन से उलट आर्टेमिस मिशन अंतरिक्ष यात्रियों को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उताने की तैयारी में है। क्योंकि, यहां के ऐटकेन बेसिन में आर्टेमिस बेसकैंप खड़ा करना है। गौरतलब है कि अपोलो चांद के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में उतरा था। चांद के दक्षिण ध्रुव से कई विशेषताएं जुड़ी हुई हैं। इस क्षेत्र में कई ऐसे क्रेटर हैं, जो स्थाई रूप से छायादार हैं। इसके साथ ही साथ इस इलाके में रात्रि चक्र (night cycle) 14 दिनों का होता है, जिसे लूनर नाइट कहते हैं।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ऊर्जा संकट

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ऊर्जा संकट

आर्टेमिस मिशन के अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की जिस छोर पर उतरेंगे, वहां उन्हें लूनर नाइट का सामना करना होगा। यानि जहां 14 दिनों तक सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचेगी, जिससे बिजली के लिए सौर ऊर्जा वाला स्रोत सीमित हो जाएगा। मतलब, आर्टेमिस के अंतरिक्ष यात्रियों, स्पेसक्राफ्ट, रोवर्स और बाकी कार्यों के लिए बिजली के अतिरिक्त स्रोत की आवश्यकता पड़ेगी। यूनिवर्स टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी से दूर लंबे समय के मिशन के लिए पैदा हो रहे इस समस्या के समाधान के लिए ओहियो एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट और नासा ग्लेन रिसर्च सेंटर ने हाल ही में दो स्पेस न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी वर्कशॉप का आयोजन किया है, जिसमें दुनिया भर के वैज्ञानिक और एक्सपर्ट शामिल हुए हैं।

परमाणु ऊर्जा पैदा करने पर मंथन

परमाणु ऊर्जा पैदा करने पर मंथन

नासा ग्लेन अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन के लिए पावर सिस्टम रिसर्च पर काम करती है। यहां के इंजीनियर और तकनीशियन बिजली के उत्पादन, ऊर्जा संरक्षण और उसे स्टोर करके रखने पर रिसर्च करते हैं। यह ऊर्जा, सोलर और थर्मल पावर से लेकर बैटरी, रेडियोआइसोटॉप्स, फिशन और रिजेनरेटिव फ्यूल सेल तक पर आधारित हो सकती है। जबकि, ओहियो एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट एयरोस्पेस रिसर्च में सरकार और उद्योगों के बीच पुल का काम करता है, जो कि एक नॉन-प्रॉफिट रिसर्च ग्रुप है। आर्टेमिस मिशन के संबंध में ये संस्थाएं न्यूक्लियर-थर्मल और न्यूक्लियर-इलेक्ट्रिक प्रपल्शन सिस्टम पर विशेष मंथन कर रही हैं। पहले केस में न्यूक्लियर रिएक्टर का इस्तेमाल होता है, जिसके माध्यम से तरल हाइड्रोजन जैसे प्रणोदकों को गर्म किया जाता है। दूसरे मामले में रिएक्टर एक मैग्नेटिक इंजन के लिए बिजली पैदा करता है, जो xenon जैसी निष्क्रिय गैस को आयनित करता है।

'भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत ऐसे मिशन के लिए जरूरी'

'भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत ऐसे मिशन के लिए जरूरी'

जहां तक आर्टेमिस मिशन की बात है तो न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी वर्कशॉप में सैकड़ों इंजीनियरों और विशेषज्ञ अपनी राय दे चुके हैं। इस में फिशन सरफेस पावर से लेकर स्पेस न्यूक्लियर प्रपल्शन सिस्टम तक पर चर्चा हुई है। नासा की ओर से जारी प्रेस रिलीज में इसके फिशन सरफेस पावर प्रोजेक्ट मैनेजर टोड टोफिल ने बताया है, 'भरोसेमंद ऊर्जा चांद और मंगल की खोज के लिए जरूरी है....न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी उपलब्ध सूर्य के प्रकाश की परवाह किए बिना किसी भी वातावरण या स्थान में मजबूत, विश्वसनीय ऊर्जा दे सकती है। जैसे-जैसे हम फिशन सरफेस पावर और न्यूक्लियर प्रपल्शन जैसे प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़ते हैं, नासा और दूसरी एजेंसियों में अतीत में किए गए काम को देखकर समझ में आता है कि हम क्या सीख सकते हैं।'

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भविष्य के मिशन के लिए ऐसी ऊर्जा उपयोगी

भविष्य के मिशन के लिए ऐसी ऊर्जा उपयोगी

नासा ग्लेम के स्पेस साइंस प्रोजेक्ट ऑफिस के चीफ टिबोर क्रेमिक के मुताबिक, 'चांद पर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर लूनर नाइट के समय जिसके लिए निश्चित तौर पर तैयारी करनी है। हमने इस क्षेत्र के हर फिल्ड के लोगों के साथ चर्चा की है और समाधान तलाशने पर काम किया है। वर्कशॉप ने हमें काफी कुछ सीखने में सहायता की है। हमें सौर मंडल के और भी मुश्किल स्थानों के लिए भी तैयारी करने की दिशा मिली है।' क्योंकि, आर्टेमिस मिशन की सफलता 2030 के दशक में मंगल पर इंसान को उतारने के लक्ष्य से भी जुड़ा हुआ है। इन सबके लिए न्यूक्लियर प्रप्लशन और न्यूक्लियर रिएक्टर बेहतर विकल्प हो सकता है, जिसमें सतह के कैंप के लिए भी बिजली की समस्या का समाधान है और लंबे वक्त के मिशन के लिए स्पेसक्राफ्ट के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।


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English summary
Artemis Program:NASA is continuously working on its Artemis mission to land astronauts on the Moon. One problem is the supply of electricity on the Moon, for which many types of energy sources are being considered
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