नेपाल चुनाव: संविधान बदले जाने के बाद दूसरा इलेक्शन, जानिए सभी सवालों के जवाब
नेपाल की संसद और प्रांतीय विधानसभा के रविवार को मतदान होगा.
नेपाल में रविवार को एक ही चरण में केंद्रीय और प्रांतीय चुनाव हो रहे हैं. नेपाल के चुनाव आयोग ने मतदान कराने के लिए कुल 10892 पोलिंग केंद्र और 22227 बूथ तैयार किए हैं. नेपाल में साल 2015 में संविधान बदले जाने के बाद से ये दूसरे चुनाव हैं. नेपाल के इन आम चुनावों को पुराने पारंपरिक नेताओं और नए उम्मीदवारों की बीच मुक़ाबले के रूप में भी देखा जा रहा है. नेपाल की हाऊस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव (संसद) और प्रांतीय विधानसभाओं के लिए हो रहे मुक़ाबले में कई पेशेवर भी राजनीति में दांव आज़मा रहे हैं.
नेपाल की संसद में कुल 275 सीटें हैं जिनमें 165 सीटों पर फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (एफ़पीटीपी) व्यवस्था के तहत चुनाव हो रहे हैं. इन 165 सीटों के लिए कुल 2412 उम्मीदवार मैदान में हैं जिनमें से 2187 पुरुष हैं और 225 महिलाएं हैं. बाकी 110 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधि (प्रोपोर्शनल रीप्रेज़ेंटेशन) व्यवस्था के तहत सदस्यों का चुनाव होगा.वहीं प्रांतीय विधानसभा की 330 सीटों के लिए कुल 3224 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से 2943 पुरुष और 280 महिलाएं हैं जबकि एक उम्मीदवार ने अपना जेंडर अन्य घोषित किया है.
330 सीटों पर एफ़पीटीपी व्यवस्था के तहत चुनाव हो रहा है जबकि बाक़ी 220 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत सदस्य चुने जाएंगे. रविवार को हो रहे मतदान के बाद किस पार्टी को कितनी सीटें मिलती हैं उससे ही ये तय होगा कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत उसे संसद और विधानसभाओं में कितनी सीटें मिलेंगी.
नए उम्मीदवारों की लहर
नेपाल की राजनीति में इस बार कई नए चेहरों ने क़दम रखा है. ये डॉक्टर, इंजीनियरिंग और पत्रकारिता जैसे पेशेवर क्षेत्रों को छोड़कर राजनीति में कुछ नया करने के उद्देश्य से आए हैं. नई बनी नेशनल इंडीपेंडेंट पार्टी ने कई ऐसे पेशेवरों को टिकट दिया है. पूर्व टीवी होस्ट राबी लामीछाने नेशनल इंडीपेंडेंड पार्टी ( राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी) के प्रमुख हैं. चुनाव से ठीक पहले राबी की नागरिकता को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ है. राबी ने नेपाल की नागरिकता छोड़कर किसी और देश की नागरिकता ले ली थी. अब उनके विरोधियों ने आरोप लगाया है कि राबी के फिर से नेपाल की नागरिकता लेने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की है. हालांकी उनकी पार्टी ने इस विवाद को निराधार बताया है. राबी चितवन ज़िले की पदमपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी पार्टी ने ललितपुर ज़िले से डॉक्टर तोशिमा कार्की को टिकट दिया है. ऐसे ही कई और पेशेवरों को इस पार्टी ने चुनाव मैदान में उतारा है.
आती जाती सरकारें
नेपाल में साल 1990 में लोकतंत्र स्थापित हुआ था और साल 2008 में यहां राजशाही को ख़त्म कर दिया गया था. लोकतंत्र स्थापित होने के 32 सालों में यहां 32 सरकारें रही हैं और 2008 के बाद से अब तक पिछले चौदह सालों में दस सरकारें आईं-गईं हैं. बदलते गठबंधनों और सरकारों ने नेपाल के लोगों में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराशा को जन्म दिया है और इसी के जवाब में कई नए चेहरे पुराने राजनेताओं को टक्कर देने और नया विकल्प पेश करने के लिए मैदान में हैं.
कौन-कौन है मैदान में
नेपाल के चुनावों में मुख्य मुक़ाबला दो गठबंधनों में है. प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में सत्ताधारी गठबंधन है जिसमें उनकी पार्टी नेपाली कांग्रेस के अलावा पुष्प कमल दहाल प्रचंड की कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल माओइस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी) और माधव कुमार नेपाल की कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल- यूनिफाइड सोश्लिस्ट (सीपीएन-यूएस) हैं. वहीं पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में विपक्ष का गठबंधन है जिसमें कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल - यूनाइटेड मार्कसिस्ट (सीपीएन- यूएमएल) के साथ राजशाही समर्थक और हिंदूवादी पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) है जो 150 सीटों पर एफपीटीपी व्यवस्था के तहत चुनाव लड़ रही है. पुराने राजनेताओं पर भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में कई स्वतंत्र उम्मीदवार और छोटी-छोटी पार्टियां भी मैदान में हैं. नेशनल इंडीपेंडेंट पार्टी भी कई सीटों पर पुरानी पार्टियों को चुनौती दे रही है.
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चुनाव में क्या हैं मुद्दे?
नेपाल के चुनावों में भ्रष्टाचार और देश की मौजूदा आर्थिक हालत सबसे बड़ा मुद्दा हैं. आम लोग कार्यपालिकाऔर न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं. महंगाई और कमज़ोर अर्थव्यवस्था ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. नेपाल में अब भी कई इलाक़े ऐसे हैं जो सड़क और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. मौजूदा हालात की वज़ह से आम लोगों, ख़ासकर युवा मतदाताओं में आक्रोश है. यही वजह है कि नेपाल में सोशल मीडिया पर पुराने नेताओं के बहिष्कार के लिए अभियान भी चला है. वैश्विक मामलों पर नेपाल का पक्ष भी चुनावों में एक मुद्दा है. रूस-यूक्रेन में चल रहे युद्ध को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री पर अमेरिका का पक्ष लेने को लेकर आलोचना भी हुई है. वहीं नेपाल के मधेश क्षेत्र में नागरिकता एक बड़ा मुद्दा है. नेपाल की संसद में नागरिकता विधेयक पारित किया गया था लेकिन राष्ट्रपति ने अभी इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. मधेशियों के लिए नेपाल में नागरिकता एक बड़ा सवाल रहा है.
मधेशी ये मांग करते रहे हैं कि जिनका जन्म नेपाल में हुआ है उन्हें जन्म के आधार पर नागरिकता मिलनी चाहिए. हालांकि अभी इस मुद्दे का समाधान नहीं हुआ है. चुनाव में दोनों ही गठबंधन मधेशियों को नागरिकता दिलाने के अपने-अपने वादे कर रहे हैं. वहीं भारत की सीमा से लगे इलाक़ों में भारतीय हाथी भी एक मुद्दा हैं. बीबीसी नेपाली की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत से सटे झापा जिले में मतदाता वोट मांगने आ रहे नेताओं से घुसपैठ करने वाले भारतीय हाथियों से निजात दिलाने की मांग कर रहे हैं. बीबीसी नेपाली से बात करते हुए कई स्थानीय लोगों ने कहा है कि हाथियों की घुसपैठ की वजह से वो ख़ौफ़ में रहते हैं और रात में सो नहीं पाते हैं. उनका आरोप है कि हाथी फसल भी बर्बाद कर देते हैं.
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भारत की चुनावों पर नज़र
भारत भी नेपाल के चुनावों पर नजर रखे हुए हैं. भारत के अपने उत्तरी पड़ोसी नेपाल से हमेशा से ही मज़बूत संबंध रहे हैं लेकिन हाल के सालों में इन संबंधों में नरमी आई है. पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधारा को नेपाल में शामिल करने का वादा किया है. भारत इन्हें उपने उत्तराखंड प्रांत का हिस्सा मानता है जबकि केपी शर्मा ओली की पिछली सरकार के दौरान नेपाल ने इन इलाक़ों पर अपना दावा पेश कर दिया था. साल 2015 में जब नेपाल ने संविधान में बदलाव किया था तब भारत ने नेपाल से संपर्क काट लिया था. नेपाल अपनी ज़रूरत के अधिकतर सामान के लिए आयात पर निर्भर है जिसका बड़ा हिस्सा भारत के रास्ते से होकर जाता है. भारत के आर्थिक ब्लॉकेड के चलते नेपाल को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
दोनों देशों के बीच 2018 में हुए भूमि विवाद (लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधारा) से शुरू हुआ तनाव अब तक पूरी तरह शांत नहीं हुआ है. नेपाल में बढ़ रहा चीन का प्रभाव भी भारत के लिए चिंता का विषय है. यही वजह है कि भारत नेपाल की राजनीति पर क़रीबी निग़ाह रखे हुए है.
कॉपी- दिलनवाज़ पाशा
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