ISRO पर गर्व कीजिए: जानिए कैसे भारत का नया रॉकेट SSLV, अंतरिक्ष सेक्टर में गेमचेंजर साबित होगा?
नई नई टेक्नोलॉजी के आने से सैटेलाइट का युग भी बदल रहा है और अब छोटे-छोटे और सुक्ष्म सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजना का युग आ चुका है और इन सैटेलाइट्स का वजन 5 किलो से एक हजार किलो तक हो सकता है।
नई दिल्ली, अगस्त 07: एक ऐसा रॉकेट जिसे महज 5-6 लोगों की टीम 72 घंटे के अंदर असेंबल कर सकती है, एक ऐसा रॉकेट जिसकी कीमत वर्तमान में उपयोग में आने वाले रॉकेटों का कम से कम दसवां हिस्सा है, एक ऐसा रॉकेट जो हर हफ्ते भारत से एक अंतरिक्ष प्रक्षेपण करने की क्षमता देता है और, एक ऐसा रॉकेट, जो विशेष रूप से छोटे और सूक्ष्म उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज सता है, उसे भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने लॉन्च कर दिया है और इसको लेकर पूरा भारत जश्न मना रहा है। एसएसएलवी के जरिए इन दिनों लॉन्च किए जा रहे सभी उपग्रहों का 90 प्रतिशत हिस्सा अकेले भेजा जा सकता है और यही वजह है, कि इसरो के इस रॉकेट को अंतरिक्ष की दुनिया का गेमचेंजर माना जा रहा है। हालांकि, इसरो के एससएएलवी लॉन्च में कुछ तकनीकी दिक्कतें जरूर आईं हैं, लेकिन उसे दूर कर दिया जाएगा।
भारत में एसएसएलवी को लेकर उत्साह
एसएसएसली रॉकेट अपने आप में कई विशेषताओं से भरा हुआ है, जिसका फूल फॉर्म 'स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है', जिसने रविवार की सुबह दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाकर अपनी उद्घाटन उड़ान भरी है। इसे गेमचेंजर माना जाता है, जो वास्तव में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को बदल सकता है। हालांकि, भारत को इस रॉकेट को लॉन्च करने में काफी वक्त लग गया है और मूल रूप से इसे साल 2018 में ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन कई वजहों से एसएसएलवी की लॉन्चिंग टलती रही और फिर बाद में कोविड की वजह से एक साल और टल गया। वहीं, इसरो की कुछ आंतरिक वजहों से भी इसकी लॉन्चिंग में देरी हुई। लेकिन, अब जाकर आखिरकार एसएसएलवी की क्षमता भारत ने विकसित कर ली है।
भारत की अंतरिक्ष शक्ति का प्रतीक
रविवार की सुबह 9:18 बजे निर्धारित प्रक्षेपण की यात्रा एक शुरुआत का प्रतीक है। भारत अब तक पीएसएलवी रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजता रहा है और अभी तक इसरो सबसे ज्यादा पीएसएलवी रॉकेट का ही इस्तेमाल सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए करता रहा है। लेकिन, अब एसएसएलवी छोटे-छोटे सैटेलाइट को अंतरिक्ष में ले जाएगा। पीएसएलवी अभी तक भारत के लिए 50 से ज्यादा उड़ाने भर चुका है और दर्जनों सैटेलाइट को अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है।
छोटे उपग्रहों का युग
नई नई टेक्नोलॉजी के आने से सैटेलाइट का युग भी बदल रहा है और अब छोटे-छोटे और सुक्ष्म सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजना का युग आ चुका है और इन सैटेलाइट्स का वजन 5 किलो से एक हजार किलो तक हो सकता है, हालांकि ऐसा नहीं है, कि बड़े और वजनी सैटेलाइट्स अब अंतरिक्ष में नहीं भेजे जाएंगे, बल्कि बड़े सैटेलाइट्स को भी अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे, लेकिन सैन्य सैटेलाइट्स को अगर छोड़ दें, तो भी लोगों के हितों के लिए भेजे जाने वाले ज्यादातर सैटेलाइट्स के आकार अब काफी छोटे हो गये हैं। अभी तक सैटेलाइट्स भेजने के टाइमलाइन को अगर देखें, तो बड़े उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन वक्त बदला है और अब ज्यादातर व्यवसायों को चलाने के लिए, सरकारी एजेंसियां और यहां तक विश्वविद्यालय और प्रयोगशाला भी अपने सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में भेजना शुरू कर दिया है और इस कैटोगिरी में आने वाले सभी सैटेलाइट्स छोटे आकार के ही होते हैं, लिहाजा इनके लिए एसएसएलवी सैटेलाइट्स सबसे बेहतरीन होगा।
छोटे उपग्रहों की मांग में तेजी
हकीकत में देखा जाए, तो अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, सर्विलांस और कॉमर्श की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण, पिछले आठ से दस सालों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। अनुमान बताते हैं कि अगले दस वर्षों में दसियों हजार छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा। इसलिए, अब सैटेलाइट बिल्डरों और ऑपरेटरों के पास रॉकेट पर जगह पाने के लिए महीनों तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा और ना ही सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए ही ज्यादा पैसों की जरूरत होगी। वहीं, एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स हो या फिर कुछ और प्राइवेट प्लेयर्स, ये अब सामूहिक तौर पर सैकड़ों सैटेलाइट भेजने की क्षमता विकसित कर रहे हैं, लिहाजा भारत किसी भी हाल में पीछे नहीं रह सकता था और अब भारत ने यह क्षमता विकसित कर ली है।
अंतरिक्ष की यात्रा की दुनिया में कदम
इसके साथ ही एलन मस्क की स्पेसएक्स जैसी कंपनियां अब अंतरिक्ष पर्यटन की दिशा में काम कर रही हैं और इसके लिए समर्पित रॉकेट्स की डिमांड लगातार बढ़ती ही जा रही है, जिन्हें कभी भी, काफी कम से लॉन्च किया जा सके, जैसे इसरो ने अपने एसएसएलवी को सिर्फ 6 दिनों में और सिर्फ 5-6 लोगों की टीम के साथ लॉन्च कर दिया है। एसएसएलवी रॉकेट के जरिए आने वाले वक्त में अंतरिक्ष टूरिज्म सेक्टर में कदम बढ़ाया जा सकता है और वाणिज्यिक गतिविधियों और व्यावसियक अवसरों के नये दरवाजे खुल सकते हैं और ज्यादातर मांग उन कंपनियों की तरफ से आती हैं जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए उपग्रह लॉन्च कर रही हैं। अब सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में कई नए खिलाड़ियों ने लॉन्चिंग सेवाओं की पेशकश शुरू कर दी है। भारत में, जहां अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए तेजी से खोला जा रहा है, कम से कम तीन निजी कंपनियां ऐसे रॉकेट विकसित कर रही हैं जो छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर सकें। इस मांग को पूरा करने के लिए, और इस व्यावसायिक अवसर को भुनाने के लिए, इसरो ने एसएसएलवी को विकसित किया है।
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अभी कई और लॉन्च होंगे
अभी एक अच्छे साल में, अगर सबकुछ ठीक रहा, तो इसरो 5 से 6, PSLV और GSLV (जियोस्पेशियल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) रॉकेट को लॉन्च करता है और इन रॉकेटों को असेंबल करने में आमतौर पर 70-80 दिन लगते हैं और इस काम में दर्जनों लोग काम करते हैं, और इनमें से प्रत्येक की कीमत दसियों मिलियन डॉलर है। हालांकि, इनमें से कई वाणिज्यिक उपग्रह भी ले जाते हैं, लेकिन उत्पन्न राजस्व लागत के अनुरूप नहीं है। लेकिन एसएसएलवी इस पूरे खेल को बदलकर रख देगा। माना जाता है कि इस रॉकेट का तेजी से टर्नअराउंड समय होता है, आमतौर पर तीन दिनों से भी कम।
शॉर्ट नोटिस पर होगा लॉन्च
इसे शॉर्ट नोटिस पर और मौजूदा लॉन्च वाहनों की लागत के एक अंश पर असेंबल किया जा सकता है। एसएसएलवी में 500 किलोग्राम वजन के उपग्रहों को निचली पृथ्वी की कक्षाओं (पृथ्वी की सतह से 1,000 किमी की ऊंचाई तक) तक ले जाने की क्षमता होगी, जो उपग्रहों की स्थिति के लिए अंतरिक्ष में सबसे अधिक मांग वाले स्थानों में से एक है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे इसरो की प्रक्षेपण दर में भारी वृद्धि होने की संभावना है। इसरो के अधिकारियों ने कहा है, कि वे हर साल 50 से 60 एसएसएलवी प्रक्षेपणों पर विचार कर रहे हैं। यानि, अब हर हफ्ते इसरो एक रॉकेट को लॉन्च करेगा, जो हर साल 2 से 3 प्रक्षेपणों से ठीक उलट है। यानि, इसरो अब विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियां नासा और चीन की अंतरिक्ष एजेंसी की कतार में खड़ा हो गया है।
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