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तानाशाहों के तीन देश में औरतें मांग रही हैं आजादी, भारत के नारीवादियों ने क्यों साध रखी है चुप्पी?

इस्लामिक देशों में भले ही महिलाएं अपनी आवाज उठा रही हैं, लेकिन उन्हें पता है, कि उनकी आवाज अकेली है और उनकी आवाज को दुनिया का साथ नहीं मिलेगा। खासकर भारत जैसे देशों की चुप्पी और भी कचोटने वाली है।

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नई दिल्ली, सितंबर 28: तानाशाही सत्तावादियों के हाथ में सिसकते तीन देश ईरान, अफगानिस्तान और सऊदी अरब में महिलाएं जिस तरह से दमन के खिलाफ उठ खड़ी हुई हैं, वो बताता है, कि इन देशों की महिलाओं में अभी भी जिंदा रहने का हौसला बरकरार है, भले ही इनका दमन पिछले कई सालों से क्यों ना किया जा रहा हो। हालांकि, ज्यादातर वैश्विक मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करने वाले भारत के नारीवादियों की चुप्पी असहज करने वाली हैं, क्योंकि ये लड़ाई औरतों के हक और उनके सम्मान की लड़ाई है, जो हर देश की सीमा से परे है। ईरान में पिछले दो हफ्तों से महिलाओं का प्रदर्शन इस बात को जताने के लिए काफी है, कि उनका मन आजाद है और अब वो घुटकर रहने के लिए तैयार नहीं हैं, भले ही तानाशाह शासन व्यवस्था उन्हें गोलियों से भी छलनी क्यों ना कर दे।

महिलाओं का दमन करती सरकारें

महिलाओं का दमन करती सरकारें

इस्लामिक शासन वाले देशों की सरकारों का सबसे पहला एजेंडा महिलाओं का दमन होता है और चाहे वो देश ईरान हो, इराक हो, अफगानिस्तान हो या फिर कतर और ओमान ही क्यों ना हो। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस भले ही परिवर्तन पसंद हैं, लेकिन महिलाओं का दमन करने में वो भी पीछे नहीं हैं। ईरान में सिर्फ बाल दिखने पर 22 साल की एक लड़की को इस्लामिक मोरल पुलिस गिरफ्तार करती है और फिर उसकी संदिग्ध मौत हो जाती है, जिसके बाद इस अपमान के खिलाफ महिलाएं उठ खड़ी होती हैं और कट्टर सरकार को पलटने के लिए हुंकार भरती नजर आती हैं। वहीं, अफगानिस्तान में, महिलाओं के समूहों ने इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान सरकार के खिलाफ पिछले एक साल से लगातार विरोध प्रदर्शन करना जारी रखा है। वहां, सत्ताधारी कट्टरपंथी उग्रवादी समूह तालिबान, महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझता है और महिलाओं के खिलाफ इतने नियम बनाए गये हैं, कि उनके लिए हर एक कदम रखना बारूद की ढेर पर पैर रखने के बराबर होता है। महिलाओं के अधिकारों का कुचलना अफगानिस्तान के तालिबान अधिकारियों का सबसे प्रमुख काम है।

क्या महिलाओं को मिल सकती है 'आजादी'?

क्या महिलाओं को मिल सकती है 'आजादी'?

इस्लामिक देशों में भले ही महिलाएं अपनी आवाज उठा रही हैं, लेकिन उन्हें पता है, कि उनकी आवाज अकेली है और उनकी आवाज को दुनिया का साथ नहीं मिलेगा। खासकर भारत जैसे देशों की चुप्पी और भी कचोटने वाली है। भारत में आवाज उठाने वाला एक वर्ग, जिसे अभिजात्य वर्ग का तगमा हासिल है, वो मुस्लिम तुष्टिकरण करते करते कब हिजाब समर्थक बन गया, उसे खुद पता नहीं चला होगा, लेकिन ईरान और अफगानिस्तान की महिलाएं काले लबादे की बेड़ियों को तोड़ फेंकना चाहती हैं। हालांकि, अगर एक इमानदार सवाल पूछा जाए, कि क्या अशांत ईरान में महिलाओं के इस विशाल प्रदर्शन की वजह से मुल्लाहों की जमात झुकेगी और क्या हिजाब कानून में थोड़ी सी भी ढील दी जाएगी, इस बात की उम्मीद काफी कम है और ना ही ये प्रदर्शन, अफगानिस्तान के शासकों को महिलाओं के लिए नौकरियों और शैक्षिक अवसरों को बहाल करने के लिए राजी करेगी। लेकिन, पिछले कुछ सालों में वैश्विक स्तर पर जितने भी बड़े प्रदर्शन हुए हैं, उनमें महिलाओं की भागीदारी बताती हैं, कि ये जमात अपने अधिकारों के लिए, अपने कर्तव्यों के लिए सजग है और इन प्रदर्शनों में महिलाएं सबसे आगे हैं। ईरान में, नैतिकता पुलिस ने राजधानी तेहरान में 13 सितंबर को एक कुर्द महिला महसा अमिनी को मार दिया, और सरकार ने कहा, कि महसा ने जो हिजाब पहना था, वो तरीका गैर-इस्लामी था।

प्रदर्शन से निकलेगा नतीजा?

प्रदर्शन से निकलेगा नतीजा?

ईरान के इस्लामी शासकों को उसके चार दशक से अधिक के शासन में कई राजनीतिक अशांति का सामना करना पड़ा है। कभी चुनाव में धोखाधड़ी को लेकर, तो कभी आर्थिक संकट को लेकर, तो कभी पुलिस की बर्बरता को लेकर, लेकिन मौजूदा महिलाओं का प्रदर्शन सबसे अलग है, जिसमें अभी तक 75 लोग मारे जा चुके हैं। हालांकि, ईरान की इस्लामी सरकार जनता का खून पीने के लिए जानी जाती है और 2019 में ईंधन की ज्यादा कीमत को लेकर जब लोगों ने प्रदर्शन किया था, तो ईरानी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए अंधाधुंध बल प्रदर्शन किया और 300 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। लिहाजा, क्या इस बार महिलाओं के प्रदर्शन का कोई नतीजा निकलेगा, कहना बेहद मुश्किल है और ज्यादा संभावना यही है, कि इस्लामिक सरकार हिजाब पर अपने पूर्व फैसले से तनिट भी टस से मस नहीं होगी। ईरान के लिए सबसे अच्छी बात ये है, कि महिलाओं के प्रदर्शन को देश के युवा पुरूषों का समर्थन हासिल है, लेकिन अफगानिस्तान में, तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को पुरूषों का समर्थन नहीं मिला हुआ है। अफगानिस्तान की महिलाएं अकेली ही अपने हक की लड़ाई के लिए आवाज उठा रही हैं। हालांकि, अब धीरे धीरे ये आवाज भी खामोश होने लगी हैं।

ईरान से भी ज्यादा अफगानिस्तान में सख्त कानून

ईरान से भी ज्यादा अफगानिस्तान में सख्त कानून

अफगान महिलाओं को तो और भी ज्यादा सख्त कानून के तले रहना पड़ता है और तालिबान शासन में महिलाओं को सिर्फ सेक्स करने का सामान बनाकर छोड़ दिया गया है। महिलाओं को ना तो एंटरटेनमेंट सेक्टर में काम करने की इजाजत है और ना ही घर से अकेले बाहर निकलने की। अफगान महिलाओं को घर से बाहर निकलने के बाद पूरे लबादे में निकलना होता है और अगर वो ऐसा नहीं करती हैं, तो फिर उनके लिए सजा का प्रावधान है। अगर कोई महिला इन नियमों का उल्लंघन करती हैं, तो उन्हें सार्वजनिक कोड़े मारने का प्रावधान किया गया है। महिलाओं को देश के पुरूषों का साथ नहीं मिलना यही बताता है, कि देश के पुरूष भी यही चाहते हैं, कि महिलाएं उसी हाल में रहें। जबकि, बेरोजगारी, भूख, सुस्त कोविड, भ्रष्टाचार, सरकारी कुप्रबंधन, घटती राजस्व और सूखा से अफगानिस्तान परेशान है और इन बातों पर तालिबान का कोई ध्यान नहीं है, उसका बस एक ही काम है, महिलाओं ने बुर्का पहना हुआ है या नहीं, इस बात की तहकीका करना।

सऊदी में भी महिलाओं की आवाज बर्दाश्त नहीं

सऊदी में भी महिलाओं की आवाज बर्दाश्त नहीं

सऊदी अरब में अगस्त महीने में लीड्य यूनीवर्सिटी में पढ़ने वाली सलमा को एक एक्टिविस्ट के टवीट को रिट्विट किए जाने पर 34 साल की जेल की सजा दी गई। वहीं,सलमा को सजा दिए जाने के ठीक दो हफ्तों बाद, सऊदी अरब के अधिकारियों ने एक और महिला को 45 साल जेल की सजा सुनाई। इतनी लंबी सजा पाने वाली नौराह बिन सईद अल-कहतानी पर आरोप है, कि उन्होंने इंटरनेट का इस्तेमाल कर सऊदी अरब के सामाजिक ताने-बाने को खराब किया है। यह सऊदी अरब में किसी महिला को मिली सबसे लंबी अवधि की सजा है। जबकि, सलमा अल शहाब को शुरू में एक विशेष आतंकवादी अदालत ने तीन साल जेल की सजा सुनाई थी। अदालत ने कहा कि शहाब ने सार्वजनिक अशांति पैदा करने और नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा को अस्थिर करने के लिए एक इंटरनेट वेबसाइट का इस्तेमाल किया। हालांकि कुछ दिन बाद ही एक अपील अदालत ने इस सजा को बढ़ाकर 34 साल कर दिया। 34 साल की सलमा 2 बच्चों की मां है।

इराक की महिलाएं भी मांग रही हैं आजादी

इराक की महिलाएं भी मांग रही हैं आजादी

इराक में संवैधानिक तौर पर हिजाब पहनने के लिए किसी महिला को जबरन बाध्य करना असंवैधानिक है, लेकिन संविधान में हिजाब पर विरोधाभासी बातें लिखी हुई हैं, लिहाजा कट्टरपंथी उसका फायदा उठाकर महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य करती हैं। असल में इराकी संविधान में इस्लाम के कानून को संविधान का प्राथमिक स्रोत कहा गया और इसी का फायदा उठाकर कट्टरपंथी महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य करते हैं। 1990 के दशक से, जब सद्दाम हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के जवाब में अपना विश्वास अभियान शुरू किया, तो महिलाओं पर हिजाब पहनने का दबाव व्यापक हो गया। देश पर अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन के आक्रमण के बाद, इस्लामी पार्टियों के शासन में महिलाओं की स्थिति और खराब हो गई, जिनमें से कई के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इराक में भी महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य किया जाता है और पिछले हफ्ते ईरानी महिलाओं का समर्थन करने वाली एक इराकी महिला ने कहा कि, "मध्य बगदाद में मेरे विश्वविद्यालय के चारों ओर हिजाब समर्थक पोस्टर और बैनर के फ्लैशबैक ने मुझे हमेशा परेशान किया है। दो दशकों में स्थिति अपरिवर्तित बनी हुई है, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कथित तौर पर बच्चों और छोटी लड़कियों पर हिजाब लगाने के बाद ही प्रवेश करने दिया जाता है।

महिलाओं के खिलाफ रहता है अरब देश

महिलाओं के खिलाफ रहता है अरब देश

महिलाओं का कहना है कि, अगर अरब देशों में महिलाएं ऑनलाइन हिजाब के खिलाफ आवाज उठाती हैं और हिजाब हटाने या फिर हिजाब को जलाने की बात करती हैं, उनके खिलाफ भी ऑनलाइन कैन्पेन चलाया जाता है। जो महिलाएं हिजाब को अस्वीकार करने के लिए अपने सोशल मीडिया अकाउंट का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें अक्सर सेक्सिस्ट हमलों और धमकियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें शर्मसार करने और चुप कराने का प्रयास करते हैं। जो लोग हिजाब उतारने के अपने फैसले के बारे में खुलकर बात करती हैं, उन्हें सबसे कठोर प्रतिक्रिया मिलती है। हिजाब को महिलाओं के सम्मान और पवित्रता से जोड़ा जाता है, इसलिए इसे हटाना अवज्ञा के रूप में देखा जाता है। जबरन हिजाब के साथ महिलाओं का संघर्ष और उनके खिलाफ प्रतिक्रिया प्रचलित सांस्कृतिक आख्यान को चुनौती देती है जो कहती है कि हिजाब पहनना एक स्वतंत्र विकल्प है।

पाकिस्तान पर भारत और अमेरिका में वाकयुद्ध, जयशंकर के 'मूर्ख मत समझो' बयान पर आया US का जवाबपाकिस्तान पर भारत और अमेरिका में वाकयुद्ध, जयशंकर के 'मूर्ख मत समझो' बयान पर आया US का जवाब

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English summary
Women's struggle for freedom in the country of Islamic dictators, why is there no support from India?
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