क्या मोदी और जस्टिन ट्रूडो के व्यक्तिगत संबंध अच्छे नहीं हैं?
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का सात दिवसीय भारत दौरा विदेशी मीडिया में इस कारण चर्चा में है कि उनके स्वागत में भारत ने कथित रूप से उदासनीता दिखाई है.
ब्रिटेन के अख़बार 'द इंडिपेंडेंट' ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि भारत ने ऐसा सिख राष्ट्रवादियों से कनाडा की सहानुभूति के कारण किया है.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का सात दिवसीय भारत दौरा विदेशी मीडिया में इस कारण चर्चा में है कि उनके स्वागत में भारत ने कथित रूप से उदासनीता दिखाई है.
ब्रिटेन के अख़बार 'द इंडिपेंडेंट' ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि भारत ने ऐसा सिख राष्ट्रवादियों से कनाडा की सहानुभूति के कारण किया है.
इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी कुछ तस्वीरें शेयर की गईं, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली एयरपोर्ट पर तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस के स्वागत में गले लगाने के लिए खड़े रहे जबकि जस्टिन ट्रूडो की आगवानी में एक जूनियर मंत्री को भेजा गया.
https://twitter.com/CandiceMalcolm/status/964970680142897152
ख़ालिस्तान सहानुभूति?
कनाडाई प्रधानमंत्री ताजमहल देखने गए तो वो भी गुमनाम रहा. इसकी तुलना इसराइली पीएम नेतन्याहू के ताज दौरे से की गई जिसकी आगवानी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंचे थे.
द इंडिपेंडेंट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''हाल के वर्षों में कनाडाई और भारत की सरकार में उत्तरी अमरीका में स्वतंत्र राष्ट्र ख़ालिस्तान के प्रति बढ़े समर्थन के कारण तनाव बढ़ा है. दुनिया भर में 'सिख राष्ट्रवादी' पंजाब में ख़ालिस्तान नाम से एक स्वतंत्र देश के लिए कैंपेन चला रहे हैं. कनाडा में क़रीब पांच लाख सिख हैं. जस्टिन ट्रूडो की कैबिनेट में तीन सिख मंत्री हैं. इन्हीं मंत्रियों में से रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन हैं. हरजीत सज्जन के पिता वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य थे.''
अख़बार ने आगे लिखा है, ''सज्जन को पिछले साल पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ख़ालिस्तान समर्थक कहा था. हालांकि सज्जन ने सिंह के इस दावे को बकवास बताया था. भारत को तब भी ठीक नहीं लगा था जब ओंटेरियो असेंबली ने भारत में 1984 के सिख विरोधी दंगे की निंदा में एक प्रस्ताव पास किया था. 2020 तक कनाडा में ख़ालिस्तान समर्थकों की योजना स्वतंत्र पंजाब के लिए एक जनमत संग्रह कराने की है.''
भारत की उदासीनता?
क्या वाक़ई भारत ने जस्टिन ट्रूडो के स्वागत में उदासनीता दिखाई है? इंडो-कनाडा जॉइंट फोरम के उपाध्यक्ष फैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं, ''आमतौर पर यह होता है कि कोई भी राष्ट्राध्यक्ष आता है तो वो पहले द्विपक्षीय वार्ता को अंजाम देता है, उसके बाद वो निजी या पारिवारिक भ्रमण को तरजीह देता है. मेरा ख़्याल यह है कि जस्टिन ट्रूडो या उनके विदेश मंत्रालय ने जानबूझकर पारिवारिक भ्रमण को पहले रखा और आधिकारिक बातचीत को बाद में. वो पहले पारिवारिक दौरे कर रहे हैं, जिनमें साबरमती, ताजमहल और अमृतसर शामिल है और बाद में वो आधिकारिक दौरे की शुरुआत करेंगे.''
फैज़ान ने कहा, ''दोनों देशों के बीच कई मोर्चों पर अच्छे संबंध हैं. कनाडा में भारत की दिलचस्पी व्यापार, शिक्षा और टेक्नॉलजी को लेकर है. कनाडा में पढ़ाई के लिए जाने वाले छात्रों में दस गुने की बढ़ोतरी हुई है. कनाडा और भारत के बहुत पुराने रिश्ते हैं. दोनों कॉमनवेल्थ में रहे हैं. दोनों बड़े लोकतंत्र हैं. मैं नहीं मानता कि भारत जानबूझकर उदासनीता दिखा रहा है. मेरे ख़्याल से ये जस्टिन ट्रूडो की इच्छा रही होगी कि वो अपने बच्चों और पत्नी के साथ आए हैं तो पहले भारत घूम लें.''
उन्होंने कहा, ''जस्टिन ट्रूडो बचपन में भी भारत आ चुके हैं. तब उनके पिता कनाडा के प्रधानमंत्री थे. अभी वो निजी दौरे पर हैं और इसे ख़त्म करने के बाद आधिकारिक दौरा शुरू करेंगे तो पूरे सम्मान के साथ उनसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मिलेंगे.''
कनाडा में सिख
साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि उनकी कैबिनेट को विविधता के आधार पर देखा जाए तो चार सिख मंत्री हैं. उन्होंने कहा था कि भारत में सबसे ज़्यादा सिख हैं, लेकिन चार सिख मंत्री भारत में भी नहीं हैं. सिख 15वीं सदी का धर्म है और इसके सबसे ज़्यादा अनुयायी भारत में हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार में भारत में सिख धर्मावलंबी 2.08 करोड़ हैं जो कुल आबादी का 1.7 फ़ीसदी हैं. भारतवंशी सिखों की आबादी दुनिया के कई देशों में है, लेकिन कनाडा में सबसे ज़्यादा है. वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार कनाडा की कुल आबादी में भारतीय मूल के चार फ़ीसदी लोग हैं और इनमें 1.5 फ़ीसदी सिख हैं. पंजाबी कनाडा की संसद में तीसरी आधिकारिक भाषा है.
जस्टिन ट्रूडो ने जब अपनी कैबिनेट में चार सिख मंत्री की बात कही थी तो उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी कैबिनेट में लैंगिक समानता भी है. उन्होंने कहा था कि 30 वरिष्ठ मंत्रियों में 15 महिलाएं हैं. फ़ैजान कहते हैं कि जस्टिन ट्रूडो की दुनिया भर में उदार और सेक्युलर नेता की छवि है. इस कारण उनकी काफ़ी इज़्ज़त है.
व्यक्तिगत संबंध
उन्होंने कहा कि दो देशों के संबंध तो मायने रखते ही हैं पर साथ ही दो राष्ट्रध्यक्षों के व्यक्तिगत स्तर पर कैसे संबंध हैं ये भी मायने रखता है. उन्होंने कहा, ''कनाडा में कुछ सिख अलगाववादी समूह सक्रिय हैं और भारत ने उन्हें लेकर आपत्ति भी जताई है. संभव है कि किसी नेता के साथ भारतीय पीएम के अच्छे संबंध हों इसलिए वो दो क़दम आगे बढ़कर स्वागत करते हैं. हम बिन्यामिन नेतन्याहू को संदर्भ में इसे देख सकते हैं. प्रोटोकॉल तोड़ कर मिलना व्यक्तिगत संबंधों में मधुरता को भी इंगित करता है. संभव है कि ट्रूडो का व्यक्गित संबंध मोदी से प्रोटोकॉल तोड़ने स्तर का नहीं हो.''
विश्व मंच पर ट्रूडो और मोदी की जो पहचान है उस आईने से दोनों के व्यक्तिगत संबंधों को देखा जाए तो उसमें कितनी संभावना दिखती है? क्या मोदी के दक्षिणपंथी राजनेता की पहचान और जस्टिन ट्रूडो के उदार राजनेता की पहचान के कारण दोनों के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं?
बीजेपी नेता शेषाद्री चारी कहते हैं, ''हमारा इसराइल, ईरान, चीन और अमरीका इन सभी देशों से संबंध जिस स्तर के हैं उसी स्तर के कनाडा से हैं. कुछ ऐसे राष्ट्राध्यक्ष होते हैं जिनके साथ अच्छे संबंध हो जाते हैं तो उसके प्रति व्यवहार थोड़ा अलग दिखाई देता है. इसका मतलब यह नहीं है कि हम भारत और कनाडा के संबंधों को कम दर्ज़ा दे रहे हैं. भारत और कनाडा का संबंध बहुत पुराना है. हमारा व्यापार कम है और बढ़ाने की ज़रूरत है.''
शेषाद्री चारी कहते हैं, ''विदेशी संबंधों के मामले में कोई भी दक्षिणपंथी या वामपंथी नहीं होता है. इसके पहले की सरकार ने कनाडा के साथ संबंधों को मधुर बनाने का जितना प्रयत्न किया हम उससे भी आगे बढ़ाना चाहते हैं.''