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मध्य पूर्व के अखाड़े में ईरान बनाम सऊदी अरबः किसमें कितना है दम

इसी तरह कैस्पियन सागर के तटीय देशों के साथ राजनीतिक संबंधों और आर्थिक लेन-देन का फैलाव इस इलाक़े में गैस भेजने के लिए पाइपलाइन बिछाने का काम और गैस निर्यातक देशों के समूह या 'गैस के ओपेक' को और अधिक प्रभावशाली बनाने की दिशा में कोशिश.

ये गैस संकट से घिरे यूरोप वालों के लिए भी एक 'ट्रंप कार्ड' हो सकता है और तेहरान को भी विश्व की एक बड़ी अर्थव्यवस्था से जोड़ सकता है जो तरक्की के रास्ते को छोटा करने वाला पुल साबित होगा.

By BBC News हिन्दी
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सांकेतिक तस्वीर
AFP
सांकेतिक तस्वीर

ईरान और सऊदी अरब, मध्य-पूर्व की इन दो ताक़तों ने अपने आपसी होड़ को दुश्मनी की हद तक पहुंचा दिया है.

इस दुश्मनी की वजह कुछ तो ऐतिहासिक है और कुछ इस क्षेत्र की घटनाएं, जिन पर दोनों पक्षों की सीधी प्रतिक्रियाओं ने इस आग को हवा देने का काम ही किया है.

तेहरान और रियाद एक बार फिर एक नए विवाद की वजह से एक-दूसरे के सामने आ गए हैं.

दोनों ही देश खुद को मध्य-पूर्व के इस इलाके की सबसे बड़ी भूराजनीतिक ताक़त (जियोपॉलिटिकल पावर) साबित करने की फ़िराक़ में हैं.

हालांकि ईरान और सऊदी अरब पिछले कई दशकों से मध्य पूर्व की क्षेत्रीय राजनीति में एक-दूसरे के साथ लगातार स्पर्धा में उलझे हैं.

लेकिन सीरिया और इराक़ की जंग और मध्य पूर्व में कथित इस्लामिक स्टेट की मौजूदगी के मामले में भी कभी भी इतने नज़दीक़ से एक-दूसरे के सामने नहीं आए थे.

गैस पाइपलाइन, ईरान, भारत, सऊदी अरब, तेल-गैस भंडार
Getty Images
गैस पाइपलाइन, ईरान, भारत, सऊदी अरब, तेल-गैस भंडार

पेरिस समझौते के बाद

शायद यमन के मोर्चे पर तेहरान और रियाद एक दूसरे के इतने नजदीक खड़े हैं कि उनकी दुश्मनी कभी भी धमाके की शक्ल अख्तियार कर सकती है.

अब तक ये दोनों देश अपने प्रतिद्वंद्वी को कमज़ोर करने और अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए रणनीति के तौर पर पैसा खर्च करते थे ताकि अपने विरोधी पर बाहरी और अंदरूनी दबाव बनाए रख सकें.

लेकिन मध्य-पूर्व में बिछी शतरंज की इस बिसात पर ईरान के हाथ में ऐसा मोहरा है जो शह और मात के इस खेल में बाज़ी कभी भी तेहरान के पक्ष में पलट सकता है और वो है प्राकृतिक गैस.

ग्रीनहाउस गैस कम करने के मुद्दे पर अमरीका को छोड़कर विश्व के बाक़ी देशों ने जब पेरिस समझौते पर दस्तखत किए थे तो ऐसा लगने लगा था कि रजामंद देश इसे लागू करने और उस पर अमल करने के लिए ज़रूरी रास्तों की तलाश में लग गए हैं.

ज़्यादातर देश इस नतीजे पर पहुंचे कि जीवाश्म ईंधन (फ़ॉसिल फ़्यूल्स) के इस्तेमाल को धीरे-धीरे कम किया जाए क्योंकि इसमें प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले पदार्थ मात्रा में पाए जाते हैं जो ग्रीनहाउस गैस पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड
Getty Images
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प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा भंडार

लेकिन इस बीच जब तक फ़ॉसिल फ़्यूल्स छोड़ कर ऊर्जा के स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोतों तक नहीं पहुंच पाते हैं तब तक प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल एक पुल के रूप में हो सकता है क्योंकि प्राकृतिक गैस में प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थ बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं.

और हाल के दिनों में टेक्नोलॉजी के फ़ील्ड में आई तरक़्क़ी, इसकी क़ीमत और इसकी उपलब्धता को देखते हुए तेल का एक वास्तविक और मुनासिब पर्याय प्राकृतिक गैस बन सकता है.

मध्य-पूर्व में अब तक जियोपॉलिटिक्स और तेल ही अरब देशों के आपसी संबंधों का निर्णायक फ़ैक्टर रहा है.

लेकिन ये मुमकिन है कि दुनिया की खुशकिस्मती से प्राकृतिक गैस एक बड़े फ़ैक्टर के तौर पर या दूसरे शब्दों में कहें तो विश्व की 'ऊर्जा राजनीति' इस क्षेत्र के राजनीतिक संबंधों में तब्दीली ला सके.

ईरान विश्व का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार वाला देश है.

दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड
Getty Images
दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड

प्रिंस सलमान का विज़न 2030

मध्य-पूर्व की क्षेत्रीय राजनीति की दो महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में तुरुप का पत्ता ईरान के हाथ में है क्योंकि रूस के बाद प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा भंडार ईरान के पास है.

सऊदी अरब का प्राकृतिक गैस का भंडार लगभग नगण्य है और वह इसको अच्छी तरह जानता है इसलिए इस प्रतिद्वंद्विता में अपनी जीत को लेकर वो चिंतित भी है.

प्राकृतिक गैस के मामले में सऊदी अरब की तंगी को देखते हुए उसके नौजवान शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान की रणनीति यही है कि साल 2030 के आउटलुक प्लान में ऊर्जा के अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ाना है.

सऊदी अरब 'तेल के बाद' के समय की तैयारी कर रहा है और इसी तरह वो मध्य पूर्व में अपनी राजनीति को भी आगे बढ़ा रहा है.

सऊदी अरब की भौगोलिक स्थिति और सौर ऊर्जा की तरफ़ बढ़ते उसके रुझान को देखते हुए ये अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश की मुनासिब जगह बन सकती है.

गैस पाइपलाइन, ईरान, भारत, सऊदी अरब, तेल-गैस भंडार
Reuters
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यमन की लड़ाई

लेकिन यहां भी उसके सामने दो चुनौतियाँ हैं.

एक तो ये कि इस क्षेत्र में भी ईरान की स्थिति बहुत अच्छी है और हो सकता है कि इस क्षेत्र में वो भी निवेश करे और दूसरी समस्या ये है निवेश के बाद बहुत अच्छी हालत में भी सौर ऊर्जा मुनाफे के मामले में प्राकृतिक गैस का मुक़ाबला नहीं कर पाएगी.

ऐसा लगता है कि सऊदी अरब अपनी कमज़ोरी से वाकिफ़ है और वो कोशिश में है कि जितना संभव हो सके ईरान को हर क्षेत्र में कमजोर किया जा सके ताकि वो अपने प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता न दे सके और इसी वजह से क्षेत्र के सभी विवादों में ईरान के विरोध (जैसे यमन की लड़ाई) में आकर कोशिश करता है कि परमाणु क़रार के बाद विश्व में उसके राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के फैलाने के प्रयास को नाकाम किया जा सके.

ईरान के साथ परमाणु क़रार को ख़तरनाक कहने में सऊदी अरब को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का साथ भी मिल ही गया था.

गैस पाइपलाइन, ईरान, भारत, सऊदी अरब, तेल-गैस भंडार
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पाकिस्तान के रास्ते

लेकिन अब तक के इन तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद प्राकृतिक गैस का बड़ा ज़ख़ीरा रखने का सेहरा ईरान ही के सिर पर रहेगा.

इन दिनों तेहरान आंतरिक और बाहरी संकट में नहीं तो कम से कम ये ज़रूर है कि मुश्किलें उसके दर पर दस्तक दे रही हैं.

आंतरिक असंतोष, आर्थिक कठिनाइयां और अमरीका के परमाणु क़रार से बाहर निकल जाने के बाद की स्थिति से उत्पन्न हालात ने ईरान के हुक्मरानों को चारों ओर से घेर रखा है.

इसी वजह से ये पता भी नहीं चलता है कि ईरान किस हद तक अपने 'गैस संबंधों' को व्यापक बना सकता है या व्यापक बनाने की दिशा में काम कर सकेगा.

मिसाल के तौर पर अब तक अधर में लटके हुए 'पीस पाइपलाइन' के नाम से विख्यात प्राजेक्ट पर काम जिस के माध्यम से ईरान का गैस भारत और पाकिस्तान को जाना था और कुछ ऊंची उड़ान वाली योजना जैसे भविष्य में चीन तक गैस पहुंचाना आदि.

तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत (तापी) के बीच गैस पाइपलाइन परियोजना
Reuters
तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत (तापी) के बीच गैस पाइपलाइन परियोजना

गैस निर्यातक देशों का समूह

इसी तरह कैस्पियन सागर के तटीय देशों के साथ राजनीतिक संबंधों और आर्थिक लेन-देन का फैलाव इस इलाक़े में गैस भेजने के लिए पाइपलाइन बिछाने का काम और गैस निर्यातक देशों के समूह या 'गैस के ओपेक' को और अधिक प्रभावशाली बनाने की दिशा में कोशिश.

ये गैस संकट से घिरे यूरोप वालों के लिए भी एक 'ट्रंप कार्ड' हो सकता है और तेहरान को भी विश्व की एक बड़ी अर्थव्यवस्था से जोड़ सकता है जो तरक्की के रास्ते को छोटा करने वाला पुल साबित होगा.

ऐसा लगता है कि इस क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में अब तक दोनों पक्ष तेहरान और रियाद केवल हारे ही हैं. जिसका सबसे बड़ा नमूना आज ख़ून से रंगी यमन की लड़ाई का मैदान है.

गैस पाइपलाइन, ईरान, भारत, सऊदी अरब, तेल-गैस भंडार
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गैस पाइपलाइन, ईरान, भारत, सऊदी अरब, तेल-गैस भंडार

अगर इन दो क्षेत्रीय महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में प्राकृतिक गैस की भूमिका और बढ़ जाए तो इस प्रकार के विवाद से अधिक ये ख़ुद उनके लिए और दुनिया के लिए भी फायदे की बात होगी.

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English summary
Iran versus Saudi Arabia in the Middle East How much is it in the dust
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