गोविंद पानसरे की हत्या के सात साल बाद कहां तक पहुंची है जांच?
पानसरे के परिवार को अब तक न्याय का इंतज़ार है. परिवार ने मांग की है कि जांच जल्द से जल्द पूरी हो और परिवार को न्याय मिल सके.
सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथी नेता गोविंद पानसरे की सात साल पहले कोल्हापुर में उनके घर के सामने हत्या कर दी गई थी.
उनकी हत्या किन लोगों ने किस उद्देश्य से की, इस पर आज तक रहस्य बना हुआ है.
दूसरी ओर पानसरे परिवार को अब तक न्याय का इंतज़ार है. परिवार ने मांग की है कि जांच जल्द से जल्द पूरी हो और उन्हें न्याय मिले.
परिवार ने मामले की जांच महाराष्ट्र सीआईडी की विशेष जांच दल (एसआईटी) से वापस लेकर एटीएस को सौंपने की मांग की है. परिवार ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जिस पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने जांच अधिकारियों को गोविंद पानसरे हत्याकांड की 2020 से अब तक हुई जांच के नतीजे पर रिपोर्ट देने को कहा है.
बीबीसी से बात करते हुए गोविंद पानसरे की बहू डॉ. मेघा पानसरे ने कहा, "जांच संतोषजनक नहीं है. जांच तंत्र अभियुक्त को पकड़ने में नाकाम रहा है. अभियुक्त अभी भी फ़रार हैं. इसलिए जांच एटीएस को सौंपी जानी चाहिए."
एसआईटी के जांच अधिकारी तिरुपति काकड़े ने बीबीसी से कहा कि "अदालत के आदेश के अनुसार कार्रवाई की जाएगी."
गोविंद पानसरे की 20 फरवरी, 2015 को कोल्हापुर में हत्या कर दी गई थी. मामले में अब तक 10 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया जा चुका है और दो फ़रार हैं.
अप्रैल में गोविंद पानसरे के परिवार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें तीन प्रमुख मांगें थीं-
क्या है पानसरे परिवार की मांग?
- 1. गोविंद पानसरे को गोली मारने वाले हमलावर कौन हैं, इसका पता लगाने की ज़िम्मेदारी विशेष जांच दल (एसआईटी) से तत्काल वापस लेकर महाराष्ट्र एटीएस को सौंपी जाए.
- 2. गोविंद पानसरे हत्याकांड के मास्टरमाइंड का पता लगाने के लिए महाराष्ट्र एटीएस की विशेष टीम बनाई जाए.
- 3. एसआईटी और सीबीआई इस मामले में एटीएस को पूरी मदद दें, अदालत यह निर्देश दे.
अंधविश्वास से लड़ना दाभोलकर की ग़लती थी?
पानसरे परिवार के वकील अभय नवगी ने सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति रेवती धेरे और न्यायमूर्ति वी.एस. जी. बिष्ट की बेंच को जानकारी दी थी कि हत्या के सात साल बीतने के बाद भी जांच में कोई सफलता नहीं मिली है.
नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्या के मामलों में अदालत ने जांच तंत्र पर शुरूआत में सख़्ती दिखाई थी. बाद में, दाभोलकर हत्याकांड मामले की जांच कर रही सीबीआई और एसआईटी ने एकसाथ दोनों मामले पर काम करने की इच्छा जताई थी.
मेघा पानसरे कहती हैं, ''चूंकि यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है इसलिए हाईकोर्ट ने केस शुरू होने पर भी जांच जारी रखने का आदेश दिया है.''
याचिका में मांग की गई है कि डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, प्रो. कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्याओं की ठीक से जांच नहीं हो पाई है. ये हत्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं. इसलिए इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड का पता लगाने के लिए जांच एटीएस को सौंपी जाए.
'हमें गौरी जैसी हत्याओं की आदत पड़ती जा रही है!'
वहीं एसआईटी की जांच अधिकारी तिरुपति काकड़े ने बीबीसी मराठी से बात करते हुए कहा कि इस मामले में अभी कोई जानकारी नहीं दी जा सकती है.
पानसरे परिवार के वकील अभय नवगी ने जांच को लेकर दो सवाल उठाए हैं. पहला सवाल यह है कि क्या डॉ. दाभोलकर, पानसरे, गौरी लंकेश और प्रोफ़ेसर कलबुर्गी मामले आपस में जुड़े हुए हैं और अभियुक्त वही हैं. इन हत्याओं के लिए 40 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था हालांकि जांच में मास्टरमाइंड का पता नहीं चल पाया.
वहीं उनका दूसरा सवाल यह है कि डॉ. दाभोलकर हत्याकांड के अभियुक्त को पानसरे हत्याकांड में गवाह के तौर पर कैसे दिखाया गया था. इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के बाद पुलिस ने उन पर आरोप लगाया. नवगी ने पूछा है कि जांच में ऐसी त्रुटियां कैसे रह गईं.
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हाईकोर्ट ने क्या कहा?
गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सीआईडी की विशेष जांच टीम को निर्देश दिया है कि वह 2020 और 2022 के बीच जांच में क्या-क्या हुआ, इस पर रिपोर्ट दें. पानसरे परिवार के वकील अभय नवगी ने बीबीसी से कहा, "अदालत ने एसआईटी को गोविंद पानसरे हत्याकांड पर 21 जुलाई को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है."
इस बीच, अदालत ने राज्य सरकार को गोविंद पानसरे की हत्या की जांच कर रहे अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक तिरुपति काकड़े का तबादला करने की अनुमति दे दी है. तिरुपति काकड़े पिछले साढ़े चार साल से मामले की जांच कर रहे हैं. अदालत ने यह भी कहा कि तिरुपति काकड़े को चार सप्ताह के भीतर एक नए जांच अधिकारी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए. फिर काकड़े को बदला जा सकता है.
पानसरे हत्याकांड में अब तक कितने आरोपी गिरफ़्तार किए जा चुके हैं?
वामपंथी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में एसआईटी अब तक 12 अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर चुकी है. कोल्हापुर के सरकारी वकील शिवाजीराव राणे ने बताया कि दो अभियुक्त अभी भी फ़रार हैं.
कौन-कौन अभियुक्त हैं गिरफ़्तार
समीर गायकवाड
सांगली के समीर गायकवाड़ को एसआईटी ने पानसारे की हत्या के बाद सितंबर, 2015 में गिरफ़्तार किया था. समीर हिंदू समर्थक संगठन सनातन संस्था के सक्रिय कार्यकर्ता हैं. पानसरे हत्याकांड में एसआईटी ने समीर गायकवाड़ के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाख़िल किया है.
कोल्हापुर की अदालत ने समीर गायकवाड को ज़मानत दी थी. इसके खिलाफ पुलिस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. हालांकि समीर अपने ऊपर चल रहे दूसरे मामलों के चलते अभी जेल में है.
डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े
साल 2016 में पानसरे हत्याकांड की एसआईटी ने हिंदू जनजागृति समिति ते वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ़्तार किया. डॉ. तावड़े को पानसरे हत्याकांड का मास्टरमाइंड बताया गया था.
डॉ. तावड़े को इस मामले में ज़मानत मिल गई है और पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. वहीं डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में तावड़े की ज़मानत खा़रिज हो चुकी है.
अमित दिग्वेकर
अमित दिग्वेकर को जनवरी 2019 में एसआईटी ने गिरफ़्तार किया था. उन पर गोविंद पानसरे के घर की रेकी करने का आरोप है.
अमोल काले
2018 में पानसरे कांड के अभियुक्त अमोल काले की पुलिस हिरासत की मांग करते हुए रिमांड अर्जी में लिखा है, ''डॉ. पानसरे की हत्या में दो देशी पिस्टल का इस्तेमाल किया गया. इनमें से एक पिस्टल से डॉ. दाभोलकर की हत्या हुई और जबकि दूसरी का इस्तेमाल प्रोफ़ेसर कलबुर्गी की हत्या में किया गया था."
अमोल काले को कर्नाटक पुलिस ने कर्नाटक की पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या के सिलसिले में गिरफ़्तार किया था. इसके बाद एसआईटी ने काले को पानसरे मामले में गिरफ़्तार किया था.
वासुदेव सूर्यवंशी एवं भरत कुर्ने
वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या के सिलसिले में वासुदेव सूर्यवंशी और भरत कुर्ने को बैंगलोर पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. 2018 में महाराष्ट्र एसआईटी ने गोविंद पानसरे हत्याकांड के दोनों अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया था.
जांच दल ने अदालत में दावा किया था कि दोनों पानसरे की हत्या की साजिश में शामिल थे. इस मामले में कोल्हापुर कोर्ट ने 2020 में भरत कुर्ने की ज़मानत अर्जी ख़ारिज कर दी थी.
कुर्ने की ज़मानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान पुलिस ने दावा किया था कि डॉ. तावड़े ने पानसरे की हत्या में इस्तेमाल हुई दो बंदूकें कुर्ने को नष्ट करने के लिए दी थीं.
सचिन अंदुरे
डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में सीबीआई द्वारा गिरफ़्तार किए गए सचिन अंदुरे को 2019 में गोविंद पानसरे हत्याकांड में गिरफ़्तार किया गया था. कोर्ट ने सचिन अंदुरे को बरी करने की याचिका ख़ारिज कर दी है. कोर्ट ने 2020 में उनकी ज़मानत अर्जी ख़ारिज कर दी थी. अभियोजन पक्ष का दावा है कि पानसरे की हत्या के समय अंदुरे की मौजूदगी थी.
अमित बद्दी एवं गणेश मिस्किन
अमित और गणेश को महाराष्ट्र एटीएस ने 2018 में नालासोपारा हथियार जब्ती मामले में गिरफ़्तार किया था. एटीएस ने उसके ख़िलाफ़ चार्ज़शीट दाख़िल की थी. कर्नाटक पुलिस ने पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की 2017 की हत्या के मामले में भी दोनों को गिरफ़्तार किया था.
शरद कालस्कर
2019 में पानसरे हत्याकांड की एसआईटी ने डॉ. दाभोलकर हत्याकांड के अभियुक्त शरद कालस्कर को गिरफ़्तार किया. कालस्कर पर आरोप है कि वे गोविंद पानसरे की हत्या की साजिश रचने के लिए बेलगाम में हुई बैठक में शामिल थे.
पानसरे मामले में फ़रार अभियुक्त
गोविंद पानसरे हत्याकांड के दो अभियुक्त सारंग अकोलकर और विनय पवार भगोड़े घोषित हैं.
पानसरे हत्याकांड की सुनवाई मार्च में कोल्हापुर की एक अदालत में हुई थी. बीबीसी से बात करते हुए अभियुक्त के वकील वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कहा, 'कॉमरेड पानसरे की हत्या किसने की? इसका अब तक पता नहीं चला है.'
इसका कारण यह है कि जांच एजेंसी ने पहले दावा किया कि समीर गायकवाड़ और उसके बाद दावा किया कि विनय पवार और अकोलकर ने उन्हें गोली मारी. तो सवाल यही उठता है कि आख़िर किसने उनकी हत्या की थी. जांचकर्ताओं ने अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि पानसरे की हत्या किसने की है.
नालासोपारा में महाराष्ट्र एटीएस की कार्रवाई
2018 में महाराष्ट्र एटीएस ने मुंबई के पास नालासोपारा इलाके में कुछ हथियार ज़ब्त किए थे. शरद कालस्कर के घर से बम बनाने की जानकारी से संबंधित दो नोट्स बरामद किए गए.
एटीएस ने मामले में वैभव राउत, सुवंधा गौंधलेकर, श्रीकांत पंगारकर, अविनाश पवार, लीलाधर, वासुदेव सूर्यवंशी, सुचित रंगास्वामी, भरत कुर्ने, अमोल काले, अमित बद्दी और गणेश मिस्किन को गिरफ़्तार किया था.
एटीएस अधिकारियों ने चार्ज़शीट में कहा कि उन्हें इस बात के सबूत मिले हैं कि हिंदू धर्म, मानदंडों और परंपराओं की आलोचना करने वाले साहित्यिक और सामाजिक शख़्शियतों को रेकी द्वारा निशाना बनाया जा रहा था और उन पर हमला करने की योजना बनाई गई थी.
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