वैज्ञानिकों की सोच से भी 33,000 साल पुराना निकला मानव का इतिहास, अफ्रीका में दबा था सबसे बड़ा साक्ष्य
लंदन, 14 जनवरी: मानव का इतिहास कितना पुराना है। अभी तक इसके बारे में वैज्ञानिकों की जो सोच थी, एक शोध की वजह से वह सोच बदल देनी पड़ेगी। क्योंकि, साक्ष्यों के आधार पर इंसान का इतिहास जितना पुराना मानकर चला जा रहा था, अभी तक यह तय हो चुका है कि वह कम से कम उससे भी 33,000 से 36,000 साल पुराना है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की अगुवाई में यह रिसर्च पूर्वी अफ्रीका के इथियोपा में ज्वालामुखी की घाटियों में किया गया है, जिसके चौंकाने वाले साक्ष्य मिले हैं।
वैज्ञानिकों की सोच से भी पुराना हमारा इतिहास
ओमो प्रथम होमो सेपियन्स की हड्डियों का एक जखीरा था, जो 1960 की दशक में इथियोपिया के ओमो किबिश से निकला था। यह इलाका इथियोपिया में उस घाटी में था, जहां ज्वालामुखी विस्फोट से जुड़ी घटनाओं की वजह से मानवीय जीवाश्म संरक्षित पड़े थे। दशकों तक वैज्ञानिकों ने यही माना कि ओमो प्रथम की हड्डियां 2,00,000 साल से भी कम पुराने हैं। अब अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि ज्वालामुखी विस्फोट की राख में दबे पड़े जीवाश्म कम से कम 2,33,000 साल से भी पुराने हैं। यानी इतना तय है कि वो हड्डियां कम से कम इतने वर्ष पुराने मानवीय इतिहास की गारंटी दे रही हैं।
2,33,000 साल से भी पुराना हो सकता है हमारा इतिहास
यह रिसर्स इसी बुधवार को जर्नल नेचर में प्रकाशित हुई है। यह रिसर्च इथियोपियाई घाटी में ज्वालामुखी विस्फोटों के इतिहास का पता लगाने की कोशिशों का एक हिस्सा है। जैसे-जैसे शोधकर्ता ज्वालामुखी विस्फोटों की तारीख मुकर्रर करते चलेंगे, मानवीय इतिहास की भी पूरी कड़ी जुड़ती चली जाएगी। ऐसा वैज्ञानिकों को उम्मीद है। हो सकता है कि आने वाले समय में मानवीय इतिहास के साक्ष्य हमें 2,33,000 साल से भी काफी पीछे लेकर चले जाएं।
2017 में मोरक्को में भी मिले थे कुछ साक्ष्य
हम अब तक यही जानते थे कि ओमो हड्डियां होमो सेपियन्स के ज्ञात सबसे पुराने जीवाश्म हैं; और इस हिसाब से आधुनिक मानव का इतिहास पूर्वी अफ्रीका में करीब 2,00,000 साल पुराना बताया जाता था। हालांकि, 2017 में मोरक्को में जब 3,15,000 साल पुरानी हड्डियां मिली थीं, तो लगता था कि वो भी होमो सेपियन्स की हैं (लेकिन,आज की तारीख तक कुछ पुरातत्वविज्ञानी मोरक्को वाले जीवाश्म को होमो सेपियन्स का जीवाश्म मानने को तैयार नहीं हैं)। लेकिन, पूर्वी अफ्रीका में जो अब ओमो जीवाश्म मिले हैं, उससे यह संकेत मिल रहा है कि वैज्ञानिकों की सोच से भी हजारों वर्ष पहले धरती पर इंसान मौजूद थे।
इतिहास तय करना इतना आसान नहीं रहा
कैंब्रिज की तेफरा लैबोरेटरी की चीफ और इस स्टडी की को-ऑथर क्रिस्टाइन लेन ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा है कि, 'संभव है कि नई खोज और नया शोध हमारी प्रजाति की उम्र को और भी पीछे ले जाए।' इथियोपिया में पाए गए दूसरे जीवाश्मों के समय के निर्धारण के लिए वैज्ञानिकों ने रेडियोमेट्रिक तरीके का इस्तेमाल किया है, जिसके तहत जीवाश्म के ऊपरी और निचले हिस्से के ज्वालामुखी की राख की परतों का समय निर्धारित किया गया है। लेकिन, इस स्टडी को लीड करने वाले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के भूगोलविज्ञानी सेलिन वायडल के मुताबिक ओमो प्रथम के ऊपर की राख के साथ वे ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि वह बहुत ही महीन थे।
वैज्ञानिकों ने अपनाया ये तरीका
लेकिन, उस राख के रसायनों के विश्लेषण से वायडल की टीम ने इसे बगल के शाला ज्वालामुखी से लिंक जोड़ा। हालांकि, वे खुद उस राख का समय तो नहीं निर्धारित कर पाए, लेकिन उसी ज्वालामुखी से निकले झांवों (जले हुए पत्थर जो हल्के हो जाते हैं) का समय निर्धारित करने में कामयाब रहे जो चारों तरफ बिखरे बड़े थे। वायडल के मुताबिक, 'हर विस्फोट का अपना फिंगरप्रिंट होता है - सतह के नीचे इसका अपना विकासवादी इतिहास होता है, जो कि मैग्मा के अपनाए हुए मार्ग से निर्धारित होती है।' एक बार आप चट्टान को तोड़ते हुए तो उसके अंदर के मिनरल अलग हो जाते हैं और आप उसके समय को तय कर पाते हैं और उसके रसायन को पहचान लेते हैं।(ऊपर की सभी तस्वीरें प्रतीकात्मक)
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36,000 साल पुराना इतिहास होने का भी दावा
वायडल की टीम ने यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो को जो झांवों का सैंपल भेजा था,उसके निर्धारण से यह तय हुआ कि ज्वालामुखी विस्फोट 2,33,000 साल पहले हुआ था। हालांकि,वायडल ने फिर कहा है कि, 'हम मानवीयता की तारीख सिर्फ हमारे पास मौजूद जीवाश्मों से ही तय कर सकते हैं, इसलिए निश्चित तौर पर यह कहना असंभव है कि हमारी प्रजाति इतनी ही पुरानी है।' नेचर पोर्टफोलियो के ट्विटर के मुताबिक इंसान का इतिहास पहले के अनुमानों से कम से कम 36,000 साल पुराना होने के आसार हैं।