चीन की नाक में नकेल डालने G7 ने लॉन्च किया पृथ्वी का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट, GIP के सामने बौना बना BRI
आरई प्रोजेक्ट के तहत समझौता करने वाले किसी भी देश के लिए सबसे पहला शर्त ही ये होता है, कि समझौते की शर्त को सार्वजनिक नहीं करना है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीलंका है...
नई दिल्ली, जून 27: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रविवार को गरीब देशों में वैश्विक इन्फ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रमों के लिए करीब 600 अरब डॉलर जुटाकर चीन की बेल्ट एंड रोड पहल को टक्कर देने के लिए जी7 परियोजना की घोषणा कर दी है। बाइडेन के इस प्रस्ताव से कुछ समय पहले व्हाइट हाइस ने कहा कि, 'जी 7 भागीदारों के साथ, हमारा लक्ष्य 2027 तक वैश्विक बुनियादी ढांचे के निवेश में $ 600 बिलियन जुटाना है'। आइये जानते हैं, कि क्या है ये प्रोजेक्ट और कैसे ये चीन के बीआरई को टक्कर देगा?
600 अरब डॉलर का है मेगा प्रोजेक्ट
ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर पार्टनरशिप की चर्चा पिछले साल जी7 की बैठक के दौरान की गई थी और इस प्रोजेक्ट का मकसद दुनिया के उन देशों में बुनियाजी इन्फ्रास्ट्रक्चर, जैसे सड़क और बंदरगाहों का विकास करना है, जिनकी उन्हें सख्त जरूरत है और जिसके लिए वो चीन पर निर्भर रहते हैं। चीन ने अरने बीआरई प्रोजेक्ट के जरिए दुनियाभर के कई गरीब देशों को अपने कर्ज के जाल में बुरी तरफ से फंसाया है और दुनिया भर में रणनीतिक प्वाइंट्स पर चीन ने अपने आर्थिक, राजनयिक और सामरिक जाल को फैलाया है, जिससे पश्चिमी देशों की पकड़ काफी ढीली पड़ गई है और चूंकी चीन का मिशन गरीब देशों को प्रताड़ित करना है, लिहाजा चीन को रोकना काफी जरूरी हो जाता है। ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर पार्टनरशिप को लेकर अमेरिका के बाइडेन प्रशासन का मानना है कि, ये गरीब देशों के लिए चीन से बचने के लिए काफी बेहतर विकल्प बनेगा।
बीआरई और जीआईपी में अंतर
बीआरई प्रोजेक्ट के तहत समझौता करने वाले किसी भी देश के लिए सबसे पहला शर्त ही ये होता है, कि समझौते की शर्त को सार्वजनिक नहीं करना है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीलंका है, जिससे चीन ने 99 सालों के लिए हंबनटोटा बंदरगाह भी लीज पर ले लिया और श्रीलंका को हंबनटोटा पोर्ट बनाने के लिए चीन को कर्ज भी चुकाना होगा। यानि, लीज पर देने के बाद भी श्रीलंका को चीनी कर्ज चुकाना होगा। ये खुलासा एक दिन पहले श्रीलंका की संसद में पेश किए गये रिपोर्ट में हुआ है।
बीआरई है सिर्फ चीन का बहाना
चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में चीन के द्वारा नियंत्रित कंपनियां रहती हैं, जो चीनी सरकार के पैसे का इस्तेमाल करती हैं, लिहाजा बीआरई प्रोजेक्ट पर पूरी तरह से चीन का नियंत्रण होता है, वहीं, जीआईपी परियोजना में जी7 देश खुद शामिल नहीं होकर निजी कंपनियों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी और जी7 देश खुद सीमित मात्रा में धन का निवेश करेंगी। लिहाजा, किसी भी गरीब देश पर जी7 देशों का कंट्रोल नहीं होगा।
600 अरब डॉलर जुटाए जाएंगे
अमेरिका ने कहा है कि, ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान के लिए साल 2027 तक 600 अरब डॉलर जुटाने का प्रस्ताव रखा गया है और इस पूंजीवादी बनाम साम्यवादी परिदृश्य में, अमेरिकी अधिकारियों का कहना है, इस प्रोजेक्ट में जो देश शामिल होंगे, वो खुद कंपनियों से डील करेंगे, लिहाजा उन देशों पर किसी भी तरह का प्रेशर नहीं होगा। जबकि, चीन अपने बीआरई प्रोजेक्ट के जरिए कमजोर देशों की राजनीति और उसकी वित्तीय व्यवस्था को अपने नियंत्रण में कर लेता है, लिहाजा ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान चीन को खतरनाक पंजों से बचने के लिए गरीब देशों के पास एक विकल्प के तौर पर होगा। व्हाइट हाउस ने कहा कि 2027 तक संयुक्त राज्य सरकार "अनुदान, संघीय वित्तपोषण और निजी क्षेत्र के निवेश का लाभ उठाकर" $ 600 बिलियन के आंकड़े को हासिल करने की कोशिश करेगी।