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सौ देशों ने की ऐतिहासिक प्रतिज्ञा, पर भारत ने नहीं लिया हिस्सा

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ग्लासगो, 03 नवंबर। ग्लासगो में जारी जलवायु सम्मेलन में मंगलवार को दुनिया के सौ देशों ने कसम उठाई कि मीथेन गैस का उत्सर्जन 2030 तक एक तिहाई कर देंगे. इससे पृथ्वी का तापमान कम रखने में मदद मिलेगी. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े उत्सर्जक तो कसम उठाने वालों में शामिल ही नहीं हैं.

Provided by Deutsche Welle

यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उरसूला फोन डेर लेयेन ने कहा, "मीथेन उन गैसों में से है जिनका उत्सर्जन हम सबसे जल्दी घटा सकते हैं. इससे जलवायु परिवर्तन तुरंत धीमा होगा."

मीथेन भी एक ग्रीन हाउस गैस है जो कार्बन डाई ऑक्साइड से 80 गुना ज्यादा विकिरण सोखती है और औद्योगिक क्रांति से अब तक 30 प्रतिशत गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है. कार्बन डाई ऑक्साडइ से यह इस लिहाज से अलग है कि वातावरण में हमेशा नहीं रहती.

ऐतिहासिक क्षण

सितंबर में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने मीथेन उत्सर्जन कम करने के समझौते का एक प्रस्ताव तैयार किया था. तब से इस समझौते पर कनाडा, ब्राजील, दक्षिण कोरिया, जापान, कोलंबिया और अर्जन्टीना समेत सौ देश दस्तखत कर चुके हैं. 'ग्लोब मीथेन प्लेज' पर दस्तखत करने वाले ये सौ देश कुल उत्सर्जन के 40 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं.

कई विशेषज्ञों ने इस समझौते का स्वागत किया है. पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की प्रमुख फातिह बिरोल ने कहा, "यह बहुत बड़ी बात है. यह एक ऐतिहासिक क्षण है." बिरोल ने अनुमान जाहिर किया कि इस समझौते से इतना उत्सर्जन कम होगा जितना सारे जहाज, विमान और अन्य वाहन कर रहे हैं.

लंदन के इंपीरीयल कॉलेज में भौतिकविज्ञानी जोआना हेग ने कहा, "आज जो वचन लिया गया है यह 2045 तक तापमान में होने वाली वृद्धि को 0.33 डिग्री तक कम करेगा."

थोड़ी चूक रह गई

ग्लासगो में सौ देशों ने मीथेन उत्सर्जन कम करने की जो प्रतिज्ञा ली है, उसे लेकर कुछ विशेषज्ञ सशंकित भी हैं. ग्लोबल विटनेस नामक संस्था के मर्रे वर्दी कहते हैं, "मीथेन उत्सर्जन कम करने की बात तो बिल्कुल सही है लेकिन आज का ऐलान 45 प्रतिशत कटौती के उस लक्ष्य से चूक गया है जो ग्लोबल वॉर्मिंग के लेवल को 1.5 डिग्री से नीचे रखने के लिए जरूरी है."

गैर सरकारी संस्था एंबर के डेव जोन्स कहते हैं, "30 फीसदी कटौती एक शुरुआत तो है लेकिन 1.5 डिग्री के लक्ष्य के लिए काफी नहीं है. बड़ा उत्सर्जन करने वाली कोयला खदानों को पहला कदम उठाने की जरूरत है. वे इस हल का हिस्सा बन सकते हैं."

दुनिया के दो सबसे बड़े कोयला उपभोक्ता चीन और भारत और कोयले का बड़ा उत्पादक ऑस्ट्रेलिया तीनों ही इस प्रतिज्ञा का हिस्सा नहीं बने हैं. इसके अलावा रूस ने भी खुद से इस समझौते को दूर रखा है. यूसीएल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल रिसॉर्सेज में ऊर्जा नीति पढ़ाने वाले जिम वॉटसन कहते हैं, "तेल और गैस के उत्सर्जन की बात है तो रूस के इस पहल का हिस्सा बनने की उम्मीद थी. इस उत्सर्जन की कटौती में पैसा भी ज्यादा खर्च नहीं होता तो इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है."

क्यों खतरनाक है मीथेन?

कार्बन डाई ऑक्साइड के बाद मीथेन ही ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार है. हालांकि इसी उम्र कम होती है, लेकिन 100 साल की अवधि में यह कार्बन डाई ऑक्साइड से 29 गुना ज्यादा असरकारी होती है और 20 वर्ष की अवधि में इसका असर 82 गुना ज्यादा होता है. आठ लाख साल में मीथेन का उत्सर्जन इस वक्त सबसे अधिक है.

मीथेन गैस के उत्सर्जन में कमी होने से तापमान में हो रही वृद्धि पर फौरन असर होगा. इससे पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ना बढ़ने देने का लक्ष्य हासिल करने में मिलेगी.

मीथेन उत्सर्जन के लिए सबसे बड़ा जिम्मा कृषि क्षेत्र पर है. उसके बाद तेल और गैस उद्योग का नंबर आता है और इसमें कटौती ही उत्सर्जन को सबसे तेजी से कम करने में सक्षम है. उत्पादन और परिवहन के दौरान अगर तेल और गैस उद्योग में गैस लीक को काबू किया जा सके तो बड़ा असर हो सकता है.

यूएनईपी ने हाल ही में ग्लोबल मीथेन असेसमेंट मंच शुरू किया है. यूएनईपी का कहना है कि तेल और प्राकृतिक गैस क्षेत्र में मीथेन गैस के उत्सर्जन को 75 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है और इसमें से आधी कटौती तो बिना अतिरिक्त खर्च के ही हो सकती है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

Source: DW

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English summary
cop26 latest over 100 countries sign pledge to cut methane emissions by 30
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