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दुनिया में सबसे ज्यादा कमजोर है यहां के बच्चों की 'नजर', 81 फीसदी को लगाना पड़ता है चश्मा

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बीजिंग, 16 सितंबर। भारत का पड़ोसी देश चीन, अपने अजीबो-गरीब फैसलों और हरकतों से दुनिया की मुश्किलें बढ़ाता रहता है। बीते दिनों कोरोना वायरस संकट के बीच अब चीन में बच्चों को उनके माता-पिता 'सुपर किड' बनाने के पागलपन पर उतारू हो गए हैं। सामने आ रही खबरों के मुताबिक चीन में बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों को एक खास तरह का इंजेक्शन दे रहे हैं। इस इंजेक्शन को लेकर दावा किया जा रहा है कि इसमें मुर्गे का खून होता है, जिससे बच्चों में स्वास्थ संबंधि परेशानी दूर हो रही है। चीन से ही अब एक और चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है जिसमें पाया गया कि वहां के बच्चों में देखने की शक्ति दुनिया में सबसे कमजोर है।

कमजोर हो रही चीन के बच्चों की आंखें

कमजोर हो रही चीन के बच्चों की आंखें

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन लगातार अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए बड़े कदम उठा रहा है। दो सप्ताह पहले इंटरनेट की दुनिया में जहां बच्चे घंटों स्क्रीन के सामने समय बिता रहे हैं, उनकी इस बुरी आदत को छुड़ाने के लिए अब चीन में स्क्रीन टाइम सेट कर दिया गया है। नेशनल मेंटल हेल्थ डेवलपमेंट के अनुसार चीन के बच्चों में लगातार आंखों की समस्या बढ़ती जा रही है, यहां से आने वाली शिकायत दुनिया में सबसे अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक मिडिल स्कूल के 71% और हाई स्कूल के 81% बच्चों की पास की नजर कमजोर है। इनमें से ज्यादातर को चश्मा लगा हुआ है।

खान-पान से नहीं हटाया जा सकता चश्मा

खान-पान से नहीं हटाया जा सकता चश्मा

चीन लगातार अपनी आने वाली जनरेशन को बेहतर बनाने दिशा में काम कर रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों के आंखों पर से चश्मा हटाने या नंबर को बढ़ने से रोकने का होई डाइट नहीं है। इसके अलावा आंखों के नंबर पर फैमिली हिस्ट्री का भी प्रभाव पड़ता है। इसका मतलब ये हुआ कि अगर माता-पिता को बचपन से चश्मा लगा है, तो इसकी संभावना होती है कि बच्चे को भी चश्मा लग जाए। हालांकि चीन के बच्चों में नजर कमजोर होने का मुख्य कारण घंटों स्क्रीन के सामने समय बिताना है। चीन की हालत से भारत को भी सबक लेना चाहिए।

बच्चों को दिया जा रहा खास तरह का इंजेक्शन

बच्चों को दिया जा रहा खास तरह का इंजेक्शन

इस बीच सिंगापुर पोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन में बच्चों के सुपर किड बनाने के लिए चिकन पेरेंटिंग का सहारा लिया जा रहा है। इस प्रोसेस में बच्चों को मुर्गे के खून का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे उनकी बॉडी चुस्त और फुर्तीली हो रही है। रिपोर्ट में मुर्गे के खून को लेकर कई तरह के दावे किए गए हैं। इससे कैंसर और गंजेपन की समस्या से भी मुक्ति का दावा किया जा रहा है।

आने वाली जनरेशन बदलने की कोशिश

आने वाली जनरेशन बदलने की कोशिश

वहीं, बच्चों का दिमाग भी तेजी से विकसित होने की बात कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चिकन के खून में स्टेरॉयड होता है, जिसकी मदद से बच्चों को पढ़ाई और खेल में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलती है। चीन चाहता है कि उसकी आने वाली जनरेशन (नस्ल) हर क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करे। हैरान करने वाली बात ये है कि बच्चों के माता-पिता में भी चिकन बेबी का क्रेज बढ़ता जा रहा है।

ऐसे बच्चों को दिया जाता है स्पेशल ट्रीटमेंट

ऐसे बच्चों को दिया जाता है स्पेशल ट्रीटमेंट

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की राजधानी बीजिंग, शंघाई और गुवांग्झू में बच्चों को मुर्गे के खून का इंजेक्शन देने का ट्रेंड सबसे अधिक है। ऐसे बच्चों को चीन में अलग पहचान दी जा रही है जिससे दूसरे पेरेंट्स भी प्रेरित हो रहे हैं। चीन सरकार ऐसे कई तरह के प्रयोग करती रहती है जिसकी वजह से कभी-कभी उसके खुद के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। चीन पर अब बच्चों के सुपरकिड बनाने की धुन सवार है।

यह भी पढ़ें: चीन को घेरने चले थे, आपस में ही उलझे दोस्त देश, फ्रांस ने कहा- अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया ने पीठ में 'छूरा घोंपा'

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English summary
Chinese children are the weakest eyesight in the world 81 percent of the students have glasses
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