Afghanistan:तालिबान के चलते भारत के 400 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर संकट, जानिए कितने अरब डॉलर डूबने का है खतरा
नई दिल्ली, 16 जुलाई: भारत और अफगानिस्तान के संबंध सदियों पुराने हैं। लेकिन, 90 के दशक में तालिबान की दखल ने कुछ वर्षों के लिए उसमें विराम ला दिया था। 9/11 के बाद जब अमेरिकी सेना वहां पहुंची और सुरक्षा के हालात बेहतर होने लगे तो भारत के साथ उसके संबंधों के बीते हुए दिन वापस लौटने शुरू हो गए। दोनों देशों के बीच राजनयिक नजदीकी तो आई ही, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भी भारत ने भरपूर मदद पहुंचाई। वहां नई संसद तक का निर्माण भारत ने करवाया है। लेकिन, आज एकबार फिर से अफगानिस्तान की शांति दांव पर लग चुकी है। अमेरिकी सेना के उलटे पांव भागने से तालिबान के हौसले बुलंद हैं। भारत को इसमें चौतरफा नुकसान है। ऊपर से आतंकवाद की चिंता अलग सता रही है।
भारत-अफगानिस्तान की दोस्ती पर 'तालिबानी' ग्रहण
बीते 20 वर्षों में भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक संबंध फिर से पटरी पर लौट चुके थे। लेकिन, अमेरिकी और नाटो सैनिकों के वहां से निकलने से भारत को सिर्फ राजनयिक नुकसान होने की ही आशंका नहीं है। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए बीते दशकों में भारत ने जो अरबों डॉलर झोंक दिए हैं, उन सब पर भी ग्रहण लग गया है। अफगानिस्तान से 2001 में तालिबान का कब्जा हटा था और तब से अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी में वहां की वैध सरकार के कार्यकाल में भारत सैकड़ों प्रोजेक्ट में निवेश किए हैं। संसद से लेकर सड़क तक और डैम से लेकर बाकी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में भारत ने अपने पड़ोसी मुल्क की दिल खोलकर सहायता की है। अब भारत के सामने ऐसा संकट खड़ा हुआ है, जिसमें न तो वह वहां राजनीतिक रोल निभाने की हालत में लग रहा है और न ही वैश्विक राजनयिकों की गैर-मौजदूगी में उसके लिए अपना निवेश सुरक्षित रख पाना ही मुमकिन लग रहा है। क्योंकि, 2001 से पहले के पांच साल के तालिबान के मध्यकालीन तरीके की सत्ता में प्रगति और विकास के बारे में सोचना फिलहाल तो बेमानी ही लग रहा है।
3 अरब डॉलर से से ज्यादा के निवेश का क्या होगा ?
2011 में भारत-अफगानिस्तान ने रणनीतिक साझेदारी समझौता किया था, जिसके तहते भारत, अफगानिस्तान को उसके इंफ्रास्ट्रक्चर और संस्थाओं के पुननिर्माण में मदद कर रहा था। शिक्षा से लेकर तकीनीक सहायता तक में भारत उसके साथ खड़ा था। भारत ने वहां महत्वपूर्ण सड़कें बनवाई हैं, डैम बनवाए हैं, बिजली लाइनें बिछाईं, स्कूल और अस्पताल बनाए हैं। कुल मिलाकर इस सहायता को अगर आंकड़ों में अनुमान लगाएं तो यह 3 अरब डॉलर से ज्यादा बैठता है। सच कहें तो अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत का काम धरातल पर दिखता है। इतना ही नहीं दोनों देशों की मित्रता के चलते इन वर्षों में द्वपक्षीय व्यापार भी 1 अरब डॉलर का हो चुका है। सच ये है कि भारत ने अफगानिस्तान के फिर से अपने पैरों पर खड़े करने के लिए क्या किया है, उसके बारे में खुद भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल नवंबर में जिनेवा में अफगानिस्तान कॉन्फ्रेंस में बताा था। उन्होंने कहा था, 'आज अफगानिस्तान का कोई भी हिस्सा नहीं है, जहां भारत के 400 से ज्यादा प्रोजेक्ट ना हों, ये अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में हैं। '
सलमा डैम प्रोजेक्ट
42 मेगा वॉट का सलमा डैम प्रोजेक्ट अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में है। इस इलाके में लड़ाई छिड़ी हुई है। 2016 में इसका उद्घाटन हुआ था और इसे बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना करके तैयार किया गया है। इसे अफगान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम भी कहते हैं। यह जल विद्युत और सिंचाई परियोजना है। तालिबान ने पिछले दिनों सुरक्षा बलों पर हमले किए हैं और कई की हत्याएं कर दी हैं और दावा किया है इस इस इलाके पर उसका कब्जा हो चुका है।
जरांज-देलाराम हाई-वे
218 किलोमीटर लंबी इस जरांज-देलाराम हाई-वे को भारत के सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने बनाया है। 15 करोड़ डॉलर का ये हाई-वे प्रोजेक्ट अफगानिस्तान की ईरान सीमा से लेकर दक्षिण में कंधार, पूरब में गजनी और काबुल, उत्तर में मजार ए शरीफ और पश्चिम में हेरात को जोड़ता है। भारत के लिए यह रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण परियोजना, क्योंकि यह चारों तरफ से जमीनी सीमा से घिरे अफगानिस्तान तक भारत को ईरान के चाबाहार पोर्ट के जरिए वैकल्पिक रास्ता उपलब्ध कराता है। जयशंकर ने कहा था कि पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान इस रास्ते भारत ने 75,000 टन गेहूं अफगानिस्तान तक पहुंचाया था। इस सड़क को बनाने में अफगानों के साथ भारत के 300 से ज्यादा इंजीनियरों और मजदूरों ने अपना पसीना बहाया है। इसके निर्माण में और आतंकी हमले में भी भारत ने कई नागरिकों को खोया है। इसके अलावा भी भारत ने वहां कई सड़कें बनाई हैं।
अफगानिस्तान की संसद
भारत ने काबुल में 90 करोड़ डॉलर की लागत से अफगानिस्तान के लिए संसद भवन का निर्माण किया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में इसका उद्घाटन किया था। अफगानिस्तानी संसद का एक ब्लॉक तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बना है।
स्टोर पैलेस
2016 में अफगानिस्तानी राष्ट्रपति अशरफ गनी और पीएम मोदी ने काबुल स्थित स्टोर पैलेस का उद्घाटन किया था। यह इमारत पहले 19वीं शताब्दी के अंत में बनाई गई थी। 1965 तक यहां अफगानिस्तान का विदेश मंत्रालय और वहां के विदेश मंत्री का दफ्तर हुआ करता था। 2009 में भारत, अफगानिस्तान और आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर ने 2013 से 2016 के बीच इस प्रोजेक्ट को पूरा किया।
स्वास्थ्य परियोजना
भारत ने काबुल में चिल्ड्रेन हॉस्पिटल का भी पुनर्निर्माण कराया, जिसे बनाने में 1972 में भी उसने मदद की थी। 1985 में उसका नाम इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर चाइल्ड हेल्थ रखा गया था। जंग की वजह से इसकी इमारत जर्जर हो गई थी। यही नहीं भारत ने उसके सीमावर्ती प्रांतों जैसे- बदख्शां, बल्ख, कंधार, खोस्त, कुनार, नंगरहार, निमरूज, नूरिस्तान, पक्तिया और पक्तिका में भी हेल्थ क्लीनिकों का निर्माण कराया है।
परिवहन के क्षेत्र में सहायता
विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत ने शहरी परिवहन के लिए उसे 400 बसें और 200 मिनी बसें बतौर गिफ्ट दिए हैं। इसके अलावा निगमों के लिए 105 यूटिलिटी बसें, 285 सैन्य वाहन, असप्तालों के लिए एंबुलेंस और उसके नेशनर कैरियर एरियाना को ऑपरेशन शुरू करने के लिए एयर इंडिया के तीन विमान भी दिए हैं।
इन परियोजनाओं पर चल रहा है काम
इनके अलावा भी भारत ने अफगानिस्तान को विद्युत परियोजनाओं और बाकी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में सहयोग किया है। यही नहीं कई परियोजनाएं ऐसी हैं, जिसपर काम चल रहा है। विदेश मंत्री ने जिनेवा में ऐलान किया था कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ काबुल जिले में शतूत बांध बनाने के लिए एक करार किया है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर 20 लाख से ज्यादा लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी मिलेगा। इसके अलावा उन्होंने 8 करोड़ डॉलर की करीब 100 सामुदायिक विकास योजनाओं को भी शुरू करने का ऐलान किया था। (कुछ तस्वीरें-फाइल)