अंक 13 के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के 36 के आंकड़े की कहानी
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नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार शाम एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 93 साल के थे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी तक ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं है, जो अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत से प्रभावित न हुआ हो। ''सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए।'' संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कही थीं। सत्ता की ऐसी परिभाषा, राजनीति का ऐसे दर्शन का पाठ वाजपेयी ने सिर्फ विपक्ष को ही नहीं पढ़ाया बल्कि खुद भी जीवन भर ऐसे ही आदर्शों को जिया। वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकारें आईं और गईं भी, पार्टी बनी भी बिगड़ी भी। बनने बिगड़ने के इस खेल में वाजपेयी के साथ एक अंक हमेशा जुड़ा रहा। कुछ लोग इसे अशुभ कहते हैं, लेकिन वाजपेयी कभी शुभ-अशुभ के खेल में नहीं पड़े और 13 के अंक से उनका 36 का आंकड़ा बाकायदा जारी रहा।
अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति में 13 का आंकड़ा
अटल बिहारी वाजपेयी ने 13 मई 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। वाजपेयी सरकार बहुमत साबित नहीं कर सकी और ठीक 13 दिन बाद ही गिर गई। वाजपेयी जब दोबारा प्रधानमंत्री बने तो 13 महीने बाद उनकी सरकार गिर गई। अटल बिहारी तीसरी बार जब प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने 13 दलों के साथ सरकार बनाई और 13 अक्टूबर 1999 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
2004 में 13 अप्रैल को भरा नामांकन, काउंटिंग भी 13 को ही हुई
अटल बिहारी वाजपेयी की सियासत में 13 के खेल से उनके करीबी अंजान नहीं थे। तीसरी बार 13 अक्टूबर 1999 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उनकी सरकार पूरे पांच साल चली। इसके बाद भी कई करीबियों ने उनसे कहा कि 13 नंबर आपके लिए अशुभ है, लेकिन वाजपेयी कहां मानने वाले थे। 2004 के चुनाव में 13 अप्रैल को ही उन्होंने नामांकन दाखिल किया। 13 मई को हुई मतगणना में बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी थी।
क्या सीख देती है वाजपेयी की 13 के अंक साथ 36 के आंकड़े की कहानी
13 अंक के साथ 36 का आंकड़ा बताता है कि जीवन में किसी भी चीज को वाजपेयी ने बाधा नहीं माना। 13 दिन बाद सरकार गिरी कोई बात नहीं। 13 महीने चली तो भी वाजपेयी दुखी नहीं हुए। तीसरी बार 13 अक्टूबर को ही शपथ ली और पांच साल देश का शासन चलाया। इसके बाद भी 13 अंक के साथ वाजपेयी की जद्दोजहद जारी रही। 2004 में वह 13 अंक से हार गए, लेकिन वे कभी 13 के अशुभ अंक से डरे नहीं। अंत तक लड़ते ही रहे।