Varient of concern क्यों बन गया है डेल्टा प्लस वैरिएंट?
नई दिल्ली, 23 जून: कोरोना की दूसरी लहर के अभी सिर्फ रोजाना के आंकड़े ही कम हुए हैं, तीसरी लहर की चिंता बरकरार है। ऐसे में डेल्टा प्लस वैरिएंट ने टेंशन और बढ़ा दी है, जिसे भारत सरकार के वैज्ञानिक अब वैरिएंट ऑफ कंसर्न मान रहे हैं। हालांकि, अभी तक इस स्ट्रेन के ज्यादा मामले देश में नहीं आए हैं, लेकिन इसके बारे में जितना भी पता चला है, उसके बाद सरकार संबंधित राज्यों को अभी से सावधान हो जाने की सलाह दे रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस स्ट्रेन को वैरिएंट ऑफ कंसर्न क्यों कहा जा रहा है ?
डेल्टा प्लस वैरिएंट के मामले कहां-कहां मिले हैं ?
देश में बुधवार तक कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वैरिएंट के 40 मामलों का पता लग चुका है। इस वायरस को वैरिएंट ऑफ कंसर्न (चिंताजनक वैरिएंट) माना जा रहा है और हालांकि सरकारी सूत्रों के मुताबिक अभी यह 'वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट' भी बना हुआ है। आज की तारीख में इस वैरिएंट को सबसे ज्यादा संक्रामक माना जा रहा है और यह महाराष्ट्र के अलावा, मध्य प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के अलावा कुछ और राज्यों में भी मिल चुके हैं। दी इंडियन एसएआरएस-सीओवी-2 जिनोमिक कंसोर्टिया (आईएलएसएसीओजी) की ताजा जांच के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस वैरिएंट को लेकर महाराष्ट्र, केरल और मध्य प्रदेश को ज्यादा सतर्क रहने की सलाह दी है। सूत्रों के मुताबिक डेल्टा से म्यूटेट होकर बने डेल्टा प्लस वैरिएंट के अबतक 21 केस महाराष्ट्र, 6 मध्य प्रदेश, 3-3 केरल और तमिलनाडु, 2 कर्नाटक और 1-1 पंजाब,आंध्र प्रदेश और जम्मू में सामने आ चुके हैं।
डेल्टा प्लस, वैरिएंट ऑफ कंसर्न क्यों है ?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक द इंडियन एसएआरएस-सीओवी-2 जिनोमिक कंसोर्टिया (आईएलएसएसीओजी) ने उसे जानकारी दी है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट इस समय 'वैरिएंट ऑफ कंसर्न' है। क्योंकि, इसमें ज्यादा तेजी से फैलने की क्षमता (इंक्रीज्ड ट्रांसमिशिबिलिटी), फेफड़ों की कोशिकाओं के रिसेप्टर्स के लिए मजबूत बंधन (स्ट्रॉन्गर बाइंडिंग टू रिसेप्टर्स ऑफ लंग सेल्स), और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रतिक्रिया में कमी (कोरोना की दवा के असर को कम करने) जैसी विशेषताएं हैं। बता दें कि आईएलएसएसीओजी स्वास्थ्य मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) का एक संघ है, जिसने डेल्टा प्लस को वैरिएंट ऑफ कंसर्न बताते हुए इसके बारे में अभी तक इतनी जानकारी जुटाई है। विशेषज्ञों की चिंता है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट कहीं कोरोना के मौजूदा इलाज के खिलाफ रेसिस्टेंस न पैदा कर दे। यही नहीं, चिंता ये भी कि इस वैरिएंट के खिलाफ मौजूदा वैक्सीन कारगर होगी भी या नहीं ?
डेल्टा प्लस वैरिएंट से कैसे बचें ?
आईएलएसएसीओजी का कहना है कि डेल्टा प्लस के गुणों की जांच अभी भी जारी है। कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन की वजह से इसने विशेषता हासिल कर ली है, जो वायरस को इंसानी कोशिकाओं में घुसने में मदद करता है। इसने कहा है कि हालांकि, देश में इसकी संख्या अभी कम है, लेकिन यह कई राज्यों में मौजूद है और इसके लिए सर्विलांस, टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और वैक्सीनेशन को प्राथमिकता देना जरूरी है।
कितने देशों में पहुंचा चुका है डेल्टा प्लस वैरिएंट ?
हालांकि, डेल्टा प्लस वैरिएंट के बारे में वैज्ञानिक और ज्यादा जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं, लेकिन भारत समेत यह 9 देशों में पहुंच चुका है। ये देश हैं- अमेरिका, यूनाइटेड किंग्डम, पुर्तगाल, स्विटजरलैंड,जापान, पोलैंड, रूस और चीन। सरकार के मतुबाकि डेल्टा प्लस काफी हद तक डेल्टा स्ट्रेन की तरह ही है, जो 80 देशों में फैल चुका है और बहुत ज्यादा संक्रामक हैं और बहुत तेजी से फैलता है। सरकार का कहना है कि भारत में बनी दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सिन कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ प्रभावी है, लेकिन डेल्टा प्लस वैरिएंट पर यह कितना असरदार है, इससे संबंधित डेटा बाद में जारी किया जाएगा।
कोरोना वायरस के कितने वैरिएंट हैं ?
कोरोना वायरस का संक्रमण जितनी ज्यादा संख्या में फैलता है, उसे म्यूटेशन का भी उतना ही ज्यादा मौका मिलता है। इसका परिणाम ये हुआ है कि इसके अबतक चार मूल वैरिएंट सामने आ चुके हैं।
अल्फा (बी.1.1.7): पहली बार यह पिछले साल सितंबर में यूनाइटेड किंग्डम में पाया गया था। यह अपने मूल वायरस से ज्यादा आसानी से फैलता है और 70 फीसदी तक ज्यादा जानलेवा है। राहत की बात है कि अबतक की वैक्सीन इसपर काम करती है।
बीटा (बी.1.351):पहली बार मई, 2020 में दक्षिण अफ्रीका में पाया गया। यह अपने पैतृक वायरस से ज्यादा आसानी से फैलता है और चिंता की बात ये है कि यह वैक्सीन और इंफेक्शन से पैदा हुई इम्यूनिटी के असर को को कम करने में सक्षम है। इसके चलते दोबारा संक्रमण होने की आशंका रहती है।
गामा (पी.1): इसे पहली बार पिछले नवंबर में ब्राजील में पाया गया था। इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव हो चुके हैं, जिसके कारण यह बहुत ही तेजी से फैलता है। बीटा की तरह इससे भी दोबारा संक्रमित होने का जोखिम है।
डेल्टा (बी.1.617.2): पिछले साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में इसका पहला मामला सामने आया था और दूसरी लहर के लिए इसे ही जिम्मेदार माना जाता है। अभी तक इसे सबसे ज्यादा संक्रामक माना जा रहा था। लेकिन, अब इसका भी म्यूटेशन हो चुका है और डेल्टा प्लस वैरिएंट ऑफ कंसर्न बन चुका है। इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक डॉक्टर अनुराग अग्रवाल के मुताबिक डेल्टा प्लस के भी दो वैरिएंट नजर आ रहे हैं, जिसे डेल्टा वैरिएंट की तरह एवाई.1 और एवाई.2 का नाम दिया गया है।