नोटबंदी और पीएम के डिजिटल पेमेंट अभियान के बाद भी क्यों 5 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचा कैश का इस्तेमाल?
नई दिल्ली, 12 नवंबर: पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2016 को देश में 500 और 1000 रुपए के नोट को चलन से बाहर कर दिया था। अचनाक हुई नोटबंदी के पीछे सरकार की ओर से तर्क दिए गए कि, ये फैसला भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए, लिया गया। प्रधानमत्री ने उस समय देश की जनता को बताया था कि, नोटबंदी भ्रष्टाचार, काला धन और नकली करेंसी के खिलाफ एक महायज्ञ है। लेकिन हाल ही में आरबीआई की ओर जारी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच सालों में करेंसी के चलन में बढ़ोत्तरी ही देखने को मिली है, जबकि मोदी सरकार लोगों को लगातार डिजिटल पेमेंट के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

कैश में 64.43 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया हर 15 दिन में 'करेंसी विद द पब्लिक' की रिपोर्ट जारी करता है। जिसमें देश की शीर्ष बैंक ये बताती है कि, मौजूदा समय में देश में कितनी करेंसी सुर्कुलेशन में है। 8 अक्टूबर, 2021 को जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि,29.17 लाख करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन हैं। जो अब तक का सबसे उच्चतम स्तर है। नोटबंदी जब लागू हुई थी तो करीब 86 फीसदी करेंसी सर्कुलेशन में थी। चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे, जो 29 अक्तूबर, 2021 को बढ़ कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गये। इससे एक बात तो साफ तो पता चलती है कि, पांच साल में इसमें करीब 11.43 लाख करोड़ रुपये यानी 64.43 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं। अब सवाल ये उठता है कि, आखिर सरकार के डिजिटल इंडिया मिशन और नोटबंदी के बाद भी करेंसी चलन इतनी तेजी से क्यों बढ़ा? देश में भले ही डि़जिटल पेमेंट में इजाफा हुआ है, लेकिन लोगों की पहली पसंद कैश अभी भी क्यों बनी हुई है। इसकी कई मुख्य वजहें हैं।

लोग छोटे ट्रांजेक्शन के लिए डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल करते हैं
मोदी सरकार भले ही डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए कई कोशिशें कर रही है, लेकिन लोग आज भी बड़े लेनेदेन या तो चैक के जरिए या कैश से करते हैं। लोगों के बीच डिजिटल पेमेंट को लेकर अभी एक तरह की हिचक है, जिसके चलते वे छोटे-मोटे पेमेंट को यूपीआई या अन्य वॉलेट के माध्यम से कर देते हैं लेकिन जब बात बड़े पेमेंट की आती है तो वे अभी कैश को ही प्राथमिकता देते हैं।

नोटबंदी के बाद मिले नए नोट लोगों ने बैंक में जमा नहीं किए
नोटबंदी में लोगों को कैश की किल्लत का बुरी तरह से सामना करना पड़ा था। जब लोगों को कैश मिलना शुरू हुआ तो वे उस दिनों को नहीं भूल पाए जब वे नोटबंदी के दौरान नकदी की कमी से जूझे थे। लोगों के बीच भविष्य में कैश की कमी का डर बैठ गया। जिसके बाद लोगों ने बैंकों में कैश की जमा करने की बजाय अपने घरों में रखना शुरू कर दिया। जिसके चलते 2016 के बाद कैश की मांग में लगातार बढ़ोत्तरी होती चली गई।

लॉकडाउन में लोगों ने अपनी जरूरतों के लिए कैश को जमा किया
कोरोना महामरी ने आर्थिक तौर पर लोगों का काफी नुकसान पहुंचाया है। कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने लोगों को कैश रखने के लिए मजबूर किया है। कोरोना के बाद एक अनिश्चितता के चलते लोग घर में कुछ नकद रखने को भी प्राथमिकता दे रहे है। लॉकडाउन में लोगों ने अपने किराने और अन्य आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए नकदी जमा करना शुरू कर दिया, जो कि मुख्य रूप से पड़ोस की किराने की दुकानों द्वारा पूरी की जा रही थी।
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ग्रामीण इलाकों में अभी भी दुकानदार कैश को प्राथमिकता देते हैं
देश में भले ही डिजिटल पेमेंट में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में आज भी लोग दुकानों से कैश में ही सामान खरीदते हैं। डिजिटल पेमेंट को गांवों में अभी भी एक बड़े झंझट के तौर पर देखते हैं। जिसके चलते वे आपसी लेनदेन और खरीददारी में कैश का इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं सरकार भले ही फसलों का पैसा बैंक खातों में डालती है लेकिन किसान बैंक से अपने पैसे की पूरी निकासी कैश में ही करता है।

साइबर फ्रॉड के डर से भी लोग कैश का इस्तेमाल करते हैं
भारत में साइबर फ्रॉड एक बड़ी समस्या है। भारत सरकार भले ही डिजिटल पेमेंट को प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन ऑनलाइन धोखाधड़ी के चलते लोग कैश में लेनदेन को अधिक सुरक्षित मानते हैं। हाल ही कुछ सालों में साइबर फ्रॉड के मामलों भारी बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके चलते काफी लोग ने डिजिटली लेनेदेन से भी किनारा किया है।