घाटी में न बस सकें कश्मीरी पंडित इसलिए दुश्मन बन गए हैं दोस्त
श्रीगनर। पिछले कुछ माह से जम्मू कश्मीर का जो माहौल उससे देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि घाटी को फिर से इन गर्मियों में सुलगाने की तैयारी कर ली गई है। इस बार अलगाववादियों का हथियार बना है कशमीरी पंडित और उन्हें घाटी में बसाने का मुद्दा।
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दुश्मन बन गए हैं दोस्त
गुरुवार को घाटी में बंद का ऐलान अलगाववादियों ने कियाहै। यह ऐलान राज्य सरकार के कश्मीरी पंडितों और एक्स सर्विसमेन को पुर्नस्थापित करने के लिए जुड़ी कुछ योजनाओं के खिलाफ है।
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कश्मीर में पिछले आठ वर्षों में किसी ने भी हुर्रियत कांफ्रेंस के सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक और मीरवाइज उमर फारुक को साथ नहीं देखा था। इतना ही नहीं ये तीनों एक दूसरे का देखना भी पसंद नहीं करते हैं।
लेकिन अब घाटी में पंडितों के पुर्नविस्थापन के मुद्दे पर तीनों ने हाथ मिला लिए हैं। ये तीनों किसी भी कीमत पर घाटी में पंडितों की वापसी के लिए तैयार योजनाओं में अंड़गा डालने को तैयार हैं।
क्या हुआ था वर्ष 2008 में
उमर फारुख, यासीन मलिक और गिलानी को आखिरी बार वर्ष 2008 में एक साथ देखा गया था। उस समय इन तीनों अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन किया था।
वर्ष 2008 में और फिर वर्ष 2010 में घाटी में कई दिनों तक बंद की स्थिति थी। राज्य सरकार को अंदेशा है कि इस बार भी वही हालात घाटी में हो सकते हैं।
मुश्किल हालातो में घाटी
वहीं अधिकारियों की मानें तो इस बार राज्य सरकार के सामने स्थिति काफी मुश्किल है। राज्य सरकार किस तरह से इस स्थिति को हैंडल करती हैं काफी कुछ उस पर ही निर्भर करेगा।
आपको बता दें कि घाटी में पिछले कुछ दिनों से सुरक्षाबलों पर आतंकियों के हमले जारी हैं। ऐसे में हालात काफी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।