अटल जी- राजेन्द्र प्रसाद रोड से कृष्ण मेनन मार्ग तक
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) यूं तो अटल बिहारी वाजपेयी जी दिल्ली में तीन बंगलों में मुख्य रूप से रहे, पर उन्होंने बड़े ही भारी मन से 7,रेसकोर्स छोड़ा था साल 2004 में। उहें उम्मीद नहीं थी कि 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए हारेगी।
बहरहाल आरटीआई एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल की तरफ से दायर एक आरटीआई से बेहद खास जानकारी सामने आई थी। दरअसल वाजपेयी ने 2004 में शहरी विकास मंत्रालय से आग्रह किया था कि वो उन्हें आवंटित होने वाले बंगले का पता 8, कृष्ण मेनन मार्ग के स्थान पर 6-ए कर दें।
पत्र लिखा
इस बाबत 19 मई,2004 को पीएमओ में अतिरिक्त सचिव अशोक सैकिया ने शहरी विकास विभाग के अतिरिक्त सचिव अनुपम दासगुप्ता को पत्र लिखा। हालांकि जानकार कहते हैं कि वाजपेयी जी अपने नए आशियाने का पता 7-ए रखना चाहते थे।
लेकिन जब ये बताया गया कि चूंकि लुटियंस जोन के बंगलों के नंबर सड़क के एक तरफ विषम हैं और दूसरी ओर सम, तो उऩ्होंने 8- कृष्ण मेनन मार्ग वाले बंगले के लिए 6-ए वाला पता स्वीकार कर लिया।
6 राजेन्द्र प्रसाद रोड
अटल जी लंबे समय तक 6 राजेन्द्र प्रसाद रोड भी रहे। जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए भी वे उसी बंगले में रहे। इधर उनके कानपुर से लेकर ग्वालियर तक के मित्र और बंधु लगातार आया करते थे।
मिठाइयों का दौर
घर में ही कविता पाठ से लेकर लजीज मिठाइयों की भी विस्तार से चर्चा हो जाती थी। इसमें ही लगातार वरिष्ठ और नवोदित लेखकों और कवियों की ताजा पुस्तकों का विमोचन भी होता था। अटल जी खुद देखते थे कि हर मेहमान को बंगाली मार्केट या गोल मार्केट से आई लजीज मिठाई मिल जाए।
गजब के मेजबान
अटल जी के घर में कोई आए और उसे इमरती या चाकलेट बर्की ना मिले यह हो नहीं सकता था। एक बार वरिष्ठ लेखक दुर्गा प्रसाद नौटियाल ने बताया था कि अटल जी के घर में कवि सम्मेलन के बाद मेहमानों को नाश्ते में गर्मागर्म जलेबी दी गई।
कुछ मेहमानों ने उसे लेने से मना कर दिया अटल जी के सामने। अटल जी ने उन्हें इस बात पर प्रेम से फटकार लगाई थी यह कहते हुए--- यार, मेजबान का तो सम्मान कर लो। बहरहाल, अब इस बंगले में मुरली मनोहर जोशी रहते हैं। दिल्ली प्रेस क्लब के ठीक सामने है यह बंगला।