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कोविड-19 से लड़ते-लड़ते क्या हो गया है डॉक्टरों का हाल, उनकी आपबीती आपको भावुक कर देगी

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नई दिल्ली, 18 अप्रैल: देश में एक साल से ज्यादा वक्त से कोविड के खिलाफ जंग लड़ रहे डॉक्टर और हेल्थकेयर वर्कर्स पर इसकी दूसरी लहर की सबसे ज्यादा मार पड़ी है। एक साल से अधिक समय तक वह अपने काम में इस उम्मीद में डटे रहे कि एक दिन यह महामारी शांत होगी और फिर से पुराने दिन लौट आएंगे। लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर ने उनमें से कई को अंदर से अब हताश करना शुरू कर दिया है। वो शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से थकने लगे हैं। लेकिन, उसी समय में इसने ऐसा भयावह शक्ल अख्तियार किया है, जिससे अब उन्हें अपनी जिंदगी अथाह लगने लगी है। ऐसे डॉक्टर अब खुलकर अपना दर्द बयां कर रहे हैं और कोविड अनुकूल बर्ताव के प्रति लापरवाह लोगों को इसके लिए जिम्मेदार मान रहे हैं और उन्हें अभी भी मानवता की रक्षा के लिए संभल जाने की चेतावनी दे रहे हैं। इनमें से हर डॉक्टर की टीस दूसरे से जरा भी कम नहीं है। उन्हें लगने लगा है कि आज समाज के कुछ लोगों की लावरवाहियों का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है।

'शारीरिक और मानसिक तौर पर थक चुकी हूं'

'शारीरिक और मानसिक तौर पर थक चुकी हूं'

देश में कोरोना वैक्सीन का तीसरा फेज चल रहा है। कई जगहों से मांग की तुलना में इसकी उपलब्धता की कमी बताई जा रही है। पहले चरण में डॉक्टरों और हेल्थकेयर वर्करों को इसकी खुराक लगाई गई थी। ज्यादातर वैक्सीन की दूसरी डोज लगाकर इस उम्मीद में पुरानी रुटीन में लौटने की उम्मीद पालने लगे थे कि सालभर बाद ही सही उन्हें सुकून का थोड़ा पल मिलने वाला है। एक साल तक कोविड से लड़ने के बाद वे अपने परिजनों को भी थोड़ा वक्त दे पाएंगे। लेकिन, दूसरी लहर उनकी सारी उम्मीदों और आशाओं पर पानी फेर चुका है। यह लहर हर दिन एक नई कयामत ढा रहा है। सारे रिकॉर्ड टूटते जा रहे हैं। पूरे देश में खासकर कुछ राज्यों में तो त्राहि-त्राहि मची हुई है। इन हालातों को देखकर क्रिटिकल केयर मेडिसीन की एक डॉक्टर दीपशिखा घोष अपने आपको रोक नहीं पाई हैं। उन्होंने ट्विटर पर अपनी भावना कुछ इस तरह से बयां करने की कोशिश की है- 'प्लीज मास्क पहनिए। मैं दूसरे लोगों के बारे में नहीं जानती लेकिन, मैं शारीरिक और मानसिक तौर पर शिफ्टों में काम करके थक चुकी हूं और जितनी मौतें हमने इतने वर्षों की अपनी पूरी करियर में नहीं देखी है, उससे ज्यादा इसमें देख चुकी हूं। अगर आपको अभी भी परवाह नहीं है तो प्लीज मेरी प्रॉक्सी बनकर कोविड यूनिट के अंदर चले जाइए। थैंक्स।'

'हमारे में पिछले साल वाली मानसिक ताकत नहीं रह गई है'

'हमारे में पिछले साल वाली मानसिक ताकत नहीं रह गई है'

डॉक्टर दीपशिखा का यह ट्वीट वायरल हो गया। उन्होंने एक और ट्वीट में लिखा, 'मेरा टेस्ट में कभी भी पॉजिटिव नहीं आया। मैं लगभग 10 महीनों तक अपने परिवार से दूर रही। मैंने बाहर कोई मस्ती नहीं की। मैं अपनी मानसिक सेहत के लिए किसी ट्रिप पर नहीं गई। मैं बच गई। मैंने महामारी बढ़ाने में कोई योगदान नहीं दिया। और ये सारा कुछ बेकार चला गया। ' उन्होंने बताया है कि कोविड यूनिट में हमेशा मास्क लगाए रहने से उनके चेहरे का क्या हुआ है, लेकिन फिर भी उन्होंने उसे उतारने की गलती कभी नहीं की। इसीलिए इस महामारी से आजतक बची रह गईं। लेकिन, इसके बावजूद जब किसी की मौत पर परिवार वालों का बिलखना सुनती हैं तो वह बहुत ही दुखी हो जाती हैं। कोरोना की दूसरी लहर में भी अपनी सभी भावनाओं को दूर रखकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने वाले डॉक्टरों यह दर्द अकेला नहीं है। लेकिन, अब वो हताश होने लगे हैं। मसलन एक डॉक्टर ने बीबीसी से कहा है, 'हम जो कर सकते हैं वो सब कर रहे हैं, लेकिन हमारे में वही मानसिक ताकत नहीं रह गई है, जो पिछले साल थी।'

देश में 747 डॉक्टर तोड़ चुके हैं दम

देश में 747 डॉक्टर तोड़ चुके हैं दम

दिल्ली और गुड़गांवा में मैक्स हेल्थकेयर की डारेक्टर और आई सर्जन डॉक्टर पारुल एम शर्मा कहती हैं, 'भारत के डॉक्टरों,नर्स एसोसिएशन, पब्लिक और प्राइवेट हॉस्पिटल एडमिन से गुजारिश है कि देश में भारी भीड़ के खिलाफ मिलकर प्रदर्शन करें। केसों की सुनामी से हमारा हेल्थकेयर सिस्टम ढह जाएगा।' डॉक्टर जितुमोनी बैश्य लिखते हैं, 'मुझे सिर्फ एन95 मास्क ने बचा रखा है। #मास्कअप इंडिया यह वैक्सीन से ज्यादा बेहतर और 100 फीसदी प्रभावी है।' इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की नेशनल रजिस्ट्री के मुताबिक कोविड-19 से देश में 747 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। इसके महासचिव ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया था कि सबसे ज्यादा यानी 89 डॉक्टरों की मौत तमिलनाडु में हुई और उसके बाद 80 डॉक्टरों ने कोविड से लड़ते-लड़ते पश्चिम बंगाल में दम तोड़ दिया।

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English summary
The second wave of Covid has started tense up the doctors, the negligence of not wearing a mask is bothering them
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