'सुल्तानपुर का सुल्तान' बनने के लिए वरुण गांधी ने बदली शैली
वहीं वरुण अब परिपक्व नेता की तरह व्यवहार करते नजर आ रहे हैं। वरुण के भाषण अब पहले की तरह धार्मिक मुद्दे आधार नहीं होते हैं बल्कि मौजूदा राजनीति का मिजाज भांपते हुए अब वरुण 'सुल्तानपुर का सुल्तान' बनने के लिए सभाओं में मौजूद लोगों से सोच बदलने की अपील कर रहे हैं। वह अपनी नुक्कड़ सभाओं में इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अगर नेता ईमानदार होगा तो जितना विकास कागजों पर दिखता है उतना हकीकत में भी दिखेगा।
अपनी चुनावी जनसभा में उन्होंने कहा कि देश की वर्तमान जातिवाद, बेरोजगारी, विकास का आभाव जैसी समस्याएं नेतृत्व के अभाव की देन है। सुल्तानपुर के लोग पिछले 25 साल से अपने आप को राजनीतिक रूप से अनाथ महसूस कर रहे हैं। वह यहां पर इस कमी को ही भरने आए हैं। वह कहते हैं कि अब लोगों को अपनी समस्याओं के लिए परेशान नहीं होना होगा तथा उनके पीछे वह एक मजबूत सहारे के रूप में खड़े रहेंगे।
सभाओं में मौजूद लोगों से सोच बदलने की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि अगर नेता ईमानदार होगा तो जितना विकास कागजों पर दिखता है उतना हकीकत में भी दिखेगा। सुल्तानपुर की पहचान को बढ़ाने का भरोसा देते हुए उन्होंने कहा कि यहां पर व्यवस्थाओं की कमी को दूर किया जाएगा। उनका कहना था कि चुनाव जीतने के बाद नेता अहंकार में मद मस्त हो जाते हैं पर राजनीति में अहंकार का कोई स्थान नहीं है।
चुने हुए लोग तो जनता के हित में चलाई जाने वाली योजनाओं के पर्यवेक्षक होते हैं। काम में पारदर्शिता पर जोर देते हुए वे सभा में मौजूद लोगों को बताते हैं कि किसा प्रकार से विकास कार्यो में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। योजनाओं में भ्रष्टाचार का विषय उठाने के साथ ही वे यह भी कहते हैं कि नेता ऐसा होना चाहिए जो न तो चोरी करे और न ही चोरी करने दे। एक सभा में तो वे अपनी कट्टर छवि को तोड़ते हुए दिखे तथा यहां तक कह दिया कि वह धर्म गुरु का नहीं जनप्रतिनिधि का चुनाव लड़ने आए हैं। युवाओं की समस्याओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं के सपने कई हैं तथा उन्हें पूरा करने के लिए व्यवस्था नहीं हैं जिसका विकास करना होगा।