यूपी में योगी सरकार में चल रहे संकट के बीच सपा-कांग्रेस के दावे और लापता बसपा
यूपी में पिछले कुछ दिनों से सत्तारूढ़ बीजेपी में सियासी अटकलबाज़ियों का दौर चल रहा है, सरकार और संगठन में बदलाव की चर्चाएं गरम हैं, केंद्र और राज्य में तनातनी की ख़बरें भी हैं लेकिन ऐसे माहौल में भी विपक्ष की ख़ामोशी लोगों को हैरान कर रही है.
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी में सियासी अटकलबाज़ियों का दौर चल रहा है, सरकार और संगठन में बदलाव की चर्चाएं गरम हैं, केंद्र और राज्य में तनातनी की ख़बरें भी हैं लेकिन ऐसे माहौल में भी विपक्ष की ख़ामोशी लोगों को हैरान कर रही है. हालांकि विपक्षी दल यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वो ख़ामोश हैं.
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधान सभा चुनाव हैं. कोरोना संकट के कारण पिछले कुछ महीने काफ़ी संकट में रहे और लॉकडाउन की वजह से तमाम गतिविधियां भी बाधित रहीं. लेकिन विपक्षी दलों की गतिविधियां पिछले काफ़ी समय से इतनी सक्रिय नहीं दिख रही हैं जितनी कि बीजेपी जैसी मज़बूत पार्टी के मुक़ाबले में उतरने लायक दिखें.
हालांकि योगी आदित्यनाथ की चार साल पुरानी सरकार में विपक्ष के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं रही, लेकिन किसी भी एक पार्टी का सरकार के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का स्वर इतना मुखर नहीं दिखा कि बीजेपी से नाराज़ मतदाताओं का विश्वास हासिल कर सकें.
- योगी आदित्यनाथ का क्या बीजेपी-संघ के पास कोई विकल्प नहीं है?
- योगी आदित्यनाथ क्या मोदी-शाह को सीधे चुनौती दे रहे हैं?
https://www.youtube.com/watch?v=7Xbz1zy4NVk
गाँव-गाँव काम कर रहे हैंः सपा
लखनऊ में एक वरिष्ठ पत्रकार तंज़ करते हैं कि यूपी में सरकार को विपक्ष से ज़्यादा तो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से डांट खानी पड़ रही है. हालांकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी कई मुद्दों पर सड़कों पर भी उतरे और कोविड संक्रमण के दौरान भी सरकार की नाकामियों को उजागर करते रहे लेकिन यह सब ज़्यादातर सोशल मीडिया पर ही नज़र आया.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया इस बात से इनकार करते हैं कि विपक्ष ख़ामोश है.
https://twitter.com/samajwadiparty/status/1397853004531859465
अनुराग भदौरिया कहते हैं, "विपक्ष क्या करे. लॉकडाउन में बाहर निकल नहीं सकते हैं. कोविड प्रोटोकॉल के तहत कोरोना संक्रमण के दौरान हमारे कार्यकर्ता गाँव गाँव काम कर रहे हैं. सरकार का काम विपक्ष कर रहा है. लोगों की हम मदद कर रहे हैं. उन्हें राशन, दवाई इत्यादि पहुंचा रहे हैं. सरकार तो केवल इवेंट और मार्केटिंग में यकीन करती है, धरातल पर काम नहीं कर रही है."
https://twitter.com/INCMinority/status/1402211903431008258
कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है?
कोरोना संकट के दौरान लोगों के साथ खड़े होने का दावा कांग्रेस पार्टी भी करती है. कांग्रेस के नेता कहते हैं कि उनकी पार्टी ने लोगों को हर स्तर पर सहयोग करने की कोशिश की.
कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के नवनियुक्त चेयरमैन इमरान प्रतापगढ़ी कहते हैं, "पूरे कोविड काल में यूपी ही नहीं देश भर में सरकार से ज़्यादा कांग्रेस के फ़्रंटल संगठनों और उसके युवा विंग ने काम किया. सोशल मीडिया के माध्यम से जिसने भी मदद मांगी, कांग्रेस पार्टी ने दी. विदेशी दूतावासों तक को मदद पहुंचाई. देश की जनता को यह सोचना होगा कि जो ज़िम्मेदारी सरकार को निभानी थी वो विपक्ष निभा रहा था और सरकार चलाने वाली पार्टी चुनाव में रैलियां कर रही थी. यहां तक कि हमें मदद करने से रोकने की भी कोशिश की गई. लोग सांसों के लिए तरसते रहे लेकिन पीएम, सीएम और स्वास्थ्य मंत्री का कहीं चेहरा तक नहीं दिखा."
https://twitter.com/ShuklaRajiv/status/1402209177598976002
इमरान प्रतापगढ़ी दावा करते हैं कि उनकी पार्टी ने कोविड संक्रमण से जूझ रहे गाँवों में दस लाख मेडिकल किट बांटे हैं और विपक्ष के नाम पर भी केवल कांग्रेस पार्टी ही कोविड संकट में लोगों के साथ खड़ी रही.
बहुजन समाज पार्टी परिदृश्य से क्यों गायब?
दावा समाजवादी पार्टी भी ऐसा कर रही है लेकिन सबसे आश्चर्यजनक रवैया बहुजन समाज पार्टी का है जो कोविड संक्रमण के दौर में ज़मीन पर दिखी भी नहीं और न ही इस तरह का कोई दावा ही कर रही है.
यही नहीं, बीएसपी के कोई नेता इस मामले में भी वैसे ही कुछ बोलने से साफ़ इनकार कर देते हैं जैसे कि किसी अन्य मामले में.
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से पहले देश की राजनीति में कृषि क़ानूनों का मुद्दा गर्माया हुआ था. कई राज्यों के किसान और विपक्षी राजनीतिक दल कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के तमाम इलाक़ों में किसान यूनियन ने कई जगह पंचायतें कीं, कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी ने भी पंचायतें कीं लेकिन बीएसपी ने किसान आंदोलन से ख़ुद को दूर ही रखा. हां, बीच-बीच में कुछ मुद्दों पर बीएसपी नेता मायावती ट्वीट ज़रूर कर देती हैं.
- मायावती और बहुजन समाज पार्टी इन दिनों यूपी में कितनी सक्रिय हैं?
- मायावती पर भद्दे चुटकुले सुनाने की हिम्मत कहाँ से आती है?
क्या बीजेपी से मुक़ाबले की तैयारी चल रही है?
लेकिन सवाल उठता है कि क्या विपक्षी दल ऐसी ही सक्रियता की बदौलत बीजेपी से मुक़ाबले की तैयारी कर रहे हैं?
अनुराग भदौरिया कहते हैं कि हम अपनी रणनीति मीडिया से शेयर नहीं कर सकते हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, उनकी रणनीति फ़िलहाल चुनाव जीतने लायक़ तो नहीं ही कही जा सकती.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि विपक्षी दल, ख़ासकर समाजवादी पार्टी उसी क्षण के इंतज़ार में हैं जिसके लिए 'बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने' वाला मुहावरा बना है.
सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "विपक्ष को इस समय सबसे ज़्यादा जनता के बीच होना चाहिए. लेकिन मुख्य विपक्षी दल यानी सपा और बसपा ने अपनी भूमिका सही से नहीं निभाई. बसपा तो सिमटती ही जा रही है. मायावती का सामाजिक न्याय टिकट बँटवारे तक ही रहता था लेकिन अब वह स्थिति भी नहीं दिख रही है. समाजवादी पार्टी जनता की नाराज़गी, बीजेपी की आपसी फूट और जातीय समीकरणों के भरोसे है. उसे लगता है कि ये परिस्थितियां अपने आप उसे सत्ता में पहुँचा देंगी. कांग्रेस ने इस दौर में काम काफ़ी किया है लेकिन वह उतनी बड़ी ताक़त तो है नहीं कि सरकार का विकल्प दे सके."
https://twitter.com/INCMinority/status/1402210028656873472/photo/1
क्या कांग्रेस यूपी में नींव मजबूत बनाने में जुटी है?
सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि समाजवादी पार्टी ज़मीनी संघर्ष कर सकती थी लेकिन उसने तमाम मौक़े गँवाए हैं जबकि कांग्रेस पार्टी ने ख़ास जनाधार न होने के बावजूद ऐसे मौक़ों पर सक्रिय नज़र आई.
उनके मुताबिक, "सपा के पास नौजवानों की फ़ौज है, हाल-फ़िलहाल सत्ता से बाहर आई है, जनसंघर्ष कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा किया नहीं. कांग्रेस पार्टी ज़रूर इसका फ़ायदा उठा ले गई कि तमाम मौक़ों पर चर्चा में रही और सरकार को अपने कई फ़ैसले वापस लेने पर विवश होना पड़ा. लेकिन उसका जनाधार नहीं है. उन्नाव, सोनभद्र, हाथरस की घटनाएं हों या फिर लॉकडाउन के दौरान, प्रियंका गांधी काफ़ी सक्रिय रहीं."
अनुराग भदौरिया कहते हैं कि समाजवादी लोग राजनीतिक लाभ से काम नहीं करते.
वे कहते हैं, "हमने नफ़रत नहीं विकास के लिए काम किया है. हमारा काम दिख रहा है. कोविड संक्रमण के दौरान एंबुलेंस सेवा का कितना लाभ लोगों को मिला. कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो बाद में समझ में आती हैं. साल 2017 में लोग बीजेपी के झांसे में आ गए थे लेकिन अब नहीं आने वाले हैं. पंचायत चुनाव में जनता ने आइना दिखा दिया है और विधानसभा में भी जनता बता देगी."
कांग्रेस पार्टी का भी कहना है कि कोविड संक्रमण के दौरान पार्टी से जुड़े लोगों ने सेवा भाव से काम किया है लेकिन कोविड दौर ख़त्म होने के बाद पार्टी कार्यकर्ता जनता को यह बताने के लिए सड़क पर उतरेंगे और गाँव-गाँव जाएंगे कि आपदा की इस स्थिति में सरकार उनके साथ नहीं थी.
इमरान प्रतापगढ़ी कहते हैं, "कांग्रेस ने हमेशा सेवा भाव से ही काम किया है. जनता ने कांग्रेस पर बहुत दिनों तक भरोसा भी किया. बीजेपी ने लोगों को भ्रम में रखा, लेकिन अब जनता समझ रही है. यही समझाने के लिए हम विधानसभा चुनावों में उतरेंगे. राज्य में तो धारा 144 लगाने का रिकॉर्ड बनाया जा रहा है लेकिन जैसे ही कोविड दौर ख़त्म होगा हम सड़क पर उतरेंगे और गाँव गाँव जाएंगे."
https://twitter.com/samajwadiparty/status/1399509840750280707
क्या विपक्ष ज़मीन पर नहीं दिख रहा?
वहीं दूसरी ओर, राजनीतिक पर्यवेक्षक यह भी कहते हैं कि लोगों को यह महसूस कराना कि विपक्ष ज़मीन पर नहीं दिख रहा है, बीजेपी की रणनीति का एक अहम हिस्सा है.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, "बीजेपी का प्रचार तंत्र जितना ज़ोर इस बात पर देता है कि उनकी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है, उससे ज़्यादा इस बात पर देता है कि दूसरे चुप बैठे हैं और वो इतना नहीं कर सकते. कोरोना काल में सरकार की नाकामी साफ़ दिखी लेकिन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा कि यदि उनकी पार्टी की सरकार न होती तो स्थिति इससे भी ज़्यादा ख़राब होती. ऐसा नहीं है कि विपक्ष ख़ामोश है, लेकिन मीडिया में उसकी उपस्थिति उस तरह से नहीं दिख रही है जैसी कि सरकार की या बीजेपी की."
https://www.youtube.com/watch?v=gr27_kwpGG0
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोविड संक्रमण के दौरान कई बार विपक्ष पर हमलावर हो चुके हैं. पिछले दिनों मीडिया से बातचीत में उन्होंने विपक्ष को घेरते हुए कहा था, "यह अफ़वाह फैलाने या राजनीति करने का समय नहीं है, बल्कि मानवता की सेवा करने का वक़्त है."
उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों हुए पंचायत चुनाव में विपक्षी पार्टियां, ख़ासकर समाजवादी पार्टी जीत का दावा कर रही है और विधानसभा चुनाव में भी कुछ इसी तरह के परिणाम की उम्मीद कर रही है लेकिन जानकारों की मानें तो यह इतना भी आसान नहीं है.
पंचायत चुनाव में ज़िला पंचायत सदस्यों की जीत का दावा भले ही विपक्षी दल कर रहे हों लेकिन असली लड़ाई अभी भी बाक़ी है जब ज़िला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों का चुनाव होगा.
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