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यूपी चुनाव : तीन बार MLA बने लेकिन पैदल जाते थे विधानसभा

By अशोक कुमार शर्मा
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लखनऊ, 13 फरवरी। कुछ नेता ऐसे होते हैं जो राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। उत्तर प्रदेश के विधायक मास्टर रामस्वरूप ऐसे ही नेता थे। यह वक्त की नाइंसाफी है कि उनके त्याग और तपस्या की आज कोई चर्चा नहीं होती। मास्टर रामस्वरूप उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद के विधायक थे। नजीबाबाद बिजनौर जिले में है। वे सीपीएम से तीन बार विधायक बने थे। मास्टर रामस्वरूप की सादगी और ईमानदारी की हर तरफ चर्चा थी। विरोधी दल में होने के बावजूद मुलायम सिंह यादव उनकी सादगी के कायल थे। उनका मानना था कि मास्टर रामस्वरूप सीपीएम के हैं तो क्या हुआ ? उनके जैसे नेता का विधानसभा में होना जरूरी है। इसी सोच की वजह से मुलायम सिंह ने 2002 के विधानसबा चुनाव में उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिया था। मुलायम सिंह की उस दरियादिली की वजह से मास्टर रामस्वरूप तीसरी बार विधायक बने थे।

2022 में क्या भाजपा जीत का सूखा खत्म करेगी?

2022 में क्या भाजपा जीत का सूखा खत्म करेगी?

बिजनौर के नजीबाबाद विधानसभा क्षेत्र में 14 फरवरी को चुनाव है। इस सीट पर सपा का कब्जा है। तस्लीम अहमद यहां के विधायक हैं। 2022 में भी तस्लीम अहमद ने सपा ती तरफ से चुनौती पेश की है। 2017 में तस्लीम ने भाजपा के राजीव कुमार अग्रवाल को हराया था। लेकिन 2022 में भाजपा ने नये उम्मीदार भारतेंदु सिंह को मैदान में उतारा है। इस सीट पर भाजपा को सिर्फ 1991 में जीत मिली है। तब से वह यहां जीत के लिए तरस रही है। 2017 की मोदी लहर में भी भाजपा नजीबाबाद सीट नहीं जीत पायी थी। 2012 में तस्लीम अहमद बसपा से विधायक बने थे। इस सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नजीबाबाद सीट 2007 तक सुरक्षित (एससी) सीट थी। 2008 में परिसीमन के बाद यह सामान्य सीट हो गयी। 2012 में पहली बात सामान्य सीट के रूप में यहां चुनाव हुआ था।

पूर्व विधायक रामस्वरूप की सादगी आज भी मिसाल

पूर्व विधायक रामस्वरूप की सादगी आज भी मिसाल

रामस्वरूप सिंह सहारनपुर के रहने वाले थे। वे सहारनपुर से सटे नजीबाबाद के प्राइमरी स्कूल में शिक्षक थे। वे कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक थे। पढ़ाने के बाद गरीबों की सेवा में समय गुजारते थे। 1974 में उन्होंने सरकारी शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) में शामिल हो गये। उन्होंने नजीबाबाद को ही अपनी कर्मभूमि बनायी। 1974 में नजीबाबाद से सीपीएम के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा। लेकिन कांग्रेस के सुखन सिंह से हार गये। 1977, 1980 और 1985 में फिर चुनाव हारे। लगातार चार चुनाव हारने के बाद भी मास्टर रामस्वरूप ने हौसला नहीं खोया। न पार्टी बदली न जीने का तरीका। वे पैदल ही कहीं आते जाते थे। जरूरी होने पर कभी कभार रिक्शा कर लिया करते। बस और ट्रेन में यात्रा करते। साधारण वेशभूषा की वजह से शायद ही उन्हें कोई नेता समझता। 1993 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं। सीपीएम का जनता दल से गठबंधन हुआ। जनता दल-सीपीएम के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में मास्टर रामस्वरूप ने भाजपा के राजेन्द्र प्रसाद को करीब छह हजार वोटों से हरा दिया। लगातार चार चुनाव हारने के बाद मास्टर रामस्वरूप आखिरकार 1993 में विधायक बने।

पैदल ही जाते थे विधानसभा

पैदल ही जाते थे विधानसभा

वे विधायक तो बन गये लेकिन उनकी जिंदगी तड़कभड़क से दूर रही। गरीबों के नेता थे। गरीबों की तरह रहते थे। शानौ शौकत का नामो निशान न था। उन्होंने नजीबाबाद से 1996 में दूसरी बार चुनाव जीता। दूसरी बार विधायक बनने के बाद भी उनके पास अपनी कोई गाड़ी नहीं थी। लखनऊ में उनका विधायक आवास विधानसभा के नजदीक ही था। जब असेम्बली का सेशन चलता, वे अपने आवास से पैदल ही विधानसभा पहुंच जाते। 1993 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। वे मास्टर रामस्वरूप की सादगी और सहजता से बहुत प्रभावित थे। विधानसभा में मास्टर रामस्वरूप बहुत शांति के साथ जनहित के मुद्दे उठाते। वे पूर्व शिक्षक थे। बहुत होमवर्क करने के बाद ही वे सदन में अपनी बात रखते थे। मुलायम सिंह मास्टर रामस्वरूप की काबिलियत के भी कायल हो गये। 2002 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम का सपा से गठबंधन टूट गया। लेकिन मुलायम सिंह की नजर में मास्टर रामस्वरूप के लिए इज्जत पहले की तरह बरकार रही। वे दिल से चाहते थे कि यह ईमानदार नेता किसी तरह फिर जीत जाए। तब उन्होंने फैसला किया कि नजीबाबाद सीट पर सपा कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। सपा का कैंडिडेट नहीं होने की वजह से सीपीएम उम्मीदवार मास्टर रामस्वरूप की स्थिति मजबूत हो गयी। 2002 में जोरदार मुकाबला हुआ। मास्टर रामस्वरूप ने बसपा के शीश राम को करीब पांच हजार मतों से हरा दिया। मुलायम सिंह के सहयोग से वे तीसरी बार विधायक बने। मुलायम सिंह ने मास्टर रामस्वरूप के निधन के बाद भी उनके प्रति सम्मान की भावना दिखायी। उनके बेटे रामकुमार को सपा से चुनाव लड़ाया था लेकिन वे जीत नहीं सके।

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English summary
UP elections: Master Ramswaroop Became MLA thrice but used to go to the assembly on foot
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