नीट के लिए किया 700 किलोमीटर का सफर लेकिन नहीं दे सके परीक्षा
देश के राज्यों से ऐसे बच्चों के मामले सामने आए हैं जो किसी न किसी कारण तमाम कोशिशों के बावजूद भी नीट परीक्षा नहीं दे सके.
"बारह सौ रुपया पहले बस में खर्च किया और फिर तीन सौ रुपया टैक्सी में, लेकिन जब तक सेंटर पहुंचे तब तक 1:40 हो गया था और रिपोर्टिंग टाइम था 1:30 मिनट. हम दस मिनट लेट हो गए. और पेपर नहीं देने दिया गया. सर, हम अपना टैलेंट नहीं दिखा पाए..."
ये शब्द 20 साल के संतोष यादव के हैं जो बिहार के बाढ़ ग्रस्त ज़िले दरभंगा से लगभग सात सौ किलोमीटर का सफ़र तय करके कोलकाता पहुंचे थे.
लेकिन मात्र दस मिनट की देरी के चलते संतोष यादव नीट परीक्षा नहीं दे सके जिसके लिए उन्होंने कई घंटों की यात्रा की थी.
बीबीसी से बात करते हुए संतोष ने बताया कि वह दस या ग्यारह तारीख़ से ही कोलकाता जाने वाले थे. लेकिन हर दिन गाड़ी रद्द होती रही.
भारत में कई जगहों पर कोरोनो महामारी की वजह से रेल यातायात अब तक सामान्य नहीं हुआ है.
दरभंगा से पटना के रास्ते
इसके साथ ही कई इलाक़ों में बाढ़ की स्थिति की वजह से सड़क यातायात भी बाधित है.
बाढ़ प्रभावित राज्यों में सड़कों पर घंटों जाम लगने की सूचनाएं आ रही हैं.
संतोष को भी दरभंगा से पटना के रास्ते में ही पाँच घंटे लंबा जाम झेलना पड़ा.
आर्थिक रूप से कमजोर किसान परिवार से आने वाले संतोष बताते हैं, "12 तारीख़ को कोलकाता के लिए गाड़ी खुली थी. हम तो पहले ही निकलना चाहते थे लेकिन ट्रांसपोर्ट वाला हर रोज़ गाड़ी कैंसिल किए जा रहा था. दस को भी गाड़ी कैंसिल हुई और फिर 11 को भी ट्रांसपोर्ट वाले ने गाड़ी कैंसिल की. फिर 12 तारीख़ को हमें बस मिली. वहाँ से मुजफ्फरपुर और पटना के बीच पाँच घंटे का जाम लगा रहा. 12 तारीख की रात को पटना पहुंचे. इसके बाद अगले दिन सुबह 1 बजे कोलकाता पहुंचे. वहां से टैक्सी पकड़े. और सेंटर पर पहुंचे."
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कहानी हज़ार, दर्द एक...
ये कहानी सिर्फ़ संतोष यादव की नहीं है. भारत में नीट की परीक्षा दे रहे कई बच्चों को लगभग संतोष जैसे ही हालात से गुजरना पड़ा.
संतोष अभी भी कोलकाता से लौटकर दरभंगा नहीं पहुँचे हैं. बीबीसी ने उनसे जब इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा, "कैसे लौटें… गाड़ी ही नहीं चल रही है."
इसके बाद टेस्ट न दे पाने की अपनी व्यथा ज़ाहिर करते हुए संतोष कहते हैं, "ये तो कन्फर्म है कि इस बार हमारा नहीं होता, लेकिन हमें पता चल जाता है कि हमें कितना आता है. तो अगली दफे हो जाता. हम बस...अपना टैलेंट नहीं दिखा पाए."
शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंख ने कहा है, "नीट टेस्ट के लिए 15.97 लाख बच्चों ने पंजीकरण करवाया था. इसमें से 14.37 लाख बच्चे परीक्षा में शामिल हुए हैं. कुछ लोग परीक्षाओं के आयोजन को लेकर सवाल उठा रहे थे लेकिन हम जानते थे कि छात्र एक साल ख़राब नहीं करना चाहते थे."
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Out of 15.97 lakh registered candidates, 14.37 lakh students appeared in NEET examinations. Some people were raising questions over the conduct of the examinations but we knew that students didn't want one year to go waste: Union Education Minister Ramesh Pokhriyal Nishank pic.twitter.com/JWBSKMvJTW
— ANI (@ANI) September 14, 2020
परीक्षा से पहले हुआ था विवाद
शिक्षा मंत्री के बयान से ये स्पष्ट होता है कि कितने बच्चों ने इस परीक्षा में भाग लिया. लेकिन, इससे ये भी स्पष्ट होता है कि इस परीक्षा में 1.6 लाख बच्चे हिस्सा नहीं ले सके.
उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, बंगाल, गुवाहाटी और दक्षिण भारत से लेकर पश्चिम भारत के राज्यों से ऐसे बच्चों के मामले सामने आए हैं जो कि किसी न किसी कारण के चलते तमाम कोशिशों के बाद भी ये परीक्षा नहीं दे सके.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कुछ बच्चों ने कथित तौर पर परीक्षा न दे पाने की वजह से खुदकुशी कर ली, तमिलनाडु में द्रमुक नेता स्तालिन ने नीट परीक्षा के आयोजन का मुखर विरोध किया है.
कई छात्र उन्हीं वजहों से इस टेस्ट में शामिल नहीं हो सके जिन्हें लेकर इन परीक्षाओं की तारीख़ आगे बढ़ाने की माँग की जा रही थी.
छात्रों का कहना था कि लॉकडाउन की वजह से अब तक ट्रेन सेवाएं सामान्य नहीं हुई हैं, कई जगहों पर सामान्य यातायात भी मुश्किल है. अंदरूनी इलाक़ों में यातायात बुरी तरह चरमराया हुआ है.
ऐसे में सवाल ये उठाया गया था कि छात्र इन परीक्षाओं में बैठने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी कैसे तय करेंगे. संतोष यादव को स्वयं 700 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी जिसके बाद भी वे परीक्षा नहीं दे सके.
इसके साथ ही छात्रों ने ये कहा था कि कोविड के दौर में अगर वे संक्रमित हो गए और उनके घर में अगर किसी को कुछ हो जाता है, तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा.
छात्र अपनी इन समस्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गए. इसके बाद कई राज्यों की सरकारें भी सुप्रीम कोर्ट गईं ताकि इस परीक्षा के आयोजन को स्थगित किया जा सके.
कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि ये टेस्ट कोविड और बाढ़ की स्थिति सुधरने के बाद आयोजित कराया जाए.
लेकिन कोर्ट और सरकार का रुख ये था कि कोविड की वजह से बच्चों का एक साल ख़राब नहीं किया जा सकता है.
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने अपनी प्रेस रिलीज़ में 17 अगस्त की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला दिया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षाएं स्थगित करने की याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा था कि छात्रों का क़ीमती साल 'बर्बाद नहीं किया जा सकता है' और ज़िंदगी चलते रहने का नाम है.
इसके बाद एनटीए ने अपने स्तर पर बेहतरीन इंतज़ाम करने के दावे किए. कई परीक्षा केंद्रों पर अव्यवस्था नज़र आई लेकिन कई जगहों पर कोविड का संक्रमण फैलने से बचाने के लिए अहम कदम भी उठाए गए.
कई टेस्ट सेंटरों पर सेनिटेशन की सुविधा समेत छात्रों की मदद के लिए विशेष काउंटर खोलने की बात भी सामने आई है.
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दोबारा परीक्षा कराने की माँग
इस मामले को कोर्ट लेकर जाने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने ट्वीट करके इन बच्चों की परीक्षा एक बार फिर कराने की माँग उठाई है.
कोरोना की असाधारण परिस्थिति के कारण कई छात्र हाल में नीट, जेईई, एनडीए जैसी परीक्षाओं में सम्मिलित नहीं हो पाए या सम्मिलित हो के भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाए।अंतिम प्रयास वाले छात्रों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
ऐसे सभी छात्रों को इन परीक्षाओं का एक और अवसर मिलना चाहिए
— Alakh Alok Srivastava (@advocate_alakh) September 14, 2020
वहीं, बच्चों को उनके अधिकार दिलाने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकील अशोक अग्रवाल मानते हैं कि सरकार को इन परीक्षाओं को दोबारा कराने पर विचार करना चाहिए.
वह कहते हैं, “भारत का संवैधानिक दर्शन ये कहता है कि एक शख़्स के साथ भी अन्याय नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट समेत अन्य जजों की ज़िम्मेदारी है कि किसी एक शख़्स का भी नुकसान नहीं होना चाहिए. और जब किसी की ग़लती नहीं है तो उसके साथ ग़लत क्यों होना चाहिए. ऐसे में सरकार को इन परीक्षाओं को दोबारा आयोजित करना चाहिए क्योंकि ऐसा न होने पर इसका विकल्प क्या है."
"तरीके से तो सरकारी संस्थाओं को ही न्याय करना चाहिए...वहां से न्याय न हो पाने पर व्यक्ति अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है. लेकिन सरकार को पंक्ति में खड़ा आख़िरी व्यक्ति अक्सर कम ही दिखाई देता है. मगर जहाँ करियर का सवाल है तो एक प्रतिशत बच्चे भी उतने ही अहम हैं जितने इस देश के 99 फीसदी बच्चे…”