बिहार की कोसी नदी को कोसने वाले जरूर पढ़ें यह खबर
बेंगलोर। जिंदगी और मौत के विकल्प में जाहिर है हम जिंदगी को ही चुनेंगे। मौत कितनी भी खूबसूरत हो, उसे स्वीकारने में अच्छे-अच्छे हिम्मत हार जाते हैं और जिंदगी में उतार-चढ़ाव को हम सभी दिल से सवीकार कर लेते हैं। हाल में ही उत्तराखंड जल-प्रलय की बरसी पर शोक प्रकट किया गया व पर्यावरण पर चिंता जताई गई।
आज चर्चा करते हैं बिहार राज्य में काल की तरह बहने वाली 'कोसी' और दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ग लुटाती 'कोसी'। कहने में दोनों ही नदियां हैं। दोनों के जल श्रोत हैं, पर क्या है ऐसा खास, जो बिहार की कोसी को सभी कोसते हैं और दूसरी विदेशी कोसी की झलक पाने को उतावले रहते हैं। घुमाएं स्लाइडर और जानें इन नदियों के खास अंतर-
कोसी उजाड़ती है परिवार
बिहार की कोसी दी में आने वाली बाढ़ ना जाने कितने परिवार उजाड़ देती है। पिछली साल आई बाढ़ में कोई 25 लाख लोग विस्थापित हो गए थे। कोई भी राज्य सरकार अपनी अक्षमता छिपाने के लिए कर सकती है बिहार सरकार भी वैसा ही करती आई है।
कोसी की कमजोरी
कोसी बैराज की कमजोरी के चलते न केवल उत्तर बिहार बल्कि बंगाल और बांग्लादेश तक संकट में आ सकते हैं। कोसी को आप घूमती-फिरती नदी भी कह सकते हैं। पिछले 200 सालों में इसने अपने बहाव मार्ग में 120 किलोमीटर का परिवर्तन किया है।
सात नदियों का संगम
हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी नेपाल से बिहार में प्रवेश करती है। इस नदी के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई है, हिमालय से निकलने वाली कोसी के साथ सात नदियों का संगम होता है, जिसे सन कोसी, तमा कोसी, दूध कोसी, इंद्रावती, लिखू, अरुण और तमार शामिल है। कोसी के मार्ग बदलने से कई नए इलाके प्रत्येक वर्ष इसकी चपेट में आ जाते हैं।
`कोसी का खतरनाक बेल्ट´
बिहार के पूर्णिया, अरररिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार जिलों में कोसी की ढेर सारी शाखाएं हैं। कोसी बिहार में महानंदा और गंगा में मिलती है। इन बड़ी नदियों में मिलने से विभिन्न क्षेत्रों में पानी का दबाव और भी बढ़ जाता है। बिहार और नेपाल में `कोसी बेल्ट´ शब्द काफी लोकिप्रय है। इसका अर्थ उन इलाकों से हैं, जहां कोसी का प्रवेश है। नेपाल में `कोसी बेल्ट´ में बिराटनगर आता है, वहीं बिहार में पूर्णिया और कटिहार जिला को कोसी बेल्ट कहते हैं।
पानी भंडारण के लिए ऊंचे बांध
कोसी की बाढ़ को रोकने का एकमेव उपाय था कि नेपाल में जहां कोसी परियोजना है वहीं पानी भंडारण के लिए ऊंचे बांध बनाये जाते। लेकिन पर्यावरणविदों का एक वर्ग लगातार यह तर्क देता रहा कि लोगों को बाढ़ का सम्मान करना चाहिए।
दक्षिण अफ्रीका की कोसी
कोसी बे साउथ अफ्रीका के सबसे शांत समुद्री किनारो में से एक है। इसी खासियत है कि इसका पानी इतना साफ है कि वहां के लोग इसे एक्वेरियम कहकर बुलाते हैं। पानी शीशे सा क्लियर रहता है, जिसमें कई समुद्री जीव आराम से देखे जा सकते हैं।
अपने आप में इतनी अनोखी
चार झीलों से जुड़कर बनी यह झील अपने आप में इतनी अनोखी है कि यहां पहुंचकर स्वर्ग का अहसास होता है। इतना ही नहीं, यहां पाई जाने वाली बुल शार्क दुनिया भर में मशहूर हैं। साथ ही इस झील की खासियत है कि यहां पर हाई टाइड्स में मछलियां जब कलाबाजियां करती हैं, तो देखते ही बनता है।
मछली पकड़ने का अनोखा तरीका
इस झील में मछली पकड़ने का अनोखा तरीका अपनाया जाता है। नियम के मुताबिक एक तय समय में मछुआरे यहां आते हैं और अपने जोन में आकर मछली पकड़ते हैं और वापस लौट जाते हैं। साथ ही खूबसूरत मछलियां एक्वेरियम कांट्रेक्ट के लिए भेज दी जाती हैं।
कपल डेसिनेशंस के लिए उम्दा स्पॉट
यहां का टूरिज़्म दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। शांत, रामांचक माहौल यहां की संदरता में चार चांद लगाता है। कपल और चिल्ड्रन डेसिनेशंस के लिए यह उम्दा स्पॉट है, जहां हर साल लाखों पर्यटक जमा होते हैं।
इंटरलिंकिंग का कमाल
यहां चार नदियों को इंटरलिंक किया गया है, जिससे यहां बाढ़ जैसी समस्याओं का सवाल ही पैदा नहीं होता। वहीं कई भारतीय नदियों में इस तरह की इंटरलिंकिंग ना होने से जब-तब बाढ़ का खतरा पैदा होता रहता है