मुंबई के हामिद के लिए हमेशा मां की तरह दिल में जिंदा रहेंगी सुषमा स्वराज, जानिए क्यों
मुंबई। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के जाने से शायद देश का हर शख्स दुखी है। सुषमा आम भारतीयों के दिल में अपनी जगह बना लेने वाली मंत्री थीं। मुंबई के हामिद नेहाल अंसारी भी सुषमा के जाने से दुखी हैं। हामिद के बारे में अगर आपको नहीं मालूम है तो आपको बता दें हामिद वही शख्स हैं जो पाकिस्तान की जेल में बंद थे। दिसंबर 2018 में हामिद छह साल के बाद अपने वतन लौटे और उनकी रिहाई में सुषमा का योगदान कोई नहीं भूला सकेगा। हामिद भी सुषमा के जाने से दुखी हैं और उन्हें वह पल याद आ रहा है जब पाक से लौटने के बाद उन्होंने विदेश मंत्री से मुलाकात की थी।
जिंदगी में आगे बढ़ने की राह दिखाई
हामिद ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, 'मेरे दिल में उनके लिए बहुत सम्मान हैं। वह हमेशा मेरे दिल में जिंदा रहेंगी। वह मेरे लिए मां की तरह थीं। पाकिस्तान से लौटने के बाद उन्होंने जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया। उनका चला जाना मेरे लिए बहुत बड़ा नुकसान है।' हामिद साल 2012 से पाकिस्तान की पेशावर सेंट्रल जेल में बंद थे। दिसंबर 2018 में हामिद ने अपनी मां फौजिया और पिता नेहाल के साथ सुषमा से मुलाकात की थी।
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हामिद की मां को लगाया गले से
सुषमा ने बेटे हामिद की वतन वापसी के बाद खुशी में भावुक हुई मां को गले से लगा लिया था। मां फौजिया जब अपनी विदेश मंत्री से मिलीं तो उनके मुंह से निकल पड़ा, 'मेरा भारत महान, मेरी मैडम महान।' हामिद को मंगलवार के जेल से रिहा किया गया था। हामिद अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने पाकिस्तान गए थे। दिल्ली पहुंचने पर हामिद ने कहा था, 'मुझे घर वापस लौट कर काफी अच्छा लग रहा है और मैं इस समय काफी भावुक हूं।' पाकिस्तान के अधिकारी पहले हामिद अंसारी को मिलिट्री कोर्ट के तहत सजा देना चाहते थे। अधिकारी हामिद अंसारी को जासूसी और आतंकवाद के आरोपों में सजा देने की कोशिश में थे। लेकिन वह इस बात को साबित नहीं कर पाए
सुषमा लगातार पाक को करती रहीं आगाह
साल 2015 से सुषमा पाकिस्तान को वॉर्निंग देने में लगी थीं कि हामिद को एक खरोंच तक नहीं आनी चाहिए। अधिकारी हामिद को मौत की सजा नहीं सुना पाए। अधिकारियों के पास जो भी सुबूत थे उनसे वह सिर्फ एक ऐसे आशिक के तौर पर ही साबित हो पाए जो एक लड़की की तलाश में पाकिस्तान तक आ गए थे। अंसारी की मां फौजिया और उनके पिता नेहाल अंसारी ने छह वर्षों में एक भी दिन ऐसा नहीं था जब अपने बेटे के लिए इंसाफ की लड़ाई न लड़ी हो। अंसारी की उम्र 27 वर्ष थी जब वह पाकिस्तान पहुंचे थे।