Sudha Yadav राजनीति में कैसे आईं ? जिन्हें मोदी जी ने चुनाव लड़ने के लिए मां के दिए 11 रुपए सौंपे थे
नई दिल्ली, 18 अगस्त: भाजपा संसदीय बोर्ड का जो बुधवार को पुनर्गठन किया गया है, उसमें एक नाम सुधा यादव का है, जो दो दशकों से भी ज्यादा समय से भाजपा के साथ जुड़ी हुई हैं। वह राजनीति में कैसे आईं, उन्होंने पहला चुनाव कैसे और किसके कहने पर लड़ा, ये सारा किस्सा बहुत ही दिलचस्प है। लेकिन,एक बात साफ है कि उन्हें बीजेपी ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है तो इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहुत बड़ा हाथ माना जा सकता है। क्योंकि, पीएम मोदी की वजह से ही वह राजनीति में आईं और भाजपा के लिए ही समर्पित हो गईं। उनके योगदान से भाजपा कई राज्यों में अपना चुनावी समीकरण साधना चाहती है।
कौन हैं सुधा यादव ?
बुधवार को भारतीय जनता पार्टी ने अपनी टॉप डिसिजन मेकिंग बॉडी केंद्रीय संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया है। इसमें पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बाद पहली बार एक महिला नेता को जगह मिली है। ये हैं हरियाणा की पूर्व बीजेपी सांसद सुधा यादव। पार्टी ने इस बार संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे दिग्गज नेताओं की छुट्टी करके इसमें 6 नए और दिग्गज चेहरों को जगह दी है। चर्चा इसी बात की है कि आखिर सुधा यादव को भाजपा ने अपनी शीर्ष संस्था में जगह दी है तो जरूरी कोई खास वजह रही होगी। इसलिए आइए पहले सुधा यादव की सियासी शख्सियत को जान लेते हैं।
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सुधा यादव से भाजपा नेताओं का वह आग्रह
1999 के आम चुनाव की बात है। कारगिल युद्ध के बाद इलेक्शन हो रहे थे। तब हरियाणा में कांग्रेस का बोलवाला हुआ करता था। बीजेपी के लिए कांग्रेस की चुनौती का सामना करना तब बहुत मुश्किल वाली बात थी। पार्टी को महेंद्रगढ़ सीट से एक मजबूत उम्मीदवार की तलाश थी। क्योंकि, मुकाबला कांग्रेस के तब के दिग्गज राव इंद्रजीत सिंह से होना था। उन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरियाणा में बीजेपी के प्रभारी होते थे। उन्होंने महेंद्रगढ़ से सुधा यादव को टिकट देने की सिफारिश नेतृत्व से की थी। इनके पति सुखबीर सिंह यादव बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट थे और कारगिल युद्ध में ही वीर गति को प्राप्त हुए थे। जब बीजेपी ने उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया तो वह शुरू में खुद को बिल्कुल तैयार ही नहीं कर पा रही थीं। भाजपा नेतृत्व ने काफी प्रयास किया, लेकिन सब बेकार साबित हुआ। वो चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं। आखिरकार अटल-आडवाणी के जमाने वाली बीजेपी लीडरशिप ने उन्हें मनाने की जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी को सौंप दी।
राजनीति में कैसे आईं सुधा यादव ?
सुधा यादव ने कई मौकों पर खुद के राजनीति में आने का श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया है। एक मौके पर उन्होंने कहा था, 'निराश और टूटी हुई थी, चुनाव लड़ने का विचार भी मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था। तभी फोन पर मेरी नरेंद्र मोदी से बात हुई। उन्होंने मुझसे कहा कि देश को मेरी उतनी ही आवश्यकता है, जितनी मेरे परिवार को। मेरे लिए बहुत ही कठिन समय था, बावजूद इसके पीएम मोदी के शब्दों ने मुझे जोश से भर दिया।' और इस तरह से वो चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गईं।
चुनाव साबित हुआ टर्निंग प्वाइंट
1999 के लोकसभा चुनाव में सुधा यादव ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के दिग्गज राव इंद्रजीत सिंह को महेंद्रगढ़ सीट पर 1.39 लाख से भी ज्यादा वोटों से हरा दिया। हालांकि, 2004 और 2009 के आम चुनावों में बीजेपी के सितारे खराब चल रहे थे तो सुधा यादव को भी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी केंद्र की सत्ता में काबिज हो गई और 2015 में भाजपा ने सुधा यादव को पार्टी के ओबीसी मोर्चा का इंचार्ज नियुक्त कर दिया। आईआईटी रुड़की से केमिस्ट्री में एमएससी और पीएचडी सुधा यादव अब भाजपा के संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति दोनों की सदस्य बनी हैं।
जब चुनाव लड़ने के लिए मोदी जी ने दिए थे 11 रुपए
सुधा यादव ने खुद एक इंटरव्यू में बताया है कि किस तरह से उनके चुनाव लड़ने के लिए चंदा जुटाने के वास्ते अपने पॉकेट से पीएम मोदी ने 11 रुपए निकाले थे, जो देखते ही देखते लाखों रुपयों में तब्दील हो गए। उन्होंने कहा कि मोदी जी संगठन का काम करते थे। इसलिए उनका अपना कोई निजी खर्चा नहीं था और जो भी होता था,वह संगठन के खर्चे से होता था। उनके पॉकेट में वे पैसे रखे हुए थे, जो कई वर्ष पहले उन्हें उनकी मां ने तब दिए थे, जब वो उनसे अंतिम बार मिले थे। सुधा यादव ने कहा था, "(मोदी जी बोले) मां के 11 रुपए मेरे पास रखे हुए हैं। और आज मुझे लगता है कि यही सही दिन है जब मैं उन 11 रुपयों का योगदान अपनी इस बहन को चुनाव लड़वाने के लिए कर सकता हूं। उन्होंने एक चादर नीचे बिछवाई। उसके ऊपर एक स्टील का कलश रखा गया। और उन्होंने अपनी पॉकेट में से वो 11 रुपए निकाले कि आज मैं इस बहन के चुनाव में मां के दिए ये 11 रुपए देता हूं। और कार्यकर्ताओं से निवेदन करता हूं कि अपनी जेब में किराए के अलावा कोई भी राशि ना रखें और यहां इस यज्ञ में आहुति दें.......आधे घंटे के अंदर 7.50 लाख रुपया उस चादर और कलश पर उनके उस आह्वान पर आए थे।"
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इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने से बीजेपी को क्या फायदा होगा ?
सुषमा स्वराज जैसी भाजपा की दिग्गज नेता की जगह पर सुधा यादव जैसे ओबीसी चेहरे को बिठाकर भाजपा ने कई सियासी समीकरण साधने की कोशिश किए हैं। वह यादव हैं, देश के लिए बलिदान देने वाली सिपाही की पत्नी हैं और काफी पढ़ी-लिखी सुलझी हुईं महिला नेता हैं। उनके भरोसे भाजपा को हरियाणा में अपने जनाधार को एकजुट रखने की उम्मीद तो है ही, राजस्थान से लेकर यूपी, मध्य प्रदेश से होते हुए बिहार तक में सियासी समीकरण को साधने में मदद की मिलने की संभावना है। (तस्वीर सौजन्य: पहली डॉक्टर सुधा यादव के फेसबुक से और बाकी उनके ट्विटर से)