उस 'अमेरिकी तालिबान' की कहानी जिसने ओसामा बिन लादेन की पनाह ली
जॉन वॉकर लिंद पहले ऐसे अमेरिकी थे जिन्हें 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग' की शुरुआत के बाद गिरफ़्तार किया था. दुनिया इस शख़्स को 'अमेरिकी तालिबान' के तौर पर जानती है.
जॉन वॉकर लिंद की परवरिश सैन फ्रांसिस्को के मिल वैली शहर के एक मध्य वर्गीय कैथोलिक परिवार में हुई थी. दुनिया इस व्यक्ति को 'अमेरिकी तालिबान' के तौर पर जानती है.
जॉन वॉकर लिंद पहले ऐसे अमेरिकी थे जिन्हें 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग' के शुरु होने के बाद गिरफ़्तार किया था. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 9/11 की घटना के बाद 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ इस जंग' का एलान किया था.
जॉन वॉकर को पाकिस्तान में पकड़ा गया था. वे तालिबान के एक मिलिट्री यूनिट का हिस्सा थे जिसमें 75 विदेशी नागरिक शामिल थे. जॉन वॉकर की बढ़ी हुई दाढ़ी वाली तस्वीरों को देखकर ऐसा लगा कि कोई गुमराह हो गया शख़्स दुनिया के दूसरी छोर पर चला आया था.
जुलाई, 2002 में उन्होंने कहा, "मैंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है. मैं पिछले साल अगस्त से दिसंबर तक तालिबान के एक सिपाही के तौर पर काम किया था. ऐसा करते वक़्त मैं अपने पास एक राइफ़ल और दो ग्रेनेड रखा करता था. मैंने ये सब कुछ अपनी मर्ज़ी से किया और मैं ये जानता था कि ये अवैध है."
जॉन वॉकर ने अभियोजन कार्यालय से समझौते के बाद ये बयान दिया था. उनकी सज़ा उम्र क़ैद से कम कर के 20 साल की जेल कर दी गई थी. लेकिन ये सवाल उठता है कि आख़िर कैलिफोर्निया का एक नौजवान कैसे जिहादी बन गया और ओसामा बिन लादेन के पैसे से चलने वाले मिलिट्री ट्रेनिंग कैंप तक कैसे पहुंचा.
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कैथोलिक माहौल में परवरिश के बावजूद जॉन वॉकर का इस्लाम के प्रति रुझान किशोर उम्र में ही हो गया था. जॉन वॉकर के पिता फ्रैंक लिंद का कहना था कि 12 साल की उम्र में स्पाइक ली की फ़िल्म 'मैलकम एक्स' में मक्का की तस्वीरें देखकर वो प्रभावित हो गए थे.
यहीं से उनकी तलाश शुरू हो गई और आख़िरकार उन्होंने एक दिन इस्लाम को अपना ही लिया.
मिल वैली इस्लामिक सेंटर के इमाम अब्दुल्ला नाना ने साल 2011 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "जॉन वॉकर उस वक़्त उलझन में थे. उन्हें मालूम नहीं था कि इस दुनिया में वे कहां जाएं. ऐसा लगता है कि आध्यात्मिक अनुभव हासिल करने के लिए उन्होंने इस्लाम का रास्ता चुना."
अब्दुल्ला नाना के मुताबिक़ इस्लाम अपनाने के फौरन बाद जॉन वॉकर अरबी भाषा सीखने और कुरान समझने के लिए उनकी संस्था से संपर्क किया था. 17 साल की उम्र में जॉन वॉकर के माता-पिता ने उन्हें अरबी जुबान पढ़ने के लिए यमन जाने की अनुमति दे दी.
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जॉन वॉकर यमन से कैलिफोर्निया लौटे और फिर कुछ महीनों बाद वे यमन वापस चले गए. यमन से उन्होंने अपने पिता को लिखा कि क्या वे अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए पाकिस्तान जा सकते हैं?
उनके पिता ने जवाब दिया, "मुझे तुम्हारे फ़ैसले पर यकीन है और मुझे उम्मीद है कि वहां जाकर तुम्हें अच्छा लगेगा."
इसके बाद जॉन वॉकर ने पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह सूबे के बन्नू शहर के एक मदरसे में दाखिला लिया और यहीं से कट्टरपंथ की ओर उनका रुझान शुरू हुआ. अपने मां-बाप को जानकारी दिए बिना एक रोज़ जॉन वॉकर जून, 2001 में सरहद पारकर अफ़ग़ानिस्तान पहुंच गए.
एक चरमपंथी गुट की मदद से जॉन वॉकर को अल-फ़ारूक़ ट्रेनिंग कैंप में दो महीने तक मिलिट्री ट्रेनिंग ली. ये ट्रेनिंग कैंप ओसामा बिन लादेन के पैसे से चलता था. उसी गर्मी में जॉन वॉकर की अल-क़ायदा नेता ओसामा बिन लादेन से दो बार मुलाकात हुई.
हालांकि फ्रैंक लिंद का कहना है कि उनके बेटे का आतंकवाद से कोई सरोकार नहीं था. फ्रैंक लिंद ने साल 2011 में बीबीसी से कहा था, "जॉन उन हज़ारों मुसलमानों में से एक था जो अफ़ग़ानिस्तान में रूस के समर्थन वाले नॉर्दर्न अलायंस के ख़िलाफ़ लड़ रहा था."
हालांकि जॉन वॉकर के मुक़दमे से जुड़े असिस्टैंट अटॉर्नी जनरल माइकल केर्टोफ़ को फ्रैंक लिंद की दलील पर यकीन नहीं था. उन्होंने साल 2011 में बीबीसी से कहा था, "वो एक ऐसे संगठन के लिए काम करने गया था, जो अमेरिका को अपना दुश्मन मानता था और उस संगठन ने 9/11 के हमले का समर्थन किया था. जॉन वॉकर ने जो किया वो सीधे तौर पर राजद्रोह तो नहीं पर राजद्रोह करने जैसा ही था."
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9/11 के हमले का असर
साल 2001 के सितंबर की शुरुआत के समय जॉन वॉकर अफ़ग़ानिस्तान के ताहर क्षेत्र में 75 सदस्यीय ग़ैर-अफ़ग़ान लड़ाकों के एक दस्ते का हिस्सा बन गए. उसी दौरान अमेरिका पर 9/11 के हमले हुए और सब कुछ बदल गया.
अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमले और तालिबान की हुकूमत को सत्ता से बेदखल करने का फ़ैसला किया. इस हमले के कुछ ही हफ़्तों के भीतर अफ़ग़ानिस्तान पर बमबारी शुरू हो गई और जॉन वॉकर के दस्ते को भी जवाबी लड़ाई में उतरना पड़ा.
कुंदुज़ के रेगिस्तान से गुज़रते वक़्त उन्होंने नॉर्दर्न अलायंस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. अफ़ग़ान वारलॉर्ड जनरल अब्दुल रशीद दोस्तम के नियंत्रण वाले मज़ार-ए-शरीफ़ शहर के बाद क़ला-इ-जंगी के क़िले में जॉन वॉकर को क़ैद रखा गया.
लेकिन वहां तालिबान क़ैदियों की बगावत के कारण ज़बरदस्त ख़ून-खराबा हुआ जिसमें सैकड़ों क़ैदी मारे गए. उस घटना में नॉर्दर्न एलायंस के साथ काम कर रहे सीआईए के एक एजेंट की भी मौत हुई. जॉन वॉकर के पैर में गोली लगी और उन्होंने इमारत की बेसमेंट में जाकर शरण ली.
जॉन वॉकर ने उस घटना के बारे में बताया था, "अब्दुल रशीद दोस्तम के लड़ाकों ने रोशनदान से ग्रेनेड फेंके और ठंडे पानी की बौछार की थी. कई और क़ैदियों की इस घटना में मौत हो गई."
हाइपोथर्मिया से पीड़ित और गोलियों से जख़्मी जॉन वॉकर को 1 दिसंबर, 2001 को वहां से निकाला गया जहां से उन्हें अमेरिकी सैनिकों ने हिरासत में ले लिया.
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'अमेरिकी तालिबान'
इस गिरफ़्तारी के कुछ समय बाद ही जॉन वॉकर को दुनिया भर में लोग 'अमेरिकी तालिबान' के तौर पर जानने लगे. फ्रैंक लिंद को बेटे की गिरफ़्तारी की ख़बर सात महीनों बाद मीडिया रिपोर्टों से मिली. इस बीच उन्हें नहीं मालूम था कि जॉन वॉकर कहा है.
फ्रैंक लिंद के मुताबिक़ उनके बेटे को कंधार के दक्षिण पश्चिम में 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैंप राइनो के अमेरिकी बेस पर ले जाया गया. अफ़ग़ानिस्तान के रेगिस्तान में उसके जख़्मों का इलाज किए बिना जॉन को एक मेटल कंटेनर में दो दिनों तक नंगा रखा गया.
इस बीच, जॉन की मां मार्लिन वॉकर के मुताबिक़ अमेरिका में नकारात्मक ख़बरों की बाढ़ आ गई थी.
अटॉर्नी जनरल जॉन एशक्रॉफ़्ट ने जॉन वॉकर को "अल-क़ायदा से ट्रेनिंग प्राप्त चरमपंथी करार दिया जिसने साथी नागरिकों की जान लेने के लिए तालिबान के साथ मिलकर साज़िश की थी."
फ्रैंक लिंद ने बीबीसी को बताया, "9/11 के हमले के बाद शोक संतप्त अमेरिकियों के दिल में जॉन की तस्वीर छप गई थी." लेकिन इस सबके बावजूद जॉन वॉकर का उम्र क़ैद की सज़ा से बच जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था.
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जेल से परोल तक
गिरफ़्तारी के बाद अमेरिकी सुरक्षा बलों ने जॉन वॉकर के साथ जिस तरह का बर्ताव किया, उसकी तस्वीरें लोगों ने देखीं और कहा जाता है कि इसका फ़ायदा जॉन वॉकर को अपने केस में हुआ.
टोबी हार्नडेन की लिखी क़िताब 'फर्स्ट कैजुअल्टी: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ द सीआईए मिशन टु अवेंज 9/11' में जॉन वॉकर की कुछ तस्वीरें जारी की गई हैं.
टोबी हार्नडेन के हवाले से ब्रितानी अख़बार डेली मेल ने लिखा है कि जॉन वॉकर ने अपने साथी क़ैदियों को खुद को आयरलैंड का बताया था. लेकिन क़ला-इ-जंगी में हुए बलवे के बाद जॉन ने एक डॉक्टर को अपने अमेरिकी होने की बात बताई.
इस जानकारी के सामने आने के बाद 'अमेरिकी तालिबान' शब्द का जन्म हुआ और अमेरिकी एजेंटों ने उनकी गिरफ़्तारी को अपनी जीत की तरह पेश किया. गिरफ़्तारी के दौरान जॉन वॉकर के साथ किए गए सलूक की तस्वीरें ली गई थीं जिनका उनके वकील ने मुक़दमे के दौरान इस्तेमाल किया.
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कैंप राइनो में ली गई तस्वीरों में जॉन को स्ट्रेचर पर नंगे, आंखों पर पट्टी बांधे और हथकड़ी में देखा जा सकता है.
जॉन के वकील ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल के साथ बुरा बर्ताव किया गया था पूछताछ के दौरान उनसे लिए गए बयान को ख़ारिज किया जाना चाहिए क्योंकि वो दबाव में दिए गए थे.
टोबी हार्नडेन की किताब के अनुसार जॉन ने एफ़बीआई के सामने कथित रूप से ये कबूल किया था कि खुदकुश हमलावर भेजकर अमेरिका पर हमला करने की अल-क़ायदा की साज़िश के बारे में उसे जानकारी थी.
हालांकि अभियोजन कार्यालय से समझौते के बाद उसके इस बयान को दरकिनार कर दिया गया. इस समझौते में जॉन अपने साथ हुई बदसलूकी को लेकर किसी तरह की शिकायत करने का अधिकार छोड़ दिया था.
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अक्टूबर, 2002 में सज़ा के वक़्त जॉन ने ये दावा किया तालिबान में शामिल होकर उन्होंने ग़लती की थी और वे आतंकवाद की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं.
17 साल जेल में रहने के बाद साल 2019 में ये रिपोर्टें सामने आईं कि जॉन को परोल पर रिहा किया जा रहा है.
मई, 2019 में जॉन को परोल पर रिहा कर दिया गया. उन पर ये पाबंदी लगाई गई है कि वे इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करेंगे और उनके यात्रा करने पर भी रोक रहेगी.
इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि जॉन इस समय कहां रह रहे हैं.
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