धारा 377: सेना के जवानों ने बनाए समलैंगिक संबंध तो क्या अब भी होगा ‘कोर्ट मार्शल’?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला देते हुए सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को जायज़ करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए कहा कि 'मैं जैसा हूं मुझे वैसे ही स्वीकरा करो', कोर्ट ने आगे कहा कि सभी को भारत के संविधान ने बरारबरी का हक दिया है और सभी चीजें सिर्फ बहुमत से नहीं चल सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने अंग्रेजों के बनाए इस कानून को समाप्त कर दिया और ये फैसला निश्चित तौर पर भारत के समाज को एक प्रगतिशील समाज की तरफ ले जाने में महत्वपूर्ण साबित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से बने समलैंगिकता संबंधों पर मुहर लगाई है लेकिन जबरन ऐसे यौन संबंध बनाना, बच्चों के साथ संबंध बनाना और जानवरों के साथ यौनाचार अभी भी दंडनीय अपराध ही हैं।
क्या कहता है सैन्य कानून?
सुप्रीम कोर्ट के एक वकील अजय कुमार ने वन इंडिया को बताया कि सेना अधिनियम के अनुसार, समलैंगिकता एक अनुचित आचरण है। सेना अधिनियम 1950 की धारा 45 इसे अधिकारियों का एक अयोग्य आचरण बताती है और इसके लिए सात साल के कारावास की सजा का प्रवधान है। अधिनियम की धारा 46ए समलैंगिकता को एक क्रूर, अश्लील और अप्राकृतिक कृत्य कहती है और ‘कोर्ट मार्शल' के जरिए सजा देने की बात करती है। इसी तरह वायुसेना अधिनियम 1950 की धारा 45 में भी कुछ-कुछ इसी तरह के प्रवाधान हैं। हालांकि सजा के मामले में नौसेना अधिनियम 1957 कुछ नरम है और इसके तहत सिर्फ दो साल की सजा का प्रवाधान है।
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कई तरह के हैं सवाल
अजय
कुमार
ने
कहा,
"सेना
अधिनियम
में
एक
धारा
69
है,
इसलिए
जो
कुछ
भी
कहीं
और
कवर
नहीं
किया
गया
है
वो
इस
धारा
के
अंतर्गत
आता
है
और
इसमें
आईपीसी
की
धारा
377
के
साथ
मिलकर
कार्रवाई
होती
है।
अब
जब
धारा
377
से
संमलैंगिकता
को
बाहर
कर
दिया
गया
है
और
सजा
नहीं
होगी
तो
किसी
भी
सशस्त्र
बल
के
जवान
के
खिलाफ
377
के
तहत
कारर्वाई
नहीं
हो
सकेगी।
इसलिए
सेना
अधिनियम
की
धारा
69
जिसमें
सैन्य
बलों
में
सहमति
से
संबंध
बनाना
अपराध
है
नहीं
लग
पाएगी।
इस
तरह
ये
कानून
सैन्य
बलों
के
लिए
भी
खत्म
हो
गया
है"।
अब
सवाल
ये
भी
है
कि
अब
क्या
होगा?
क्या
ये
एक
‘पैंडोरा
बॉक्स'
खोल
देगा
या
फिर
सशस्त्र
बलों
के
कानून
में
भी
कुछ
बदलाव
किए
जाएंगे।
क्या
सेना
इस
तरह
के
संबंधों
को
अपनी
यूनिटस
में
होने
देगी?
इलाहाबाद
उच्च
न्यायालय
के
वकील
सत्यजीत
चटर्जी
जो
सशस्त्र
बलों
के
मामलों
को
देखते
हैं
वो
कहते
हैं,
"
सशस्त्र
बलों
में
ऐसे
मामले
बहुतायत
में
हैं"।
चटर्जी
कहते
हैं,
"हालांकि,
संविधान
के
अनुच्छेद
33
के
तहत
अनुशासन
को
बनाए
रखने
के
लिए
सशस्त्र
बलों
के
मौलिक
अधिकारों
को
भी
निलंबित
कर
दिया
गया
है।
दुनिया में बदला कानून
एडवोकेट अजय कुमार कहते हैं कि सशस्त्र बलों की दक्षता और आचरण को लेकर दुनियाभर में सशस्त्र बलों में समलैंगिकता पर प्रतिबंध था। इसे गंभीर अपराध माना जाता है। लेकिन जब अमेरिका और ब्रिटेन में समलैंगिकता कानूनों में बदलाव किए गए, तो सशस्त्र बलों में भी समलैंगिक लोगों का स्वागत किया गया और अब ये कानूनी तौर पर सही है। ये बदलाव अमेरिका और ब्रिटेन में सेना और पुलिस के लिए किया गया था। तो भारत में भी समानता की उम्मीद की जाती है।
सैनिकों का जीवन कठिन
अजय
आगे
कहते
हैं
कि
भारत
के
सुप्रीम
कोर्ट
ने
धारा
377
पर
अपने
फैसले
से
भारत
के
सैन्य
बलों
को
अलग
नहीं
रखा
है।
वहां
पर
समलैंगिक
संबंध
ज्यादा
बनने
की
संभावना
रहती
है
क्योंकि
वो
एक
कठिन
जीवन
शैली
बितातें
हैं
और
परिवार
से
भी
लंबे
वक्त
तक
दूर
रहते
हैं।
सेक्स
एक
बहुत
ही
प्राकृतिक
घटना
है
और
वो
अब
तक
डर
के
कारण
इससे
दूर
रहते
थे
लोकिन
अब
कानून
नहीं
है।
अजय
सवाल
करते
हैं
कि
अगर
दो
वयस्क
सहमत
हैं,
तो
क्या
सेना
उन्हें
रोक
देगी,
अगर
नहीं
रोकती
तो
फिर
क्या
होगा?
सूत्र
बताते
हैं
कि
सुप्रीम
कोर्ट
के
फैसले
के
बाद
सेना
ने
मामले
का
संज्ञान
लिया
है
और
वो
इस
बारे
में
विशेषज्ञों
की
राय
ले
रही
है
और
फिर
उनके
सुझावों
के
अनुसार
आगे
कदम
उठाएगी।
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