Republic Day 2023: राष्ट्रपति के अंगरक्षक कौन होते हैं ? इनके बारे में सबकुछ जानिए
देश की जनता जब भी राष्ट्रपति का किसी रूप में भी दीदार करती है तो उनके अंगरक्षकों की ओर ध्यान यूं ही खिंच जाता है। उनकी सजावट, उनकी कद-काठी, उनका अनुशान बहुत ही खास और अलग होता है।
जब भी हम टीवी पर या सीधे तौर पर कभी देश के राष्ट्रपति को देखते हैं तो उनके अंगरक्षकों को देखकर मन गदगद हो जाता है। प्रेसिडेंट के बॉडीगार्ड (PBG) को देखकर लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रथम नागरिक होने का मतलब क्या होता है? भारत की तीनों सेनाओं का कमांडर इन चीफ होने का मतलब क्या है? हालांकि, मौजूदा युग में राष्ट्रपति के अंगरक्षों की मुख्य भूमिका राष्ट्रीय समारोहों तक ही सीमित नजर आती है, लेकिन इसकी अपनी इतनी ऊंची प्रतिष्ठा है कि इसके बारे में जानना बहुत ही दिलचस्प है।
प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड्स राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार
देश 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। हर बार की तरह इस बार भी राजधानी दिल्ली के कर्तव्य पथ पर आयोजित राष्ट्रीय समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का काफिला उनके अंगरक्षकों के खास दस्ते के साथ परेड स्थल पर पहुंचा। राष्ट्रपति का अंगरक्षक (President's Bodyguard) दस्ता भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंट है। हालांकि, समय के साथ इस दस्ते की भूमिका विशिष्ट समारोहों तक ही सिमट चुकी है। लेकिन, इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी देश की प्रथम नागरिक की सुरक्षा है। राष्ट्रपति भवन में तैनात सेरेमोनियल आर्मी गार्ड बटालियन की जिम्मेदारी है कि वह राष्ट्रपति के लिए सेरेमोनियल गार्ड और संतरी उपलब्ध करवाए।
राष्ट्रपति के अंगरक्षक कौन होते हैं ?
भारतीय सेना के इस सबसे पुरानी रेजिमेंट का गठन 1773 में किया गया था। इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रपति से जुड़े समारोह से संबंधित है। राष्ट्रपति के अंगरक्षकों में शामिल हर एक सैनिक चुनिंदा और बेहतरीन टैंक मेन, हॉर्समेन और पाराट्रूपर्स होते हैं। ये आश्चर्यजनक क्षमताओं से लबरेज रहते हैं। इस दस्ते को इस तरह से तैयार किया गया है कि यह समारोहों के मौके पर देखने में भी सौम्य और आकर्षक लगें। गणतंत्र दिवस हो या राष्ट्रपति भवन में कोई खास कार्यक्रम राष्ट्रपति के अंगरक्षक दूर से ही पहचाने जा सकते हैं। क्योंकि, इनके जवान लंबे,तगड़े और गठीले होते हैं। चेहरा रौबदार रहता, पोशाकें सजीली और चटकदार होती है, जिसकी ओर कोई भी आकर्षित हो जाता है। यही जवान प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड्स या पीबीजी कहलाते हैं।
हर जवान 6 फीट से ज्यादा लंबा होता है
भारत की राष्ट्रपति तीनों सेनाओं यानि थल सेना, वायु सेना और नौसेना की कमांडर इन चीफ हैं। लिहाजा उनके अंगरक्षकों की यूनिट भी बहुत खास है। यह बहुत ही विशेष सिलेक्शन प्रॉसेस से चुने जाते हैं। यह यूनिट सेना की सबसे खास यूनिट होती है। राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की टुकड़ी अब हमेशा राष्ट्रपति भवन में ही रहती हैं। इस यूनिट में खासकर जाट, सिख और राजपूतों को प्राथमिकता देने की परंपरा रही है। वो भी राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों से आते हैं। राष्ट्रपति अंगरक्षक बनने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति की लंबाई 6 फीट से ज्यादा हो। इस टुकड़ी की अलग पहचान दिखने की यह एक बड़ी वजह है।
खास प्रक्रिया से होता है राष्ट्रपति के अंगरक्षकों का चुनाव
अबतक पीबीजी की अहमियत तो समझ में आ ही गई होगी। इस दस्ते में बहुत ही कम सैनिकों का सिलेक्शन हो पाता है। क्योंकि इसके सैनिकों की संख्या बहुत ही सीमित है। मौजूदा वक्त में इसमें 4 ऑफिसर, 11 जेसीओ और 161 जवान होते हैं। आवश्यकतानुसार अलग से भी सपोर्ट उपलब्ध करवाया जा सकता है। 252 साल पहले जब सेना की यह टुकड़ी बनी थी, तब अंग्रेजों ने यूपोपीय सैनिकों से सिर्फ पैदल सेना की भर्ती किया था। अब यह टुकड़ी एक तरह से घुड़सवार सेना में तब्दील हो चुकी है। देश की आजादी से पहले यह टुकड़ी गवर्नर जनरल की सुरक्षा में तैनात थी और अब राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के रूप में तैनात रहती है।
बहुत ही सख्त होती है ट्रेनिंग
प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड्स में शामिल होने से पहले जवानों को दो साल की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना होता है। यह पैराट्रुपिंग में माहिर होते हैं, लेकिन इनकी दिनचर्या सजीले घोड़ों से बंधी रहती है। घुड़सवारी में यह इतने मंजे होते हैं कि 50-50 किलोमीटर की रफ्तार में भी यह बिना लगाम थामे घुड़सवारी कर सकते हैं। खूबसूरत और ऊंची कद-काठी के घोड़े भी इस विशेष टुकड़ी की पहचान है। दो वर्ष की ट्रेनिंग के बाद पीबीजी का हिस्सा बनने की इच्छा रखने वाले जवान कमांडेंट के आगे अपनी तलवार सौंपता है। जब कमांडेंट उसकी तलवार छू लेता ही, तभी उसकी एंट्री होती है। मतलब ये हुआ कि उसका हथियार और उसकी जिंदगी अबसे आपके हाथों में है।
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