लोकसभा चुनाव 2019: उलुबेरिया लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया से मौजूदा सांसद तृणमूल कांग्रेस की साजदा अहमद हैं। साल 2014 के चुनाव में सुल्तान अहमद ने सीपीएम के साबिर उद्दीन औला को दो लाख वोटों के अंतर से हराया। लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले सुल्तान अहमद हज कमेटी के वाइस चेयरमैन बने। साथ ही उन्होंने ग्रामीण विकास मंत्रालय की पंचायती राज, पेय जल एवं स्वच्छता समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दीं। लेकिन 4 सितंबर 2017 को उनका निधन हो गया। इस सीट पर फरवरी 2018 में उप चुनाव हुए और सुल्तान अहमद की पत्नी साजदा अहमद ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। उलुबेरिया की जनता ने उन्हें 767,556 वोट दिये, जिनकी बदौलत वो यहां से जीतीं। दूसरे नंबर पर रहे भाजपा के अनुपम मलिक को 293,046 वोट मिले। इस जीत से साफ हो गया कि उलुबेरिया सीट तृणमूल से छीनना इतना आसान नहीं है।
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पहली बार सांसद बनीं साजदा अहमद ने सदन में पहुंचने के बाद एक साल तक किसी भी डिबेट में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने 58 फीसदी उपस्थिति दर्ज की। हालांकि इस दौरान राज्य का औसत 65 प्रतिशत का रहा। बात अगर सदन में सवालों की करें तो 11 महीनों में यानी फरवरी 2018 से दिसंबर 2018 उन्होंने सदन में 16 सवाल किये। इनमें दो सवाल बेहद महत्वपूर्ण रहे। पहला यह कि पश्चिम बंगाल में रेलवे नेटवर्क को अपग्रेड होने में कितना समय लगेगा। जबकि दूसरा सवाल महिलाओं की रोजगार दर से जुड़ा था। इसके अलावा उन्होंने पश्चिम बंगाल में पीएसके, पब्लिक प्लेस पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़, लिंचिंग की घटनाओं और सड़क पर घूमने वाले बेघर बच्चों से जुड़े थे।
यह सीट 1952 से लोकसभा का अभिन्न हिस्सा रही है। यहां शुरुआत में तो कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन 1971 के बाद से यह सीट मानो सीपीएम का गढ़ बन गई। सीपीएम ने यहां से लगातार दस बार चुनाव जीते। इस जीत का रथ सुल्तान अहमद ने 2009 के चुनाव में रोका। उनके निधन के बाद 2018 में जब साजदा अहमद यहां की सांसद चुनी गईं, तब टीएमसी का वोट प्रतिशत 61 फीसदी था। वहीं दूसरे नंबर पर रही भाजपा का वोट प्रशित 23 फीसदी और सीपीएम का 11 प्रतिशत। 2019 के चुनाव में अगर सीपीएम या भाजपा को यहां जीत दर्ज करनी है, तो एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। क्योंकि यहां पर तृणमूल को चुनौती देना अब आसान नहीं रहा है। खैर चुनौतियां तो हर सीट पर हैं और हर पार्टी के सामने हैं। देखना तो यह है कि कौन सी पार्टी चुनौतियों पर खरी उतरती है।
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