पुलिसकर्मी को थप्पड़ मारना जब शहाबुद्दीन को पड़ गया था भारी
राजद के पूर्व सांसद और सजायाफ्ता शहाबुद्दीन की धमक बिहार से बाहर भी थी।
पटना, 2 मई: राजद के पूर्व सांसद और सजायाफ्ता शहाबुद्दीन की धमक बिहार से बाहर भी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2014 में बनारस से चुनाव लड़ने वाले अजय राय ने शहाबुद्दीन से कई एक-47 राइफलें खरीदी थीं। अजय राय तब कोलअसला (पिंडरा), बनारस के बिधायक हुआ करते थे। इस बात की जानकारी बिहार के पूर्व जीडीपी डीपी ओझा ने 2003 में एक गोपनीय रिपोर्ट में दी थी। डीपी ओझा ने तत्कालीन गृह सचिव को 82 पन्नों की एक खुफिया रिपोर्ट सौंपी थी। उन्होंने बताया था कि अजय राय का संबंध शहाबुद्दीन से था। रिपोर्ट के मुताबिक शहाबुद्दीन को ये एके-47 राइफलें कश्मीर के आतंकियों से मिले थे। ये राइफल सेब के ट्रकों में छिपा कर लाये जाते थे। इनमें से आठ-दस शहाबुद्दीन ने अपने पास रख लिये और बाकि अजय राय और रांची के गैंगस्टर अनिल शर्मा को बेच दिये थे। तब अजय राय ने इस बात को बेबुनियाद कहा था। डीपी ओझा ही वे पहले पुलिस अधिकारी थे जिन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की थी। उस समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी और केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। डीपी ओझा की यह रिपोर्ट फाइलों में पड़ी धूल खाती रही लेकिन शहाबुद्दीन पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। पूर्व डीजीपी ने इस रिपोर्ट पर भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और बिहार सरकार को कार्रवाई करनी थी। उन्होंने एके-47 खरीद मामले की सीबीआइ से जांच कराने की भी मांग की थी।
सबूत के साथ रिपोर्ट लेकिन कार्रवाई नहीं
इस मामले में पूर्व डीजीपी डीपी ओझा ने कहा था कि उन्होंने पूरे सबूत और जांच के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की थी। जब केन्द्र सरकार को यह रिपोर्ट मिली तो इस पर केन्द्र सरकार और बिहार सरकार के बीच बहुत विवाद हुआ। विवाद बढ़ने पर राबड़ी सरकार ने डीपी ओझा को डीजीपी पद से हटा दिया। सरकार के इस फैसले के विरोध में डीपी ओझा ने वोलंटरी रिटायरमेंट ले लिया। उन्होंने अगस्त 2003 में यह रिपोर्ट दी थी और पांच महीने बाद ही उन्हें पुलिस प्रमुख के पद से चलता कर दिया गया। डीपी ओझा को आखिर शहाबुद्दीन और अजय राय के संबंध का पता कैसे चला? दरअसल कश्मीर के कुछ आतंकी दिल्ली में पकड़े गये। पूछताछ में आतंकियों ने इस बात का खुलासा किया था। उनका बयान कोर्ट में भी दर्ज हुआ था। रॉ, इंटेलिजेंस और आइबी की रिपोर्ट के साथ इनके बयानों का मिलान किया गया था। इतनी प्रक्रिया के बाद डीपी ओझा ने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। 2014 में डीपी ओझा ने दावा किया था कि उन्होंने जो बी बातें लिखीं थी, सबका कागजी प्रमाण था।
शहाबुद्दीन के घर से मिली थी पाकिस्तानी एके-47
डीपी ओझा ने इस रिपोर्ट में सबूतों के साथ यह भी बताया था कि शहाबुद्दीन का यूपी के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और नेपाल के बाहुबली सांसद यूनुस अंसारी से भी संबंध रहा था। मार्च 2001 में सीवान पुलिस ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापा मारा था। इस दौरान भयंकर गोलीबारी हुई थी। इस गोलीबारी में शहाबुद्दीन के 12 समर्थक आदमी मारे गये थे। एक पुलिसकर्मी भी शहीद हुआ था। मुठभेड़ के बाद पुलिस ने शहाबुद्दीन के घर से एके-47 राइफल बरामद की थी जो पाकिस्तान की बनी हुई थी। रात में दिखने वाला चश्मा भी मिला था। इस मुठभेड़ की कहानी भी कम सनसनीखेज नहीं है। मार्च का महीना था। बिहार में मैट्रिक की परीक्षा चल रही थी। उस समय सीवान में शहाबुद्दीन की समानांतर सरकार थी। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े फैसले शहाबुद्दीन की सहमति से तय होते थे। एक दिन शहाबुद्दीन और उसके समर्थक मैट्रिक की परीक्षा का निरीक्षण करने निकल पड़े। एक उड़नदस्ता बिहार बोर्ड का था, दूसरा उड़नदस्ता शहाबुद्दीन का था।
एक थप्पड़ की गूंज भारी पड़ गयी थी शहाबुद्दीन पर
जब शहाबुद्दीन और उसके समर्थक एक परीक्षा केन्द्र पर पहुंचे तो वहां मौजूद एक नौजवान पुलिस अफसर ने एतराज जताया। उसने पूछा, आप किस हैसियत से यहां निरीक्षण करने आये हैं? ये काम तो सरकार द्वारा नियुक्त मजिस्ट्रेट और पुलिस का है? शहाबुद्दीन उस समय राजद के सांसद थे। सीवान में अपना राज चलाने वाले शहाबुद्दीन इस सवाल से उखड़ गये। उन्होंने पुलिस अफसर को भरे स्कूल में थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना को देख कर सारे लोग आवाक रह गये। इस अपमान के खिलाफ पुलिसकर्मियों का गुस्सा ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा। उन्होंने डीआइजी को सर्किट हाउस में बंधक बना लिया। ऑन ड्यूटी एक पुलिस वाले को सरेआम थप्पड़ मारा गया था। सांसद के खिलाफ कार्रवाई से कम उन्हें कुछ भी मंजूर न था। पुलिस वालों ने गुस्से में डीएम और एसपी की गाड़ियां तोड़ दीं। पुलिसवालों को शांत करने के लिए डीएम और एसपी ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापा मारने के आदेश दे दिया। इस घटना से जिला के बड़े अफसर भी नाराज थे। तब सबने मिल कर तय किया कि इस छापामारी की सूचना पटना मुख्यालय को नहीं देनी है। अगर पटना में बैठे अफसरों या मंत्रियों को इस बात की सूचना मिल जाती तो ये छापामारी कभी मुमकिन न होती। उस समय राबड़ी देवी की सरकार थी और शहाबुद्दीन राजद के सांसद थे। इस तरह सीवान पुलिस ने उस थप्पड़ के जवाब में शहाबुद्दीन के घर पर धावा बोला था।
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