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ज़ोरदार जश्न उर्दू का और मंच से लगे नारे जय श्रीराम के

मंच से जाते-जाते हनुमान का किरदार निभा रहे शख़्स ने कहा - जय श्रीराम और इस तरह रेख़्ता का मंच और हॉल राममय हो उठा, और पढ़िए जश्न ए रेख़्ता में नसीरूद्दीन शाह के पहुंचने पर क्या हुआ?

By BBC News हिन्दी
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नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक शाह
Jashn E Rekhta
नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक शाह

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ,

जो भी उस पेड़ की छाँव में गया, बैठ गयाजश्न-ए-रेख़्ता 2022 में अपने पसंदीदा कलाकारों और शायरों को सुनने आए लोगों को जब बैठने की कहीं जगह नहीं मिली, तो उन्होंने तहज़ीब हाफ़ी का यह शेर पढ़ा और पंडाल के बाहर लगी एलईडी स्क्रीन के सामने बैठ गए.

जिनके पास मफ़लर था, उन्होंने मफ़लर बिछाया, कुछ ने शॉल और कुछ ऐसे ही बस जगह घेर लेना चाहते थे.

पंडालों के बाहर ज़मीन पर एक नया जश्न आकार ले रहा था. लोगों को खड़े होने के लिए पाँव भर और बैठने के लिए थोड़ी सी जगह ढूँढ रहे थे, वे पूरा दिन वहीं जमे रहने पर आमादा थे.

जिधर तक नज़र जा रही थी, केवल लोग दिखाई दे रहे थे और अपनी ज़बान को चाहने वालों की दाद और वाह-वाह सुनाई दे रही थी.यह सब रेख़्ता के नाम पर हो रहा था. रेख़्ता यानी उर्दू का पुराना नाम. एक मिलीजुली भाषा. इसी भाषा का सालाना उत्सव है, जश्न-ए-रेख़्ता, जिसे रेख़्ता फाउंडेशन साल 2015 से आयोजित कर रहा है.

तीन दिनों तक चलने वाले इस जश्न में हर उस विधा का जश्न होता है, जो उर्दू ज़बान से जुड़ा हुआ है.

इस साल यह 2 से 4 दिसंबर को हुआ और भीड़ का आलम देखने के बाद लगा कि जश्न-ए-रेख़्ता कोई उत्सव नहीं, अनुष्ठान है जिसमें सब अपनी हाज़िरी लगाना चाहते हैं. एक झलक:

काश ऐसा कोई मंज़र होता

रात 9 बजे. गायक हरिहरन कार्यक्रम में अपने उरूज पर थे. गाते हुए रुके. पूछा, आप में से कितने लोग गाते हैं. दसियों हज़ार की भीड़ में से क़रीब आधे हाथ उठे.

हरिहरन ने कहा- मेरे पीछे गुनगुनाइए. सरगम शुरू की. सुरीले गलों ने दोहराई. हरिहरन खरज (नीचे के सुर) तक गए. गाने वालों ने कोशिश की और जब अपने गले के भीतर नहीं उतर सके, तो एक ठहाका-सा उठा. जैसे सब एक साथ कह रहे हों, जिसका काम उसी को साजे.

लेकिन इस पूरी दो मिनट की सरगम यात्रा में लोग हरिहरन से ऐसे जुड़े कि हरिहरन को उनकी फ़रमाइश पूरी करनी पड़ी. इंस्टाग्राम पर उनकी आवाज़ में वायरल हुई ग़ज़ल 'काश ऐसा कोई मंज़र होता' का बस 'काश' ही गले से निकला था कि लोगों के कलेजे से 'आह' निकल गई.

जाते-जाते उन्होंने जैसे ही गाया, तू ही रे.......! और जितने लोग अपने घरों की ओर जाने के लिए निकले थे, वे दौड़ कर वापस लौटने लगे जैसे कह रहे हों, तेरे बिना मैं कैसे जियूं.

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़

जश्न ए रेख़्ता का मंच
Jashn E Rekhta
जश्न ए रेख़्ता का मंच

जश्न ए रेख़्ता अपने अंदाज़ में राममय हो गया. जय श्रीराम के नारे लगे. एक बार को लगा जैसे पॉलिटिकल पार्टी का मजमा है.

दास्तान-ए-इमाम-ए-हिंद सुनाई और दिखाई गई. एक नए अंदाज़ में दास्तान-ए-राम. उर्दू रूपांतरण. कमाल का प्रोडक्शन. बस! जो खल रहा था वो यह कि पहले से रिकॉर्डेड आवाज़ें थीं. दानिश इक़बाल के होंठ अपनी ही रिकॉर्डेड आवाज़ को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे.

राम और रावण भी पहले लिपसिंक की कोशिश करते फिर एक दूजे को चुनौती देते. लेकिन अच्छे कलाकार की तरह वे दूर बैठे लोगों को यह अहसास दिलाने में कामयाब रहे कि सब लाइव हो रहा है.

रावण वध हुआ, अयोध्या में दीप जले, नृत्य हुआ और पहली-दूसरी पंक्ति में बैठे मेहमानों को यह कहते हुए मिठाई बाँटी कि आज दीपावली है.

जश्न ए रेख़्ता में सजाई गयीं कविताओं के अंश
Anjum Sharma/BBC
जश्न ए रेख़्ता में सजाई गयीं कविताओं के अंश

कलाकारों से परिचय करवाया गया, तो मालूम हुआ कि राम की दास्तान को एक मुसलमान ने निर्देशित किया है. लोगों ने दिल खोलकर तालियाँ बजाईं. देखकर सुकून हुआ कि लोग वैसे नहीं हैं, जैसे हमें बताए और दिखाए जाते हैं.

हमें अपनी नज़र से दीदार करना चाहिए. राम, रावण, हनुमान का किरदार निभाने वालों के लिए सबसे ज़्यादा तालियां बजीं. और तभी भीड़ से एक आवाज़ सुनाई दी...जय श्रीराम. कई बार दोहराया गया.

शायद जाते-जाते हनुमान का किरदार निभा रहे शख़्स को लगा कि वो पीछे न रह जाए, उन्होंने मंच से कहा जय श्रीराम और इस तरह रेख़्ता का मंच और हॉल राममय हो उठा.

पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है

जावेद अख़्तर
Jashn E Rekhta
जावेद अख़्तर

ग़ालिब पर शायर जावेद अख़्तर और प्रसारक परवेज़ आलम की बातचीत में सबसे नई बात यही थी कि वो कौन-से शेर हैं जिन्हें लोग ग़ालिब के नाम से कहीं भी चिपका देते हैं.

लोग हैरान ज़रूर हुए कि जिसे अब तक वे ग़ालिब का शेर समझते थे वो तो सिर्फ़ उनके नाम से चलाया जा रहा था.

परवेज़ आलम ने ऐसे ही एक शेर का मिसरा पढ़ा और जावेद अख़्तर से पूछा कि इसका अगला हिस्सा क्या था, जावेद साहब!

जावेद अख़्तर ने अपने अंदाज़ में कहा, "मैं ग़लत शेर याद नहीं रखता."

जावेद अख़्तर आदतन खूब जुमले सुनाते हैं. यहाँ भी वही हुआ. उन्होंने बताया कि एक महिला एक दिन उनसे मिली और पूछने लगीं कि जावेद साहब आपका दीवान-ए-ग़ालिब कब आएगा? लोग इस पर खूब हँसे,

उनकी सरकार रहे, अपना किरदार रहे

कुमार विश्वास
Jashn E Rekhta
कुमार विश्वास

कुमार विश्वास कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाज़ा इस आयोजन में देखने को मिला.

कुमार विश्वास ने मंच से कहा भी, "मैं लोकप्रिय हूँ लेकिन कवि कैसा हूँ इसका फैसला दो सौ साल बाद होगा."

हर मंच की तरह उन्होंने यहाँ भी ख़ुद को पद्मश्री न मिलने का मखौल उड़ाया. दूसरों को बार-बार आत्ममुग्ध बताते रहे. कुमार विश्वास अंत तक आते-आते जैसे ही गीत पढ़ने लगे उनके भीतर के कवि का वैभव दिखलाई देने लगा.

उनके मुक्तक और गीत सांकेतिक होते हुए इतनी सीधी चोट कर रहे थे कि जैसे ही उन्होंने गाया, 'पद्म विभूषित हुए जा रहे कोरस में गाने वाले', यकीन मानिए करीब पैंतालीस सेकंड तक लगातार तालियां बजती रहीं, लोग अपनी कुर्सियों से उठ खड़े हुए और सराहना का शोर गूंजने लगा.

एक कवि या गीतकार क्या रच सकता है, कितनों की आवाज़ बन सकता है, उस वक्त साफ़ दिख रहा था और यह भी कि कुमार विश्वास को मुक्तक और गीत ही लिखने चाहिए, विवादों की स्क्रिप्ट नहीं.

आज जाने की ज़िद न करो

प्रतिभा सिंह बघेल
Twitter/Ikumar7
प्रतिभा सिंह बघेल

प्रतिभा सिंह बघेल नई पीढ़ी की बहुत तैयार और सुरीली गायिका हैं. उन्होंने बहुत अच्छी ग़ज़लें सुनाईं लेकिन वो दर्शकों का मूड नहीं भांप सकीं.

हालाँकि उन्होंने 'आज जाने की ज़िद न करो' गाई, लेकिन लोग कुछ और चाह रहे थे.

लोग ग़ालिब, ग़ालिब, ग़ालिब की मांग करते रहे लेकिन प्रतिभा के पिटारे में ग़ालिब नहीं थे, सो उन्होंने अगले साल का वायदा कर उसे टाल दिया.

दिल धड़कने का सबब याद आया

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को देखने-सुनने के लिए एक के ऊपर एक लोग चढ़े जा रहे थे. ठीक पाँच बजे मटमैला लंबा कोट पहने नसीरुद्दीन शाह मंच पर तशरीफ़ लाते हैं, तीन दिशाओं में तीन बार झुककर सलाम करते हैं.

अब तक शांत खड़े लोगों की आवाज़ का जैसे एक रेला आता है और नसीर के दिल तक पहुंचता है. नसीर शुक्रिया करते हैं. रत्ना पाठक शाह भी कुछ सेकंड बाद आईं, उनके आने पर यह गर्जन कम था, लेकिन था.

नसीरूद्दीन शाह ने बात करनी शुरू की लेकिन बीच-बीच में उठे शोर से उन्हें तीन बार रुकना पड़ा. उन्होंने खीझकर कहा कि आप थोड़ा कॉपरेट करें.

फिर नसीर ने बताया कि ग़ालिब से उनका पहला राब्ता तब हुआ जब वो अपनी प्रेमिका को ख़त लिखते थे. रत्ना पाठक एकटक देखते हुए सुन रहीं थी.

फिर रत्ना पाठक ने बताया कि वह अपनी मां की वजह से उर्दू जान सकीं क्योंकि उनकी माँ भारतीय जननाट्य मंच (इप्टा) से जुड़ीं थी. हालांकि ध्यान से उन्होंने उर्दू की तरफ़ तब ग़ौर किया जब नसरुद्दीन शाह ने इस्मत चुगताई की कहानियों पर नाटक करने शुरू किए.

नसीरूद्दीन शाह कुर्सी के दोनों हाथों पर हाथ रखे बैठे थे. किसी ने कहा दूर से ग़ालिब जैसे लग रहे हैं. इस पर उनका कहना था कि लोग कहते हैं कि उनकी शक्ल ग़ालिब से मिलती है लेकिन ऐसा है नहीं.

एक दिलचस्प वाकया सुनाते हुए उन्होंने कहा कि गुलज़ार ग़ालिब पर फिल्म बना रहे थे और संजीव कुमार को ग़ालिब के रोल में लेना चाहते थे.

नसीरूद्दीन शाह को यह पता चला तो उन्होंने गुलज़ार को ख़त लिखा और कहा कि आप बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हैं. इस रोल के लिए सबसे फिट आदमी मैं हूं.

हालांकि उस समय तो कुछ नहीं हुआ लेकिन 12 साल बाद नसीरूद्दीन शाह को ग़ालिब के लिए गुलज़ार का फोन आया और उसके बाद की बात तो इतिहास है.

नसीरूद्दीन शाह का कहना था कि उर्दू से गहराई वाला रिश्ता ग़ालिब सीरियल की वजह से ही हुआ वरना वह अंग्रेजी कवियों को ही सब कुछ मानते थे.

उन्होंने माना कि अगर वो भूमिका आज करें तो ज़्यादा बेहतर करेंगे क्योंकि आज वो उर्दू शायरी को और ग़ालिब को ज़्यादा बेहतर समझते हैं. यह बात और है कि जब वह ग़ालिब का शेर सुना रहे थे तो उन्होंने 'दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है' को 'दिल-ए-बेताब तुझे हुआ क्या है' पढ़ा.

इसके बाद उन्होंने फ़ैज़ की सुबह-ए-आज़ादी पढ़ी. नसीर बीच-बीच में ज़रूरी कमेंट कर रहे थे. जैसे, हम कौम का मज़ाक उड़ाने से बाज़ नहीं आते. कृषि कानूनों में किसानों के इम्तिहान की ओर इशारा करते हुए उन्होंने फैज़ की नज़्म 'इंतिसाब' पढ़ी.

हद से गुज़रा जब इंतिज़ार तेरा

गायिका ऋचा शर्मा
Jashn E Rekhta
गायिका ऋचा शर्मा

सूफ़ी संगीत के साथ जश्न-ए-रेख़्ता को अंजाम तक पहुंचना था. गायिका ऋचा शर्मा के इंतज़ार में लोग घंटों पहले से बैठे थे.

लेकिन इसी बीच रेख़्ता के संस्थापक संजीव सराफ़ शुक्रिया अदा करने मंच पर पहुँचे. पहली पंक्ति उन्होंने कही-- ज़ाहिर है, आप मुझे सुनने तो नहीं आए. श्रोता बहुत क्रूर थे.

उन्होंने कहा, बिलकुल नहीं. संजीव सराफ़ ने जल्दी से शुक्रिया किया और अपनी जगह ली. लगा कि ऋचा अब आएंगी. लेकिन पहले उन्हीं की टीम से एक गायक आए जिन्होंने शिव कुमार बटालवी का 'इक कुड़ी जिद्दा नाम' गाया.

एक माहौल तैयार हुआ उसके बाद ऋचा शर्मा आईं लेकिन उन्होंने जिस तरह से गीत गाने शुरू किए वह रेख़्ता के अनुकूल नहीं था.

हालांकि लोग अपनी जगह पर खड़े होकर नाचने लगे. लोगों को रोका गया लेकिन ऋचा शर्मा की आवाज़ का थ्रो, रियाज़, अनुभव और बैंड की बीट्स चाहकर भी यह रोक नहीं पा रहे थे.

जहाँ तक पाँव मेरे जा सके हैं

जश्न ए रेख़्ता में सजाई गयीं कविताओं के अंश
Anjum Sharma/BBC
जश्न ए रेख़्ता में सजाई गयीं कविताओं के अंश

यह सब वो था जहाँ तक मैं जा सका. 'महफिल-ए-खाना', 'बज़्म-ए-ख़्याल', 'दयार-ए-इज़हार' और 'सुखन ज़ार', इन चार जगहों पर एक साथ चल रहे सत्रों में उतनी ही भीड़ थी जितनी एवान-ए-ज़ायक़ा पर या किताबों के स्टॉल पर या मेले में. सेल्फी पॉइंट कभी ख़ाली नहीं दिखा.

नई पौध अपनी शायरी की अलग महफ़िल सजाकर बैठी थी तो कहीं संगीत की. इंस्टा रील्स वाले बहुत खुश दिखाई दे रहे थे.

उनके लिए यहां इतने रंग थे कि वे हर रंग को क़ैद कर लेना चाहते थे. किताबों की दुकानों पर लोग थे, मगर उतने नहीं.

ध्यानचंद स्टेडियम में दाख़िल होने के लिए इतनी लंबी कतार थी कि कई लोग वापस चले गए और जिन्हें आना था, उन्हें किसी भी सूरत में आना ही था और उन्हीं से था यह जश्न.

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English summary
Loud celebration of Urdu and slogans of Jai Shri Ram from the stage
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