बीजेपी की पहली सूची में दिखा एंटी इनकम्बेन्सी का डर, मुसलमानों से दूरी
नई दिल्ली। बीजेपी की ओर से जारी 184 लोकसभा उम्मीदवारों की पहली सूची में महत्वपूर्ण यह नहीं है कि नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे या स्मृति ईरानी अमेठी से। महत्वपूर्ण यह भी नहीं है कि अमित शाह चुनाव लड़ेगे। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस सूची में बीजेपी नेतृत्व का लोकतंत्र खो गया दिखता है। वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना, एन्टी इनकम्बेन्सी की जिम्मेदारी सरकार के बजाए सांसदों पर थोपना और एंटी इनकम्बेन्सी के नाम पर आलाकमान की मनमानी सामने आयी है।
बीजेपी
आलाकमान
की
मनमानी
का
चिट्ठा
है
उम्मीदवारों
की
सूची
बीजेपी
अध्यक्ष
अमित
शाह
की
मनमानी
दिखती
है
कि
वे
उसी
सीट
से
चुनाव
लड़ेंगे
जहां
से
बीजेपी
के
संस्थापक
नेता
लालकृष्ण
आडवाणी
1991
के
बाद
से
6
बार
सांसद
रह
चुके
हैं।
सवाल
ये
है
अमित
शाह
के
लिए
आडवाणी
की
सीट
ही
क्यों?
जो
शाह
बीजेपी
में
80
में
73
सीटें
एनडीए
की
झोली
में
डाल
सकते
हैं
वे
क्या
अपने
लिए
एक
सीट
नहीं
खोज
सकते?
आश्चर्य है कि संसद में 92 फीसदी उपस्थिति के बावजूद आडवाणी को रिटायर कर दिया गया। गांधीनगर से लालकृष्ण आडवाणी को टिकट नहीं देना एक ऐसा फैसला है जिसका मतलब ये हुआ कि न सिर्फ आडवाणी, बल्कि उनकी उम्र के आसपास के और लोगों को बेटिकट होना पड़ेगा। साक्षी महाराज का उन्नाव से टिकट नहीं कटना भी यह बताता है कि जिनके पास मजबूत विरोध के दांत हैं, वे बीजेपी में सुरक्षित हैं। वहीं लोकसभा सीट जीत नहीं पाने की अयोग्यता के बावजूद स्मृति ईरानी फिर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी। उसी सीट से, जहां से वह हार कर केंद्रीय मंत्री बनी थीं।
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मुसलमानों से दूरी बनाए हुए है बीजेपी
बीजेपी की सूची यह बताती है कि कश्मीर और लक्षद्वीप को छोड़ दें, तो पार्टी को मुस्लिम उम्मीदवारों की जरूरत ही नहीं है। वह शाहनवाज़ हुसैन जैसे नेताओं को भी टिकट देने को तैयार नहीं। पार्टी नवादा से सांसद गिरिराज किशोर को बेगूसराय से टिकट तो दे सकती है मगर ऐसे ही मामले में भागलपुर की सीट जेडीयू को दे देने के बाद यहां से कभी बीजेपी सांसद रहे शाहनवाज़ हुसैन के लिए दूसरी सीट नहीं खोज सकती। आश्चर्य है कि बिहार, यूपी, महाराष्ट्र समेत 20 राज्यों से 184 उम्मीदवारों की घोषणा हुई मगर मुस्लिम उम्मीदवारों का टोटा बीजेपी के लिए पड़ा रहा।
राजस्थान
और
छ्त्तीसगढ़
में
एंटी
इनकम्बेन्सी
अलग-अलग?
राजस्थान
और
छत्तीसगढ़
दो
ऐसे
राज्य
हैं
जहां
से
बीजेपी
ने
हाल
के
चुनाव
में
सत्ता
खोयी
थी।
मगर,
उम्मीदवारों
की
घोषणा
में
दोनों
ही
राज्यों
में
बीजेपी
के
दो
चेहरे
नज़र
आते
हैं।
राजस्थान
में
25
से
16
लोकसभा
सीटों
के
लिए
उम्मीदवारों
के
नामों
की
घोषणा
हो
चुकी
है।
केवल
एक
सीट
पर
उम्मीदवार
बदला
गया
है।
वहीं,
छत्तीसगढ़
में
11
लोकसभा
सीटों
में
5
उम्मीदवारों
के
नाम
तय
किए
हैं
और
इन
सीटों
पर
सभी
वर्तमान
सांसदों
को
बेटिकट
कर
दिया
है।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी और राजस्थान के आलाकमान में खुली तकरार हुई थी। पार्टी विधायकों के टिकट नहीं काट पायी थी। नतीजा राज्य में बीजेपी की सरकार चली गयी। इस बार भी पार्टी को वहां वसुंधरा राजे की जिद के सामने झुकना पड़ा है। छत्तीसगढ़ में हार के बाद रमन सिंह दंतहीन हो चुके हैं। लिहाजा यहां सभी सांसदों के टिकट काटे जाने की घोषणा की जा चुकी है। 5 पर अमल पहली सूची में हुआ है।
कर्नाटक और महाराष्ट्र में कांग्रेस से आए नेताओं का स्वागत
कर्नाटक और महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस से आए नेताओं को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार में मंत्री रहे ए मंजू को हासन लोकसभा सीट पर बीजेपी का उम्मीदवार घोषित किया गया है। वे एचडी देवगौड़ा के पोते प्रज्जवल रवन्ना को चुनौती देंगे। इसी तरह लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के ख़िलाफ़ कलबुर्गी में उमेश जाधव को उम्मीदवार बनाया है। वे भी कांग्रेस से बीजेपी में लौटे हैं।
महाराष्ट्र में बीजेपी ने 16 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इनमें दो सांसदों के टिकट कटे हैं। अहमदनगर सीट से दिलीप गांधी और लातूर से सुनील गायकवाड़ को टिकट नहीं दिया गया है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में हाल में आए सुजय विखे पाटिल को अहमदनगर से उम्मीदवार बनाया गया है। सुज विखे के पिता राधाकृष्ण विखे पाटिल महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं।
असम
और
उत्तराखण्ड
में
भी
डर
रही
है
बीजेपी
एंटी
इनकम्बेन्सी
से
निबटने
की
जरूरत
बीजेपी
को
असम
में
भी
जरूरी
लग
रही
है।
यही
वजह
है
कि
यहां
बीजेपी
ने
8
घोषित
उम्मीदवारों
में
3
वर्तमान
सांसदों
के
टिकट
काट
दिए
हैं।
गुवाहाटी
से
3
बार
सांसद
रहे
वर्तमान
सांसद
विजय
चक्रबर्ती
को
बीजेपी
ने
टिकट
नहीं
दिया
है।
यहां
से
पार्टी
ने
क्वीन
ओझा
के
रूप
में
महिला
उम्मीदवार
दिया
है।
मंगलदोई
सीट
से
सांसद
रमेन
डेका
और
जोरहाट
से
बीजेपी
सांसद
कामख्या
प्रसाद
तासा
को
भी
टिकट
नहीं
दिया
गया
है।
उत्तराखण्ड की स्थिति असम से थोड़ी अलग है। यहां सभी पांच सीटों के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। गढ़वाल और नैनीताल से मौजूदा सांसदों को टिकट नहीं दिया गया है। इन सीटों से बीसी खंडूरी और भगत सिंह कोश्यारी ने चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जतायी थी। गढ़वाल से तीरथ सिंह रावत को उम्मीदवार बनाया गया है तो नैनीताल से अजय भट्ट पार्टी के उम्मीदवार होंगे।
यूपी में डर के साथ एंटी इनकम्बेन्सी ऑपरेशन
यूपी में 28 उम्मीदवारों की घोषणा हुई है। इनमें से 6 सांसदों को बेटिकट किया गया है। हालांकि तैयारी और सांसदों के टिकट काटने की थी, लेकिन जनरल वीके सिंह, साक्षी महाराज सरीखे सांसद बच गये हैं। यूपी में जिन 6 सांसदों को बेटिकट होना पड़ा है उनमें आगरा में राम शंकर कठेरिया, मिश्रिक से अनुज बाला, सम्भल से सत्यपाल सैनी, फतेहपुर सीकरी से चौधरी बाबूलाल, शाहजहांपुर से कृष्णराज और हरदोई में अंशुल वर्मा शामिल हैं। इन सांसदों की जगह क्रमश: एसपी बघेल, अशोक रावत, परमेश्वर लाल सैनी, राज कुमार चाहर, अरुण सागर और जय प्रकाश रावत को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए गये हैं।
सूची में अब तक जो प्रमुख नाम नेता की संतान के तौर पर सामने आए हैं उनका जिक्र भी जरूरी है। बीएस येदियुरप्पा के बेटे बी वाई राघवेन्द्र को शिवमोगा से टिकट दिया गया है। यूपी के बदायूं में बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को उम्मीदवार बनाया है। वह समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को चुनौती देंगी। बीजेपी की सूची में परिवारवाद से लेकर पैराशूट उम्मीदवार तक और एंटी इनकम्बेन्सी से निपटने के नाम पर भेदभाव जैसी वो सभी बातें हैं जो एक पार्टी को लोकतंत्र की राह से भटकने का प्रमाण होती हैं।
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