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जानिए, क्या है अमित शाह को गांधीनगर सीट से उतारने के पीछे बीजेपी का गेमप्लान?

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PM Modi का मास्टर प्लान, Amit Shah को इसलिए Gandhinagar Seat से उतारा | वनइंडिया हिंदी

नई दिल्ली- 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव ने ही तय कर दिया था कि राज्य में बीजेपी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव आसान नहीं होने जा रहा। पिछली बार तो नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए, पूरे देश में बीजेपी के चुनाव प्रचार की अगुवाई कर रहे थे। वह खुद वडोदरा सीट से पार्टी के उम्मीदवार भी थे। तब मोदी रैलियों के लिए देश में कहीं भी गए, लेकिन रात के समय वापस गांधीनगर लौटना नहीं भूले। गुजरात की सभी सीटें जीतने का उनका लक्ष्य था, इसलिए वो हर सीट पर व्यक्तिगत तौर पर नजर रख रहे थे। इसलिए, वहां लोकसभा की सभी 26 सीट पर जीतना पार्टी के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं रहा था। लेकिन, अबकी बार न तो नरेंद्र मोदी वहां हैं और न ही राज्य की किसी सीट से उनके चुनाव लड़ने के आसार हैं। ऐसी स्थिति में मोदी न सही, कम से कम उनके दाहिने हाथ अमित शाह की सक्रिय मौजूदगी भी आवश्यक समझी जा रही है। सच्चाई तो ये भी है कि आज की तारीख में बीजेपी गुजरात में उतनी मजबूत नहीं है, जितनी की पिछली बार थी। इसलिए अमित शाह को यहां से चुनाव लड़ाकर पार्टी एक साथ कई मोर्चों पर मिशन-26 के संकल्प को पूरा करना चाहती है।

बीजेपी के मिशन-26 में फिट बैठते हैं शाह

बीजेपी के मिशन-26 में फिट बैठते हैं शाह

मुकाबला कड़ा है, लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि इसबार भी गुजरात में मिशन-26 के लक्ष्य को भेदना नामुमकिन नहीं है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तो इसकी तैयारी महीनों से कर रहे हैं। इस साल जनवरी में ही उन्होंने गुजरात से पार्टी के सभी निर्वाचित सांसदों की दिल्ली में बैठक बुलाकर कई दौर की बैठकें भी कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी को तीन अंकों तक पहुंचना भी मुश्किल कर था, जिसने तभी मोदी-शाह के कान खड़े कर दिए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी गुजरात की सभी 26 सीटें जीती थी,तो नरेंद्र मोदी गुजरात में ही थे। इसबार लोकसभा चुनाव में पार्टी कार्यकर्ता वहां उनकी उतनी ही कमी महसूस कर रहे हैं, जितनी विधानसभा चुनावों के दौरान की थी। ऐसे में मिशन-26 के संकल्प को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए बड़े और प्रभावशाली नेता की सक्रिय भागादारी की जरूरत महसूस की जा रही थी। एक ऐसा नेता जो न केवल कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद रख सके, बल्कि गुजरात में मोदी की हर पल मौजूदगी का अहसास भी दिला सके। इस लिहाज से मोदी और पार्टी की नजर में अमित शाह से बेहतर विकल्प कोई हो नहीं सकता था। प्रधानमंत्री उनपर कितना भरोसा करते हैं, यह गुजरात ही नहीं देश के लोग भी अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए, पार्टी को लगता है कि कुल मिलाकर अमित शाह ही हैं, जो नरेंद्र मोदी के नाम पर मिशन-26 का सपना पूरा करने का माद्दा रखते हैं।

बगैर आडवाणी गांधीनगर में मोदी या शाह ही फिट

बगैर आडवाणी गांधीनगर में मोदी या शाह ही फिट

लालकृष्ण आडवाणी 1991 से ही गांधीनगर का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। इसी सीट ने उन्हें वाजपेयी सरकार में गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया है। आडवाणी की भरपाई के लिए गांधीनगर जैसी हाईप्रोफाइल सीट पर बीजेपी को कोई कद्दावर नेता ही चाहिए था। आडवाणी की कद का गुजरात से आज की तारीख में बीजेपी में कोई नेता है, तो वो खुद प्रधानमंत्री मोदी ही हो सकते हैं। लेकिन, मोदी इसबार शायद ही गुजरात की किसी सीट से चुनाव लड़ें। इसलिए पार्टी ने उनके सबसे करीबी नेता और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पर भरोसा करना बेहतर समझा है। सच्चाई ये भी है कि अमित शाह ने अपने राजनीतिक करियर के शुरुआती दिनों में आडवाणी के लिए प्रचार का जिम्मा गांधीनगर में ही संभाला है। इसलिए, एक हाईप्रोफाइल सीट पर हाईप्रोफाइल उम्मीदवार के चुनाव प्रतिनिधि होने का उनका अनुभव भी काम आ सकता है।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि पिछले कुछ समय से कांग्रेस ने गांधीनगर में अपनी सियासी मौजूदगी के लिए बहुत प्रयास किया है। इसी महीने कांग्रेस ने 58 साल बाद अपनी वर्किंग कमिटी की बैठक भी गांधीनगर के पास अदालाज में की थी। इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक के बाद बतौर पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने गांधीनगर के पास अदालज में ही अपनी पहली चुनावी जनसभा की थी। इसलिए, दो राय नहीं कि कांग्रेस ने गांधीनगर इलाके में अपने संगठन को मजबूत करने के लिए हाल के दिनों में बहुत कोशिशें की हैं। ऐसे में उसकी रणनीतियों का सियासी जवाब देने के लिए भी अमित शाह से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता था। क्योंकि, कांग्रेस को अंदाजा था आडवाणी इस बार का चुनाव नहीं लड़ेंगे। ऐसे में वह भी इस सीट पर अपनी दावेदारी मजबूती से रखना चाहती है।

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2017 की चुनौतियों से निपटना जरूरी

2017 की चुनौतियों से निपटना जरूरी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दक्षिण गुजरात के धरमपुर से लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान शुरू करके जता दिया था कि उनकी पार्टी गुजरात में किसी भी कीमत पर बीजेपी को वॉकओवर नहीं देगी। 2014 से 2017 के बीच राज्य में बीजेपी के आधार वोट बैंक में कांग्रेस ने जिस तरह से सेंध लगाई है, वह बीजेपी नेतृत्व के लिए बहुत बड़ी चिंता की वजह है। खासकर पाटीदार आंदोलन के बाद से उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र क्षेत्र की परिस्थितियां पार्टी के अनुकूल नहीं हैं। जानकारी के मुताबिक अमित शाह की गुजरात में मौजूदगी भर से उत्तर गुजरात की सियासी स्थिति बदल सकती है। 2017 के चुनाव परिणामों पर नजर डालने से स्पष्ट हो जाता है कि उत्तर गुजरात की 4 सीटें बीजेपी के लिए परेशानी का सबब पैदा कर रही हैं, जहां से पार्टी के पिछड़ने का डर है। ये सीटें हैं- बनासकांठा, साबारकांठा, मेहसाणा और पाटन। इसके अलावा सौराष्ट्र क्षेत्र का जूनागढ़ और अमरेली एवं सुरेंद्रनगर और मध्य गुजरात के आणंद में पार्टी की राह आसान नहीं है।

जाहिर है कि इन तमाम चुनौतियों से मौजूदा दौर में मोदी के अलावा बीजेपी का कोई नेता निपट सकता है तो वे सिर्फ अमित शाह ही हैं। वे करीब साढ़े 6 करोड़ गुजरातियों से 'माटी के लाल' के लिए वोट मांग कर नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने की राह आसान कर सकते हैं। इसके अलावा सियासी गलियारों से भविष्य में अमित शाह को मोदी के उत्तराधिकारी बनाए जाने की चर्चा भी उठती रही है। ऐसे में हो सकता है कि मोदी के दिमाग अमित शाह के लिए आगे का भी कोई गेमप्लान पहले से तैयार हो।

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English summary
Know what is the BJPs gameplan to take Amit Shah from Gandhinagar seat?
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