जापान ने शुरू की थी भारत के साथ 2+2 डायलॉग की परंपरा और अमेरिका अब बढ़ा रहा आगे
नई दिल्ली। गुरुवार को भारत और अमेरिका के बीच पहली 2+2 वार्ता हुई जिसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अमेरिकी समकक्षों माइक पोंपेयो और जिम मैटीस से मुलाकात की। इस वार्ता को पहले जून में होना था लेकिन अमेरिका ने 'अपरिहार्य कारणों' का हवाला देते हुए इसे कैंसिल कर दिया। पोंपेयो की ओर से वार्ता कैंसिल होने पर खेद भी जाहिर किया गया है। जब से यह वार्ता कैंसिल हुई हर जगह इसके बारे में ही बातें हो रही थीं। भारत और अमेरिका के बीच यह पहली 2+2 वार्ता है जिसका फैसला जून 2017 में उस समय लिया गया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्र्रंप की व्हाइट हाउस में द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। जानिए क्या होती है 2+2 वार्ता और कैसे दो देशों के रिश्तों में यह बड़ा रोल अदा करती है।
जापान ने शुरू की परंपरा
वेबसाइट कोरा पर विदेश विभाग में सहायक सचिव के तौर पर कार्यरत प्रथित मिश्रा ने इस डायलॉग के बारे में जानकारी दी है। प्रथति ने एक सवाल के जवाब में जो जवाब दिया है, उसके मुताबिक, 'यह वार्ता देशों के अधिकारियों के बीच बातचीत का एक प्रारूप है।' उन्होंने लिखा है कि जापान ने इस तरह की वार्ता के जरिए कई देशों के साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा की है। भारत ने साल 2012 में जापान के साथ 2+2 वार्ता में हिस्सा लिया था। उस दौरान भारत के विदेश और रक्षा मंत्रियों ने अपने जापान समकक्षों के साथ चर्चा की थी।
क्या होता है फायदा
प्रथित ने बताया है कि इस तरह की बातचीत का फायदा यह होता है कि इस दौरान कई रणनीतिक मुद्दे जो काफी अहमियत रखते हैं और विदेश और रक्षा मंत्रालय के तहत आते हैं, उन पर विस्तार से चर्चा होती है। साथ ही किसी भी मुद्दे के अधिकार क्षेत्र और उसके साथ पूर्व में हुए मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है। प्रथति के मुताबिक अभी इस तरह की वार्ता सिर्फ विदेश और रक्षा मंत्रालय तक ही सीमित है लेकिन इसे बाकी मंत्रालयों की ओर से भी अपनाया जा सकता है।
एनएसजी से लेकर कॉमकासा पर चर्चा
भारत और अमेरिका दोनों ही न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में भारत की एंट्री के लिए साथ मिलकर काम करने को राजी हुए हैं। वहीं इस वार्ता के दौरान कॉमकासा यानी कम्यूनिकेशंस कॉम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट भी साइन किया है। इस एग्रीमेंट के साइन होते ही भारत के लिए अमेरिकी की तरफ से संवेदनशील मिलिट्री टेक्नोलॉजी और उपकरणों की खरीद का रास्ता साफ हो गया है। पोंपेयो ने कॉमकासा को दोनों देशों के रिश्तों में एक मील का पत्थर करार दिया।