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कैराना चुनाव: महिला उम्मीदवारों में कौन ताक़तवर?

कैराना लोकसभा सीट के लिए होने वाले उप-चुनाव में मुख्य मुक़ाबला बीजेपी की मृगांका सिंह और राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन के बीच है.

तबस्सुम हसन को सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, भीम आर्मी और कई अन्य छोटे दलों का भी समर्थन प्राप्त है. मृगांका सिंह और तबस्सुम हसन दोनों के ही परिवार कैराना के प्रमुख राजनीतिक घरानों में गिने जाते हैं या यूं कहें कि दशकों से कैराना की राजनीति इन्हीं दोनों परिवारों के इर्द-गिर्द रही है.

By BBC News हिन्दी
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कैराना चुनाव: महिला उम्मीदवारों में कौन ताक़तवर?

कैराना लोकसभा सीट के लिए होने वाले उप-चुनाव में मुख्य मुक़ाबला बीजेपी की मृगांका सिंह और राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन के बीच है.

तबस्सुम हसन को सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, भीम आर्मी और कई अन्य छोटे दलों का भी समर्थन प्राप्त है. मृगांका सिंह और तबस्सुम हसन दोनों के ही परिवार कैराना के प्रमुख राजनीतिक घरानों में गिने जाते हैं या यूं कहें कि दशकों से कैराना की राजनीति इन्हीं दोनों परिवारों के इर्द-गिर्द रही है.

राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने और महिला होने के अलावा भी इन दोनों में कई तरह की समानताएं हैं.

धुरंधर नेता की बेटी मृगांका

मृगांका सिंह के पिता हुकुम सिंह कैराना विधानसभा सीट से सात बार विधायक और एक बार सांसद चुने गए थे. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में वो इसी सीट से निर्वाचित हुए थे. हुकुम सिंह ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी और 1974 में पहली बार कांग्रेस से विधायक बने.

1985 में राज्य की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे. बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार में भी मंत्री रहे.

वरिष्ठ पत्रकार रियाज़ हाशमी कहते हैं कि 2014 में सांसद बनने के बाद से ही उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत मृगांका सिंह को सौंपने की तैयारी शुरू कर दी थी.

रियाज़ बताते हैं, "2017 के विधानसभा चुनाव में मृगांका सिंह को उन्होंने कैराना विधानसभा सीट से टिकट दिलवाया जो कि हुकुम सिंह की परंपरागत सीट थी. लेकिन राज्य में 'प्रचंड बीजेपी लहर' के बावजूद मृगांका सिंह चुनाव जीत नहीं सकीं. हुकुम सिंह का निधन होने के बाद बीजेपी ने मृगांका सिंह को ही वहां से उप-चुनाव लड़ाने का फ़ैसला किया. लेकिन अक्सर जीत का स्वाद चखने वाले हुकुम सिंह की राजनीतिक विरासत संभालने वाली उनकी बेटी की राजनीतिक शुरुआत हार से हुई, जिसका हुकुम सिंह को अंत तक मलाल रहा."

ससुर से लेकर बेटे तक सब राजनेता

वहीं, तबस्सुम हसन के परिवार की तो तीसरी पीढ़ी भी अब राजनीति में आ चुकी है. उनके ससुर चौधरी अख़्तर हसन सांसद रह चुके हैं जबकि पति मुनव्वर हसन कैराना से दो बार विधायक, दो बार सांसद, एक बार राज्यसभा और एक बार विधान परिषद के सदस्य भी रहे हैं.

स्थानीय लोगों के मुताबिक वो एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने चारों सदनों का प्रतिनिधित्व किया.

हुकुम सिंह की तरह हसन परिवार भी कई राजनीतिक दलों के बीच घूमती रही है. 1984 में चौधरी अख्तर हसन कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे चौधरी मुनव्वर हसन ने संभाली और 1991 में पहली बार वो कैराना सीट से विधायक बने.

इस चुनाव में उन्होंने हुकुम सिंह को हराया था.

रियाज़ हाशमी बताते हैं, "साल 1993 में भी मुनव्वर हसन विधायक बने. 1996 में कैराना लोकसभा सीट से वो सपा के टिकट पर और 2004 में सपा-रालोद गठबंधन के टिकट पर मुज़फ़्फ़रनगर से सांसद चुने गए. मुनव्वर हसन राज्यसभा और विधान परिषद के सदस्य भी रहे."

2009 में मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन बसपा के टिकट पर कैराना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. 2014 में लोकसभा सदस्य बनने के बाद जब हुकुम सिंह ने कैराना विधानसभा सीट खाली की तो ये सीट एक बार फिर हसन परिवार के पास आ गई. अबकी बार मुनव्वर हसन और तबस्सुम हसन के बेटे नाहिद हसन ने सपा के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की.

बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने ये सीट मृगांका सिंह को हराकर अपना कब्ज़ा बनाए रखा.

इलाक़े के लोग बताते हैं कि राजनीतिक रूप से दोनों परिवार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी भले ही हों लेकिन सामाजिक ताने-बाने में दोनों का संबंध 'घरेलू' है.

एक ही गुर्जर समुदाय से दोनों परिवार

दोनों परिवार को क़रीब से जानने वाले कैराना के पत्रकार संदीप इंसा बताते हैं, "दरअसल, दोनों ही परिवार मूल रूप से गुर्जर समुदाय से आते हैं. बल्कि दोनों ही गुर्जरों की एक ही खाप यानी कलस्यान खाप से संबंध रखते हैं. कैराना, शामली और मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और गुर्जर समुदाय के लोग दोनों ही धर्मों यानी हिंदुओं और मुसलमानों में हैं."

नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि जब तक हुकुम सिंह ने कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा नहीं उठाया था, तब तक गुर्जर समुदाय के तमाम मुसलमान भी उनके समर्थक थे, भले ही वो किसी पार्टी में रहे हों. लेकिन उसके बाद मुस्लिम समुदाय उनसे दूर हो गया.

दोनों उम्मीदवारों में तमाम समानताएं होने के बावजूद एक बड़ी असमानता भी है. मृगांका सिंह राजनीति में भले ही नई हों लेकिन शिक्षा और व्यवसाय में वो काफ़ी तजुर्बा रखती हैं. ख़ुद उच्च शिक्षित मृगांका सिंह की ग़ाज़ियाबाद और मुज़फ़्फ़रनगर में पब्लिक स्कूल की चेन है जबकि शिक्षा के मामले में तबस्सुम हसन उनसे काफी पीछे हैं. तबस्सुम सिर्फ़ हाईस्कूल तक शिक्षित हैं.

कैराना क़स्बे के पास ऊंचगांव के निवासी दिनेश चौहान कहते हैं कि सहानुभूति के मामले में भी दोनों में काफी समानता है, "मृगांका सिंह के साथ लोगों को हमदर्दी उनके पिता के निधन की वजह से है तो तबस्सुम के प्रति भी उनके पति की मौत से लोगों में सहानुभूति है."

यही नहीं, तब्बसुम हसन के ससुर अख़्तर हसन का भी पिछले दिनों निधन हो गया था. कैराना लोकसभा सीट में शामली ज़िले की तीन और सहारनपुर की दो विधान सभा सीटें आती हैं. यहां

सबसे ज़्यादा क़रीब साढ़े पांच लाख मतदाता मुस्लिम हैं जिनमें मुस्लिम गुर्जर और मुस्लिम जाट भी शामिल हैं. क़रीब तीन लाख की आबादी हिन्दू जाटों और गुर्जरों की है जबकि ढाई लाख दलित मतदाता हैं.

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