झारखंड चुनाव परिणाम: जानिए भाजपा को किन कारणों से मिली हार ?
झारखंड विधानसभा चुनाव में इन कारणों से भारतीय जनता पार्टी को मिली हार, जानिए वो छह बड़े कारण। In the Jharkhand assembly elections, the Bharatiya Janata Party lost due to these reasons, know the six big reasons.
बेंगलुरु। झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के लिए आज नतीजों का दिन है। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर हुए मतदान के परिणाम आ रहे हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के रुझान में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। रुझानों के अनुसार झारखंड मुक्तिमोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन की सरकार बनती दिख रही है। रुझान ये ही सच्चाई बयां कर रहे है एक और राज्य अब भाजपा के हाथ से निकल चुका है। वहीं विपक्षी महागठबंधन बड़़ी जीत हासिल करते हुए जेएमएम की गठबंधन की सरकार बनना तय हो चुका है। जो नतीजे आए हैं, उनके बाद ये सवाल उठता है कि झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार के पीछे की खास वजहें क्या रही?
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गैर आदिवासी को भाजपा को लड़ाना पड़ा मंहगा
झारखंड में 27 फीसदी आबादी आदिवासियों की हैं। झारखंडआदिवासी राज्य है, इसमें भाजपा ने गैर आदिवासी मुख्यमंत्री को बैठा दिया। इतना ही नहीं जिस तरह का स्थानीय नीति होनी चाहिए, भाजपा ने उस पर ध्यान नहीं दिया। पांच साल सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री रघुवर दास के गैर-आदिवासी होने पर सवाल उठते रहे हैं। इसके बावजूद भाजपा ने विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के रुप में गैर आदिवासी का चेहरा चुना। झारखंड मुक्ति मोर्चा समेत अन्य विरोधी दल आदिवासी बहुल राज्य में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर आदिवासी अस्मिता को उभारने और भाजपा को घेरने की कोशिश लगातार करते रहे।
विपक्ष ने बनाया इसे हथियार
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आदिवासियों के बीच जाकर बताया कि भाजपा तो अब अपने फायदे के लिए आदिवासी और मूलवासी में भी भेद करा रही है। गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ाना भाजपा को मंहगा पड़ा। आदिवासियों का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था आदिवासियों की सामाजिक संरचना से मेल नहीं खाती। भाजपा या दूसरी राजनीतिक पार्टियां आती तो हैं आदिवासियों के मुद्दों पर, लेकिन सत्ता में आने के बाद उसे भूल जाती हैं।
रघुवर सरकार उम्मीदों पर खरी नही उतरी
झारखंड में भाजपा की हार का प्रमुख कारण मुख्यमंत्री रघुवर दास की खराब छवि बनी। पिछले पांच वर्षों में सरकार से जनता को जो उम्मीद थी उसमें वह खरी नहीं उतरी। रघुवर सरकार द्वारा लिए गए कई फैसलों के कारण जनता का भापजा से मोहभंग हो गया। रघुवर सरकार के कई फैसलों के चलते सरकार आदिवासियों के बीच अलोकप्रिय हुई। भूमि अधिग्रहण बिल यहां के आदिवासियों के लिए एकदम ख़तरा है, उसको लाया गया। रघुवी सरकार के काश्तारी कानून में बदलाव जैसे फैसलों ने उनकी छवि पर बहुत चोट पहुंचाई।
आदिवासी भाजपा से इसलिए हुए नाराज
जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए जो सीएनटी कानून है, उसमें संशोधन करने का प्रयास किया गया। यहां की जनता का आरोप है कि सरकार ने वनाधिकार कानून को ख़त्म करने का खेल किया। इसलिए आदिवासी भाजपा सरकार से नाराज थे। उनका कहना है इस सरकार में हमारा भला नहीं हुआ। रघुवर सरकार के ऐसे ही कई फैसलों के कारण आदिवासी भाजपा से नाखुश थे और उन्होंने अपनी नाराजगी भाजपा के खिलाफ वोट करके निकाली। चुनाव नतीजें बताते हैं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति जनता की नाराजगी का खामियाजा भाजपा को हार के रुप में भुगतना पड़ रहा है।
राष्ट्रीय मुद्दों के बजाय स्थानीय मुद्दे बने निर्णायक
माना जा रहा है कि झारखंड में भाजपा की हार प्रमुख वजह स्थानीय मुद्दों के प्रति अनदेखी रही। झारखंड विधानसभा चुनाव स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया है। भाजपा ने यह चुनाव पीएम नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ा। राममंदिर,कश्मीर से अनुच्छेद 370 को रद्द करने जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा। हरियाणा में मिले सबक से भाजपा ने कोई सबक नहीं लिया और दोबारा झारखंड में भी वो ही गलती की।
विपक्ष ने स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा
रोटी, रोजगार, भुखमरी, जल, जमीन समेत अन्य स्थानीय मुद्दों का दरकिनार कर राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ने की भूल कर बैठी। वहीं विपक्ष ने आदिवासी के लिए जल जंगल और जमीन का मुद्दा उठाते हुए सीएनटी-एसपीटी एक्ट के मुद्दें को जमकर उठाया।। इतना ही नहीं भुखमरी से हुई मौत, मॉब लिचिंग से हुई मौतों को भी विपक्ष ने चुनावी मंचों पर खूब जोर शोर से उठाया। झारखंड़ मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष और अब मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे हेमंत शोरेन ने झारखंड़ को लिंचिग प्री स्टेट का वादा करके एक विशेष समुदाय के वोट को अपनी तरफ करने में कामयाब हो गए।वहीं आर्थिक मंदी और देश में बढ़ती बेरोजगारी के कारण भी झारखंड की जनता का भाजपा से मोहभंग हुआ।
सरयू राय को नजरंदाज करना भाजपा को मंहगा पड़ा
झारखंड में भाजपा की हार की वजह झारखंड के दिग्गज नेताओं की नाराजगी और उनकी पार्टी से बगावत भी बनीं। बता दें रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू ने भाजपा से बगावत करके चुनाव के समय बगावत कर दी और मुख्यमंत्री रघुवर दास खिलाफ चुनाव लड़ा। जो भाजपा की हार की बहुत बड़ा कारण बना। इतना ही चुनाव से पहले भाजपा के अंदर बड़े नेताओं के बीच खींचतान के कारण सेंधमारी हुई। राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा के कद्ददार नेता और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के बीच की कलह भी पार्टी की हार की बड़ी वजह साबित हुई है।
आदिवासी इलाकें में जेएमएम का रुतबा बढ़ा
झारखंड के आदिवासी इलाकों में जेएमएम का रुतबा काफी बढ़ा है। भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए झारंखड मुक्ति मोर्चा जेएमएम के मुखिया शिबू सोरेन इस बार भी दो सीटों से चुनाव लड़े। हेमंत सोरेन दुमका विधानसभा सीट के साथ-साथ बरहेट से भी चुनाव लड़े। शिबु सोरेन ने इस चुनाव के दौरान कहा कि आदिवासी लोग जमीनों के लुटेरे नहीं बल्कि जमीन के राजा हैं। इनको तकलीफ हो रही है कि हम दबे-कुचले, शोषित और पीड़ित समाज का नेतृत्व कर रहे हैं।
भाजपा की बनी ये छवि
जनता के बीच जाकर सीबू शोरेन ने बताया कि आदिवासी और गैर आदिवासी में विभेद भाजपा करती है। हम लोग तो केवल झारखंडी की बात करते हैं। भाजपा की सरकार से पहले हम सभी मिलजुलकर रहते थे। शोरेन ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर लोगों को डरा कर वोट हासिल कर रही है। भाजपा की नाकामी की यह भी एक बहुत बड़ी वजह बनी।
आजसू के साथ भाजपा लड़ती तो अलग नतीजे होते
झारखंड़ चुनाव में भाजपा अपने सहयोगियों को एकजुट नहीं रख पाई। 2019 के आम चुनाव भाजपा ने झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू)के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जिसके बेहतर परिणाम मिले। लेकिन इस चुनाव में बीजेपी की इस हार के पीछे की एक बड़ी वजह आजसू के साथ नाता तोड़कर अलग चुनाव लड़ना था। चुनावी रुझानों में जो आंकड़े दिख रहे हैं उसे देखकर कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी और आजसू मिलकर चुनाव लड़तीं तो आज झारखंड की सियासी तस्वीर दूसरी होती। बीजेपी-आजसू गठबंधन आसानी से बहुमत के आंकड़े हासिल कर लेती। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में भाजपा अकेली चुनाव लड़ी वहीं भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए झारखंड़ मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने मोर्चाबंदी कर एक साथ चुनाव लड़ा। चुनाव नतीजें ये सच्चाई बयां कर रहे हैं कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने में विपक्ष की मोर्चाबंदी अहम साबित हुई है।
भाजपा को सत्ता से बाहर करने लिए किया ये महागठबंधन
अहम बात ये है कि 2014 के विधानसभा चुनाव में इन तीनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन आम चुनाव में भाजपा और आजसू के गठबंधन को मिली सफलता को ध्यान में रखते हुए भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए इस बार एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया और कामयाबी भी हासिल की।
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