भारत में एकता के लिए जाति, धर्म या फिर संस्कृति की समानता आवश्यक नहीं: मोहन भागवत
नई दिल्ली, 22 अप्रैल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने भारत में एकता को लेकर बड़ी बाते कही हैं। उन्होंने कहा एकता के लिए जाति और धर्म के कोई मायने नहीं है। भारत में यूनिटी बनाने के लिए सजातीय संस्कृति, धर्म या फिर समान भाषा की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि जब हम कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र है, तो हमें यह देखना होगा कि राष्ट्रों का निर्माण कैसे हुआ।
आरएसएस चीफ मोहन भागवत गुरुवार को अहमदाबाद में गुजरात विश्वविद्यालय परिसर के पास गुजरात के नॉलेज कंसोर्टियम में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए। यहां वे लेखक रजत कुमार की उड़िया भाषा की पुस्तक 'अनन्य जगन्नाथ अनुभूति' के गुजराती संस्करण के विमोचन समारोह के अवसर पर बोल रहे थे। भागवत ने कहा कि भाषा, संस्कृति या धर्म में एकरूपता कभी भी भारत के गठन का आधार नहीं रही। ऐसे में भारत में एकता के विषय में किसी सजातीय संस्कृति, धर्म या भाषा की जरूरत नहीं है। भागवत ने भागवत ने 'मातृभूमि' की अवधारणा पर बात करते हुए कहा कि बिना आधार वाले समूल को लोग स्वीकार नहीं करते हैं। किसी भी समूह में एक ही मत नहीं हो सकता। इसलिए लोगों को समूह में शामिल करने के लिए राष्ट्र का कॉन्सेप्ट दिया गया।
मोहन भागवत ने कहा कि जब हम कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र है, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि राष्ट्रों का निर्माण कैसे हुआ। राष्ट्रों का निर्माण सुरक्षा के कारणों से हुआ। यह भी सोचा गया कि व्यापार से तेजी से विकास होगा। आरएसएस चीफ ने कहा कि राष्ट्र का निर्माण का आधार कई जगहों पर भाषा, धर्म, संप्रदाय, वित्तीय दृष्टि को बनाया गया। संघ प्रमुख ने कहा कि भारत में लोग भावनाओं के तहत इकट्ठा हुए हैं। इसलिए यहां ये बात संभव नहीं थी।