जयललिता के जाने के बाद कितनी बदल जाएगी राजनीति?
जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में उधल-पुछल मच गई है। अम्मा के जाने के बाद अब डीएमके ने राहत की सांस ली।
चेन्नई। तामिलनाडु की मुख्यमंत्री और देश की ताकतवर राजनेता को जयललिता का निधन हो गया। सोमवार को अपोलो अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। जयललिता देश की ताकतवर नेताओं में जानी जाती थीं। अब जयललिता के जाने से तमिलनाडु की राजनीति के साथ-साथ केंद्र की राजनीति भी प्रभावित होगी। सैकड़ों करोड़ का अम्मा का साम्राज्य, जानें किसे क्या मिलेगा?
जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में बड़े बदलाव आने तय है। जयललिता के निधन का मतलब है उनकी विरोधी पार्टी डीएमके के लिए चैन की सांस लेना है। राजनीति में दिलचस्पी नहीं होने के बावजूद जिस महिला ने डीएमके के करुणानिधि जैसे धुरंधर नेता को पटखनी दी, अब उसके जाने के बाद राजनीति के अखाड़े का दृश्य बदल जाएगा।
अम्मा ने अपने बदौलत एआईएडीएमके को मजबूती दी और तमिलनाडु को देश के विकसित राज्यों में लाकर खड़ा कर दिया। अम्मा ने कभी अपने आगे किसी की नहीं सुनी और न ही कभी तमिलनाडु के हित से समझौता किया। राज्य के हित के लिए वो केंद्र से लेकर पड़ोसी राज्यों से आर-पार की लड़ाई लड़ती रहीं। उन्होंने पीएम मोदी तक को नहीं बख्शा था, लेकिन अब एआईडीएमके की विडंबना ये है कि उसके पास दूसरी पंक्ति के उस तरह के नेता नहीं हैं जो डीएमके का सामना कर सके।
अम्मा के जाने के बाद सबसे बड़ी चुनौती एआईडीएमके को समेटे रखना है। पार्टी आगे कैसे बढ़ेगी ये देखना होगा, लेकिन अम्मा के जाने के बाद कांग्रेस और बीजेपी को भी थोड़ी राहत मिली है। अब जयललिता के नहीं रहने केंद्र सरकार के लिए तमिलनाडु की परियोजनाओं को क्लीयर करवाना आसान होगा। अम्मा की गैर मौजूदगी में केंद्र को अब कावेरी नदी के बंटवारे और मुल्ला पेरियार बांध के मामले में भी राहत मिलेगी।
बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी कुछ राहत मिलेगी। अम्मा हमेशा से कांग्रेस विरोधी रही थीं। जिसकी वजह से कांग्रेस डीएमके के अधिक करीब रही हैं। ऐसे में अब डीएमके के साथ मिलकर कांग्रेस तचमिलनाडु में मजबूती से उभरने की पूरी कोशिश करेगी।