कैसे हैदराबाद चुनाव ने TRS के लिए पैदा कर दी है आगे कुआं-पीछे खाई वाली स्थिति
नई दिल्ली- हैदराबाद निकाय चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने से तेलंगाना राष्ट्र समिति की प्रतिष्ठा भले ही बच गई हो, लेकिन हैदराबाद में अपना मेयर बनवाने के लिए केसी चंद्रशेखर राव के सामने आगे कुआं-पीछे खाई वाली स्थिति पैदा हो गई है। 150 वार्ड वाले ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में अपना मेयर बनवाने के लिए तेलंगाना की सत्ताधारी टीआरएस को कम से कम 65 वार्ड जीतना जरूरी था। लेकिन, उसे पिछली बार के 99 के मुकाबले सिर्फ 55 सीटें ही मिली हैं। जाहिर है कि मेयर को चुनने के लिए उसे किसी पार्टी का समर्थन चाहिए। भारतीय जनता पार्टी ने साफ मना कर दिया है। लेकिन, असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम से सीधे समर्थन मांगना उसके लिए सियासी तौर पर खतरे से खाली नहीं।
टीआरएस के पास मेयर बनाने लायक नहीं हैं वोट
ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में बीजेपी की शानदार जीत से लगे झटके से उबरने की कोशिश में लगी तेलंगाना राष्ट्र समिति का पहला लक्ष्य यह है कि किसी तरह से मेयर की कुर्सी पर अपने आदमी को बिठाया जाए। लेकिन, इसके लिए उसे ग्रेटर हैदराबाद निगम में कम से कम 102 वोट चाहिए। पार्टी के अपने सिर्फ 55 पार्षद चुनाव जीते हैं। 150 वार्ड वाले ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में 53 पदेन सदस्य भी होते हैं। यानि पदेन सदस्यों को मिलाकर निगम के सदस्यों की कुल संख्या 203 हो जाती है। इन पदेन सदस्यों में तेलंगाना विधानसभा और विधान परिषद के वो सदस्य होते हैं, जो हैदराबाद नगर निकाय क्षेत्र के वोटर होते हैं। टीआरएस के पास अभी ऐसे 38 अतिरक्त मेंबरों का वोट है। हाल में उसके जो सदस्य विधान पार्षद के लिए चुने गए हैं या मनोनित हुए हैं, उनको मिलाने पर यह संख्या 3 से 5 तक और बढ़ सकती है। लेकिन, इन सबको मिलाने के बाद भी अपना मेयर बनाने के लिए उसे दूसरी पार्टी के सहयोगी की दरकार होगी।
ओवैसी से सीधे समर्थन कैसे मांगें केसीआर ?
चुनाव से पहले तक टीआरएस लीडरशिप को भरोसा था कि कुछ वार्ड हाथ से निकल भी गए तो इन पदेन सदस्यों के समर्थन से वह मेयर पद पर अपने आदमी को बिठा ही देगी। लेकिन, जब वह 55 पर सिमट गई तब उसके पसीने छूटने शुरू हो गए। अब सत्ताधारी पार्टी के पास अपना मेयर बनवाने के लिए कम ही विकल्प बच जाते हैं। चाहे ऑल इंडिया-मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन से सीधा समर्थन ले या उससे परोक्ष समर्थन की मांग करे। वैसे, दोनों दलों का विधानसभा में भी संबंध विरोधी कम और दोस्ताना ज्यादा ही रहता आया है। लेकिन, एमआईएम से सीधा समर्थन मांगना टीआरएस के लिए राजनीतिक तौर पर जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए, उसके हक में यह होगा कि वह किसी तरह ओवैसी को मेयर चुनाव के दौरान वोटिंग से अनुपस्थित रहने के लिए राजी कर ले।
एमआईएम को लड़वाने का भी विकल्प
वैसे राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि टीआरएस एक और विकल्प अपना सकती है। वह एमआईएम को भी मेयर पोस्ट के लिए चुनाव लड़ने को कह सकती है, जिससे कि 48 पार्षदों वाली बीजेपी भी अपनी दावेदारी ठोकने पर मजबूर हो जाए। ऐसे त्रिकोणीय मुकाबले में टीआरएस को अपने उम्मीदवार को मेयर बनवाना ज्यादा आसान हो सकता है। बीजेपी अगर अनुपस्थित भी रहती है, तब भी टीआरएस का गेम सेट हो जाएगा।
टीआरएस के लिए भाजपा बन गई है बड़ी चुनौती
क्योंकि, जानकार मानते हैं कि ओवैसी के साथ किसी तरह से जाना टीआरएस को भविष्य में भाजपा से नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि, चुनाव प्रचार के दौरान भी भाजपा दोनों में अंदरूनी साठगांठ का दावा करती रही है। एक एक्सपर्ट मंचलला श्रीनिवास राव कहते हैं, 'एआईएमआईएम से समर्थन मांगने की टीआरएस की कोई भी कोशिश, चाहे सीधे या फिर वोटिंग से अनुपस्थिति रहने से यही मैसेज जाएगा कि अभी भी टीआरएस का उसके साथ मेलजोल है।' वैसे भी हैदराबाद में हुए लोकल पोल में अब बीजेपी टीआरएस से सिर्फ 0.25% वोट से ही पीछे रह गई है और वह डुब्बाका विधानसभा उपचुनाव भी पिछले महीने सत्ताधारी पार्टी को हराकर जीत चुकी है।
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