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Hindutva: आए उद्धव पहाड़ के नीचे, पूर्व CM फड़णवीस की तारीफ कर घर वापसी के दिए संकेत!

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बेंगलुरू। महाराष्ट्र में राजनीति एक बार फिर करवट लेने जा रही है। इसके साफ-साफ संकेत महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी मोर्चे की अगुवाई कर रहे मुख्यमंत्री उद्वव ठाकरे ने देने शुरू कर दिए हैं। उद्धव ने यह संकेत महा विकास अघाड़ी मोर्च के 100 दिन पूरे होने के बाद देने शुरू कर दिए हैं। मंत्रियों के साथ अयोध्या यात्रा की घोषणा करके उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति पर अपनी स्थिति स्पष्ट किया है।

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उद्धव ठाकरे के संकेतों का यह सिलसिला नागरिकता संशोधन विधेयक पर विधानसभा में प्रस्ताव नहीं लाने और महाराष्ट्र में पूर्व सहयोगी और बीजेपी नेता देवेंद्र फड़णवीस की तारीफ से समझा जा सकता है। उद्धव ठाकरे की घर वापसी का सबसे बड़ा कारण है महाराष्ट्र में हिंदुत्व राजनीति, जिसे उनके चचेरे भाई राज ठाकरे हथियाने की कोशिश में लगे हैं।

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गत रविवार को महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष का नेता चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की जमकर तारीफ की। सदन में बोलते हुए उद्धव ने कहा, मैंने देवेंद्र फडणवीस से बहुत चीजें सीखी हैं और मैं हमेशा उनका दोस्त रहूंगा। उद्धव यही नहीं रूके।

उन्होंने आगे कहा, मैं अभी भी हिंदुत्व की विचारधारा के साथ हूं और इसे कभी नहीं छोडूंगा। यह कहकर उद्धव ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सुप्रीमो राज ठाकरे को निशाने पर लिया और उन्हें बताने की कोशिश की कि वो मुख्यमंत्री रहें न रहें, हिंदुत्व की राजनीति को शिवसेना नहीं छोड़ने जा रही है।

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उद्धव ठाकरे को जैसे महा विकास अघाड़ी मोर्च में शामिल होने का पछतावा हो रहा था। सदन में देवेंद्र फडणवीस की तारीफ के कसीदे पढ़ते हुए उन्होंने ऐसी बात कह दी कि मोर्च में शामिल कांग्रेस और एनसीपी भी सकपका जाएंगे। उन्होंने महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ साझा किए 30 वर्षों के अनुभव को शेयर करते हुए कहा, महाराष्ट्र सरकार में बीजेपी की सहयोगी रही शिवसेना ने पिछले 5 साल में कभी भी सरकार को धोखा नहीं दिया है।

बकौल उद्धव, मैंने फडणवीस से बहुत कुछ सीखा है, मैं देवेंद्र फडणवीस को कभी विपक्ष को नेता नहीं कहूंगा, बल्कि एक पार्टी का बड़ा जिम्मेदार नेता कहूंगा। अगर आप हमारे लिए अच्छे होते तो यह सब (बीजेपी-शिवसेना में फूट) कभी नहीं होता। देवेंद्र फडणवीस की ओर इशारा करते हुए उद्धव ने आगे कहा, मैं एक भाग्यशाली मुख्यमंत्री हूं, क्योंकि जिन्होंने मेरा विरोध किया वो अब मेरे साथ बैठे हैं और जो मेरे साथ थे वे अब विपरीत दिशा में बैठे हैं। मैं अपनी किस्मत और जनता के आशीर्वाद से यहां पहुंचा हूं, मैंने कभी किसी को नहीं बताया कि मैं यहां आऊंगा लेकिन मैं आ गया।'

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उद्धव ठाकरे महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार में कितनी पीड़ा से गुजर रहे हैं इसकी झलक उनके देवेंद्र फडणवीस के पक्ष में दिए गए दलीलों से आसानी से समझा जा सकता है। महाराष्ट्र में परस्पर विरोधी दलों के साथ सामंजस्य और अंतर्विरोध की तल्खी उनके चेहरे पर स्पष्ट नज़र आ रही थी। महाराष्ट्र सरकार में एक रबड़ स्टैंप की भूमिका में बंधे उद्धव का बस चले को कल इस्तीफा देकर सरकार से बाहर हो जाएं, क्योंकि मौजूदा सरकार में शिवसेना सबसे अधिक घाटे में हैं।

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महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में सबसे फायदे में एनसीपी है, जिसके पास गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय दोनों हैं और उद्धव के सरकार चलाने की अनुभवहीनता के चलते एनसीपी चीफ शरद पवार महाराष्ट्र में उद्धव के विरूद्ध एक समानांतर सरकार चला रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार के सारे निर्णय उद्धव ठाकरे वाया शरद पवार के इशारे पर कर रहे हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री आवास भले ही वर्षा हो, लेकिन फैसले और मजमा शरद पवार के सिल्वर ओक आवास पर ही लगता है।

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उद्धव ठाकरे को सबसे अधिक चोट हिंदुत्व राजनीति पर चचेरे भाई राज ठाकरे के कब्जाने की कोशिश से हो रही है। शिवसेना के सेक्युलर राजनीति के झंडाबरदार कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति शून्यता की ओर बढ़ चली थी, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने भले ही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के चलते हिंदुत्व की राजनीति से किनारा किया हो, लेकिन हिंदू, हिंदुत्व और भगवा से उद्धव की राजनीति मजबूरी और दूरी ने राज ठाकरे को हिंदुत्व की राजनीति को कब्जाने का मौका दिया।

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गौरतलब है राज ठाकरे को शिवसेना संस्थापक बाला साहिब ठाकरे का वास्तविक उत्तराधिकारी माना जाता रहा है, लेकिन वर्ष 2004 में जब शिवसेना संस्थापक ने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकार घोषित किया तो राज ठाकरे शिवसेना को छोड़कर चले गए और वर्ष 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से एक अलग पार्टी बना ली, लेकिन हिंदुत्व की राजनीति से इतर राजनीति में उतरे राज ठाकरे को शुरूआती सफलता छोड़कर ऊंचाई नहीं। वर्ष 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव में मनसे को सिर्फ 1-1 सीट मिला था।

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यही कारण है कि राज ठाकरे ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सेक्युलर दलों के साथ सरकार में शामिल होने और हिंदुत्व की राजनीति से किनारा करने के बाद उभरे शून्यता को भरने के लिए हिंदुत्व की राजनीति में पुनः प्रवेश की योजना तैयार की और उसको अमलीजामा पहनाने के लिए राज ठाकरे ने मनसे की तीन रंगो वाले पार्टी के झंडे को पूरी तरह से भगवा रंग में रंग दिया। मनसे की राजनीति में भगवा रंग के शामिल होते ही उद्धव के कान खड़े हो गए और उन्हें आभास हो गया कि मौजूदा सरकार में माया मिली न राम वाली कहावत उनके साथ चरित्रार्थ होने जा रही है।

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महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी मोर्च सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे को कहावत 'माया मिली न राम' के साथ 'कर्म से गए तो गए धर्म से नहीं जाएंगे' श्लोक भी याद आ गए। निः संदेह कांग्रेस और एनसीपी जैसी परस्पर विरोधी विचारधारा वाली सरकार में उद्धव ठाकरे का दम घुट रहा है।

महाराष्ट्र में नई सरकार के शपथ ग्रहण से लेकर मंत्रालय बंटवारे को लेकर हुई खींचतान में शिवसेना को सबसे अधिक नुकसान हुआ है और अब जब पार्टी की मूल एजेंडा हिंदुत्व, जिसको ऊपर रखकर वर्ष 1966 में शिवसेना की स्थापना की गई थी, उस पर चोट पहुंची तो उद्धव ठाकरे बिलबिला उठे।

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यही वजह थी कि महाविकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के 100 दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अयोध्या जाने की घोषणा की थी। अयोध्या यात्रा के जरिए उद्धव ठाकरे चचेरे भाई राज ठाकरे और पुरानी सहयोगी बीजेपी को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना हिंदुत्व को नहीं छोड़ने जा रही है।

लेकिन उद्धव ठाकरे की यह कोशिश बेमानी तक साबित होती रहेगी जब तक कांग्रेस और एनसीपी दलों के साथ सरकार में शामिल रहेंगे, क्योंकि उद्धव ठाकरे अयोध्या यात्रा राम के अस्तित्व से जुड़ा हुआ, लेकिन कांग्रेस तो भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर चुकी है।

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हालांकि महाराष्ट्र सरकार में परस्पर विरोधी दल के साथ शामिल होने के बाद से ही उद्धव ठाकरे ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से इतर एक अलग लाइन पकड़ने की कोशिश की है। इसकी तस्दीक नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में लोकसभा में वोट करना और राज्यसभा में वॉक आउट से समझा जा सकता है।

यही नहीं, जब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब रामलीला मैदान में आयोजत भारत बचाओ रैली में कहा, 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं है, जो माफी मांगूगा' राहुल गांधी के इस बयान पर भी शिवसेना ने कांग्रेस नेता के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की थी।

अभी चार राज्यों द्वारा सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने के बाद महाराष्ट्र सरकार पर भी दवाब था कि सीएए के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा में ऐसा एक प्रस्ताव नहीं लाया जाना चाहिए, लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस पर सहमति नहीं दी। इस उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व राजनीति पर अपना कब्जा दिखाने और हिंदुत्व राजनीति में दोबारा लौटने की संकेत की तरह देखा जाना चाहिए। महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार भी महाराष्ट्र विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव नहीं लाने की पुष्टि कर चुके हैं।

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उल्लेखनीय है केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में बनाए गए नागरिकता संसोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ अब तक कुल राज्यों के विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया गया है। इनमें केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल का नाम शामिल है। कयास लगाए जा रहे थे कि महाराष्ट्र विधानसभा में भी इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया जाएगा।

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हालांकि उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार ने इस मामले पर महाराष्ट्र सरकार की स्थिति स्पष्ट करने के बाद गठबंधन में दरार पड़ना तय माना जा रहा है। अजित पवार के बयान के बाद यह तो स्पष्ट हो गया कि महाराष्ट्र विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पेश नहीं किया जाएगा, लेकिन इससे सरकार पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं।

यह भी पढ़ें- राज ठाकरे के भगवा रंग- ढंग देख घबराए उद्धव, कभी भी यू टर्न मार सकती है शिवसेना?

सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने की इच्छुक नहीं हैं उद्धव

सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने की इच्छुक नहीं हैं उद्धव

पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार और केरल की पिन्राई विजयन सरकार, राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार और पश्चिम बंगाल क ममता बनर्जी सरकार समेत कुल चार राज्य सरकारें अभी विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आ चुकी है, लेकिन उद्धव एक रणनीति के तलत ऐसा करना नहीं चाहते हैं। इसकी पुष्टि डिप्टी सीएम अजीत पवार भी एक बयान में कर चुके हैं। हालांकि केंद्रीय सूची से संबद्ध सीएए के खिलाफ राज्यों को प्रस्ताव लाने का अधिकार ही नहीं है वरना संविधान का उल्लंघन माना जाएगा और ऐसी सरकार बर्खास्त भी की जा सकती हैं।

सरकार में एनसीपी चीफ शरद पवार के अंकुश से बेचैन हैं उद्धव

सरकार में एनसीपी चीफ शरद पवार के अंकुश से बेचैन हैं उद्धव

महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में भले ही उद्धव ठाकरे मुखिया हैं, लेकिन गठबंधन सरकार पर एनसीपी चीफ शरद पवार पर स्वैच्छिक अंकुश उन्हें बेचैन कर रहा है। स्वैच्छिक अंकुश इसलिए क्योंकि सरकार चलाने का पूर्व अनुभव होने के चलते उद्धव को शरद पवार के इशारों पर सरकार चलाना पड़ रहा है। उद्धव चाहे-अनचाहे इसलिए शरद पवार को अपना गुरू बनाना पड़ा है, जिससे कई जगहों पर हुए नफा-नुकसान का पता उद्धव को बाद में पता चला है। महाराष्ट्र में विभाग बंटवारे के दौरान उद्धव ठाकरे की स्थिति को अच्छी तरह से समझा जा सकता है।

सरकार में महत्वपूर्ण गृह विभाग और वित्त विभाग से हाथ धोना पड़ा

सरकार में महत्वपूर्ण गृह विभाग और वित्त विभाग से हाथ धोना पड़ा

महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार के गठन के करीब दो महीनों बाद शपथ ले चुके और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद लेने वाले मंत्रियों के बीच विभागों को बंटवारा संपन्न हो सका था। विभागों के बंटवारे में पेंच गृह मंत्रालय और राजस्व मंत्रालय को लेकर फंसा हुआ था। उद्धव ठाकरे अपने साथ गृह मंत्रालय को रखना चाहते थे, लेकिन पिछली दो सरकारों में गृह मंत्रालय एनसीपी के पास था, तो उसने उस पर दावा ठोंक दिया और अंततः उद्धव को समझौता करना पड़ा और शिवसेना के हाथ से महत्वपूर्ण गृह विभाग और राजस्व विभाग दोनों चला गया। अभी कांग्रेस शिवसेना से कृषि विभाग भी छीनने की जद्दोजहद में है, जो सीधे-सीधे किसानों और किसान राजनीति से जुड़ा हुआ है।

अकेले NCP ने गृह, वित्त, जल संसाधन मंत्रालय पर किया कब्जा

अकेले NCP ने गृह, वित्त, जल संसाधन मंत्रालय पर किया कब्जा

महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में शामिल दोनों दल एनसीपी और कांग्रेस के साथ गहन चर्चा और विचार-विमर्श के बाद उद्धव ठाकरे ने पिछले माह कैबिनेट विस्तार किया था, जिससे पहले कैबिनेट पदों और मंत्रालयों को लेकर तीनों पार्टियों के बीच तनाव था। मंत्रिमंडल विस्तार में NCP स्पष्ट रूप से विजेता बनकर उभरी थी, क्योंकि उद्धव ठाकरे को अह्म और टकरावों से उभरे गठबंधन की मजूबरी के चलते एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृह विभाग, वित्त मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय देना पड़ा था। उद्धव ठाकरे की असहजता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंत्रियों के शपथ और उनके विभागों के बंटवारे में एक माह से अधिक समय लग चुका था।

हिंदुत्व राजनीति पर राज ठाकरे के बढ़ते कदम से घबराए उद्धव

हिंदुत्व राजनीति पर राज ठाकरे के बढ़ते कदम से घबराए उद्धव

उद्धव ठाकरे को सबसे अधिक चोट हिंदुत्व राजनीति पर चचेरे भाई राज ठाकरे के कब्जाने की कोशिश से हो रही है। शिवसेना के सेक्युलर राजनीति के झंडाबरदार कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति शून्यता की ओर बढ़ चली थी, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने भले ही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के चलते हिंदुत्व की राजनीति से किनारा किया हो, लेकिन हिंदू, हिंदुत्व और भगवा से उद्धव की राजनीति मजबूरी और दूरी ने राज ठाकरे को हिंदुत्व की राजनीति को कब्जाने का मौका दिया।

मनसे की तीन रंगों वाले पार्टी के झंडे को पूरी तरह से भगवा में बदल दिया

मनसे की तीन रंगों वाले पार्टी के झंडे को पूरी तरह से भगवा में बदल दिया

राज ठाकरे ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सेक्युलर दलों के साथ सरकार में शामिल होने और हिंदुत्व की राजनीति से किनारा करने के बाद उभरे शून्यता को भरने के लिए हिंदुत्व की राजनीति में पुनः प्रवेश की योजना तैयार की और उसको अमलीजामा पहनाने के लिए राज ठाकरे ने मनसे की तीन रंगो वाले पार्टी के झंडे को पूरी तरह से भगवा रंग में रंग दिया। मनसे की राजनीति में भगवा रंग के शामिल होते ही उद्धव के कान खड़े हो गए और उन्हें आभास हो गया कि मौजूदा सरकार में माया मिली न राम वाली कहावत उनके साथ चरित्रार्थ होने जा रही है।

संस्थापक बाला साहिब ठाकरे के उत्तराधिकारी माने जाते हैं राज ठाकरे

संस्थापक बाला साहिब ठाकरे के उत्तराधिकारी माने जाते हैं राज ठाकरे

राज ठाकरे को शिवसेना संस्थापक बाला साहिब ठाकरे का वास्तविक उत्तराधिकारी माना जाता रहा है, लेकिन वर्ष 2004 में जब शिवसेना संस्थापक ने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकार घोषित किया तो राज ठाकरे शिवसेना को छोड़कर चले गए और वर्ष 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से एक अलग पार्टी बना ली, लेकिन हिंदुत्व की राजनीति से इतर राजनीति में उतरे राज ठाकरे को शुरूआती सफलता छोड़कर ऊंचाई नहीं। वर्ष 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव में मनसे को सिर्फ 1-1 सीट मिला था।

किसी भी कीमत पर हिंदुत्व की राजनीति से हाथ नहीं धोना चाहते हैं उद्धव

किसी भी कीमत पर हिंदुत्व की राजनीति से हाथ नहीं धोना चाहते हैं उद्धव

महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी मोर्च सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे को कहावत 'माया मिली न राम' के साथ 'कर्म से गए तो गए धर्म से नहीं जाएंगे' श्लोक भी याद आ गए। निः संदेह कांग्रेस और एनसीपी जैसी परस्पर विरोधी विचारधारा वाली सरकार में उद्धव ठाकरे का दम घुट रहा है। महाराष्ट्र में नई सरकार के शपथ ग्रहण से लेकर मंत्रालय बंटवारे को लेकर हुई खींचतान में शिवसेना को सबसे अधिक नुकसान हुआ है और अब जब पार्टी की मूल एजेंडा हिंदुत्व, जिसको ऊपर रखकर वर्ष 1966 में शिवसेना की स्थापना की गई थी, उस पर चोट पहुंची तो उद्धव ठाकरे बिलबिला उठे।

अयोध्या जाने की घोषणा कर उद्धव ने हिंदुत्व राजनीति में वापसी के दिए संकेत

अयोध्या जाने की घोषणा कर उद्धव ने हिंदुत्व राजनीति में वापसी के दिए संकेत

महाविकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के 100 दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अयोध्या जाने की घोषणा की थी। अयोध्या यात्रा के जरिए उद्धव ठाकरे चचेरे भाई राज ठाकरे और पुरानी सहयोगी बीजेपी को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना हिंदुत्व को नहीं छोड़ने जा रही है, लेकिन उद्धव ठाकरे की यह कोशिश बेमानी तक साबित होती रहेगी जब तक कांग्रेस और एनसीपी दलों के साथ सरकार में शामिल रहेंगे, क्योंकि उद्धव ठाकरे अयोध्या यात्रा राम के अस्तित्व से जुड़ा हुआ, लेकिन कांग्रेस तो भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर चुकी है।

उद्धव ठाकरे की हालत सांप और छछूंदर जैसी हो गई है

उद्धव ठाकरे की हालत सांप और छछूंदर जैसी हो गई है

महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की हालत सांप और छछूंदर जैसी हो गई है, क्योकि न वो महा विकास अघाड़ी मोर्च सरकार का नेतृत्व कर पा रहे हैं और न ही सरकार से अलग हो पा रहे हैं। इन्हीं ऊहापोहों के मद्देनजर ही कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद यशवंत राव गडाख ने कहा कि अगर शिवसेना-एनसीपी-कॉन्ग्रेस गठबंधन के नेता लड़ते रहे तो उद्धव मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे। यशवंतराव ने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी के नेतागण बंगलों और विभागों के आवंटन में लगातार बाधा डाल रहे हैं। ख़ुद शिवसेना नेताओं ने भी स्वीकारा है कि गठबंधन में मंत्रियों को विभाग आवंटन के मुद्दे पर खींचतान चल रही थी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तल्ख टिप्पणी करने से नहीं चुकी शिवसेना

कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तल्ख टिप्पणी करने से नहीं चुकी शिवसेना

महाराष्ट्र सरकार में परस्पर विरोधी दल के साथ शामिल होने के बाद से ही उद्धव ठाकरे ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से इतर एक अलग लाइन पकड़ने की कोशिश की है। इसकी तस्दीक नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में लोकसभा में वोट करना और राज्यसभा में वॉक आउट से समझा जा सकता है। यही नहीं, जब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब रामलीला मैदान में आयोजत भारत बचाओ रैली में कहा, 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं है, जो माफी मांगूगा' राहुल गांधी के इस बयान पर भी शिवसेना ने कांग्रेस नेता के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की थी।

उद्धव ठाकरे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की जमकर तारीफ

उद्धव ठाकरे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की जमकर तारीफ

महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष का नेता चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की जमकर तारीफ की। सदन में बोलते हुए उद्धव ने कहा, मैंने देवेंद्र फडणवीस से बहुत चीजें सीखी हैं और मैं हमेशा उनका दोस्त रहूंगा। उद्धव यही नहीं रूके, उन्होंने आगे कहा, मैं अभी भी हिंदुत्व की विचारधारा के साथ हूं और इसे कभी नहीं छोडूंगा। यह कहकर उद्धव ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सुप्रीमो राज ठाकरे को निशाने पर लिया और उन्हें बताने की कोशिश की कि वो मुख्यमंत्री रहें न रहें, हिंदुत्व की राजनीति को शिवसेना नहीं छोड़ने जा रही है।

 बीजेपी-शिवसेना में फूट पर पहली बार उद्धव ठाकरे का छलका दर्द

बीजेपी-शिवसेना में फूट पर पहली बार उद्धव ठाकरे का छलका दर्द

CM उद्धव ने बीजेपी-शिवसेना में फूट का दर्द साझा करते हुए कहा कि उन्होंने फडणवीस से बहुत कुछ सीखा है, वो देवेंद्र फडणवीस को कभी विपक्ष को नेता नहीं कहूंगा, बल्कि एक पार्टी का बड़ा जिम्मेदार नेता कहूंगा। अगर आप हमारे लिए अच्छे होते तो यह सब (बीजेपी-शिवसेना में फूट) कभी नहीं होता। देवेंद्र फडणवीस की ओर इशारा करते हुए उद्धव ने आगे कहा, मैं एक भाग्यशाली मुख्यमंत्री हूं, क्योंकि जिन्होंने मेरा विरोध किया वो अब मेरे साथ बैठे हैं और जो मेरे साथ थे वे अब विपरीत दिशा में बैठे हैं। मैं अपनी किस्मत और जनता के आशीर्वाद से यहां पहुंचा हूं, मैंने कभी किसी को नहीं बताया कि मैं यहां आऊंगा लेकिन मैं आ गया।'

Comments
English summary
This sequence of Uddhav Thackeray's gestures can be understood by not bringing a resolution in the Assembly on the Citizenship Amendment Bill and praising Devendra Fadnavis, a former ally and BJP leader in the Maharashtra Legislative Assembly. However, the biggest reason for Uddhav Thackeray's return home is Hindutva politics in Maharashtra, which his cousin Raj Thackeray is trying to grab.
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