Dev Deepawali 2022: धूम-धाम से मनाई गई देव-दीपावली, काशी-मथुरा में जलाए गए लाखों दीये
Dev Deepawali 2022: धूम-धाम से मनाई गई देव-दीपावली, काशी-मथुरा में जलाए गए लाखों दीये
Dev Deepawali 2022: पूरे देश में देव-दीपावली धूमधाम से मनाई गई। देशभर के सारे गंगा घाटों को दीपों से जगमग रोशन किया गया। गंगा घाटों के अलावा भी चारों तरफ देव दपावली की रौनक देखने को मिली। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में देव दीपावली की धूम सबसे अधिक देखने को मिली। सामने तस्वीरें किसी का भी मन मोह लेंगी। काशी के गंगा घाट को दस लाख दीपों से रोशन किया गया। कुल 21 लाख दीप प्रज्ज्वलित किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा में भी देव दीपावली मनाई गई, श्रद्धालुओं ने 5 लाख दीपक जलाए। उत्तराखंड के हरिद्वार की हर की पौड़ी परभी देव दीपावली श्रद्धालु ने मनाई।
इस महापर्व की भव्यता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि ट्विटर पर "काशी की देव दीपावली" हैशटैग #KashiKiDevDeepawali कई घंटों तक टॉप ट्रेंड कर रहा था। इस हैशटैग के साथ 50 हजार से ज्यादा रीट्वीट किया गया।
Uttar Pradesh | Varanasi celebrates Dev Deepawali; Visuals from the Ganga Ghat pic.twitter.com/nV1VPxUsJ6
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) November 7, 2022
वाराणसी के पंचगंगा घाट पर श्री मठपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी जी महाराज के देखरेख में देव दीपावली का त्यौहार मनाया गया। इस दौरान मां गंगा की आरती कई गई। पटना के गंगा घाटों को हजारों दीये से रौशन किया गया।
Mathura, UP | Devotees light diyas to celebrate Dev Deepawali; Visuals from the Mathura Ghat pic.twitter.com/uTFZFB8mEM
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) November 7, 2022
जानिए देव दीपावली का इतिहास और महत्व
देव दीपावली का शुभ पर्व सदियों से वाराणसी में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह उत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होता है और पांचवें दिन खत्म होता है, जो कार्तिक पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा की रात) है। यह दिन त्रिपुरासुर राक्षस पर भगवान शिव की जीत की याद दिलाता है। इसलिए, उत्सव को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस तारकासुर के तीन पुत्र थे, तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली - जिन्हें त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता है। अपनी कठोर तपस्या से, त्रिपुरासुर ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और अमरता का वरदान मांगा। हालांकि, भगवान ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि उन्हें केवल एक तीर से मारा जा सकता है। आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, त्रिपुरासुर ने विश्न पर कहर बरपाया और सामूहिक नरसंहार और विनाश किया।
उन्हें हराने के लिए, भगवान शिव ने त्रिपुरारी या त्रिपुरांतक का अवतार लिया और उन सभी को एक तीर से मार डाला। इसी दिन को देव दीपावली के रूप में जाना जाता है क्योंकि भगवान शिव द्वारा राक्षस त्रिपुरासुर को हराने के बाद देवताओं ने इस खुशी को दीये जलाकर जाहिर किए थे। देव दीपावली पर, हिंदू गंगा नदी के पवित्र जल में स्नान करते हैं और शाम को दीपक जलाते हैं और भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं।