'मोदी नाम केवलम्' से विधानसभा चुनावों में भाजपा की हो रही है दुर्गति?
नई
दिल्ली।
नरेन्द्र
मोदी
के
नाम
पर
भाजपा
विधानसभा
चुनाव
नहीं
जीत
सकती।
झारखंड
के
बाद
अब
दिल्ली
चुनाव
के
नतीजे
इस
बात
की
तस्दीक
कर
रहे
हैं।
देश
की
प्रबुद्ध
जनता
ने
यह
स्पष्ट
कर
दिया
है
कि
लोकसभा
और
विधानसभा
चुनाव
के
लिए
उनकी
अलग-अलग
प्राथमिकताएं
हैं।
जनता-जनार्दन
ने
प्रधानमंत्री
के
रूप
में
नरेन्द्र
मोदी
को
चुना
तो
राज्यों
में
अपनी
पसंद
के
हिसाब
से
जनादेश
दिया।
नरेन्द्र
मोदी
को
पीएम
बनाने
के
लिए
दिल्ली
की
जनता
ने
करिश्माई
केजरीवाल
को
हीरो
से
जीरो
बना
दिया
था।
लेकिन
जब
विधानसभा
के
चुनाव
हुए
तो
उसी
केजरीवाल
को
कोहिनूर
बना
दिया।
दिल्ली
की
जनता
को
मुख्यमंत्री
के
रूप
में
अरविंद
केजरीवाल
ही
चाहिए
थे।
पीएम
और
सीएम
के
अलग-अलग
काम
हैं,
तो
अलग-अलग
इनाम
भी
हैं।
केन्द्र
और
राज्यों
की
राजनीति
में
घालमेल
नहीं
किया
जा
सकता।
नरेन्द्र
मोदी
और
अमित
शाह
राज्यों
की
राजनीतिक
हकीकत
समझने
में
नाकाम
रहे
हैं।
केजरीवाल
की
राजनीति
का
भाजपा
के
पास
कोई
तोड़
नहीं
था।
'फ्री सर्विस’ का जलवा
दिल्ली की टिपटॉप वाली जिंदगी। जितना भी कमाओ, कम ही है। अगर ऐसे में मुफ्त बिजली, पानी, इलाज और पढ़ाई की सुविधा मिल जाए तो यह किसी वरदान से कम नहीं। जब केजरीवाल इतनी सुविधाएं दे रहे हैं तो फिर किसी दूसरे की तरफ देखने की जरूरत क्या है। नरेन्द्र मोदी के लिए इन सुविधाओं को भला क्यों छोड़ें ? वे जहां है, वहां ठीक हैं। केजरीवाल ने वो दिया जो आज तक किसी मुख्यमंत्री ने सोचा भी नहीं था। ऐसे मुख्य़मंत्री को सिर आंखों पर न बैठाएं तो क्या करें ? केजरीवाल का फंडा, जनता का पैसा है-जनता पर लुटा रहा हूं, लोगों के दिलोदिमाग पर छा गया। क्या अमीर, क्या गरीब सब केजरीवाल के दीवाने हो गये। इस दीवानगी को मोदी-शाह की जोड़ी न कम कर सकती थी, न कम कर पायी। अन्ना आंदोलन से निकले केजरीवाल अब पहले की तरह नहीं रहे। उनकी आलोचना की जा सकती है। लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा सकता कि केजरीवाल लोगों के दिलों में रचे-बसे हैं। ये मुमकिन ही नहीं था कि कोई केजरीवाल को लोगों के दिलों से उतार दे।
कमजोर सूबेदार
केजरीवाल को उनके हथियार से ही हराया जा सकता था। काम के बदले सुपर काम। लेकिन भाजपा सीएए, एनआरसी और हिन्दू-मुसलमान की राजनीति करती रही। 'फ्री सेवा' का लाभ ले रही जनता ने उन मुद्दों की तरफ देखना भी मंजूर न किया। राष्ट्रवाद पर आधारित भाजपा की आक्रामक रणनीति बालू की दीवार की तरह भरभरा गयी। सारी राजनीति मोदी-शाह के ईंद-गिर्द घूमती रही। दिल्ली में कोई ऐसा कोई सूबेदार ही नहीं था जो केजरीवाल को टक्कर दे सके। चर्चित नेता और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा अक्सर कहते रहे हैं- भाजपा वन मैन शो और टू मैन आर्मी है। मोदी-शाह की जोड़ी जैसे-जैसे मजबूत होती गयी भाजपा के अन्य मजबूत नेता किनारे लगते गये। पार्टी में दूसरी पंक्ति का नेतृत्व महत्वहीन और कमजोर होता गया। इसकी वजह से कई राज्यों में भाजपा के मजबूत सूबेदार तैयार नहीं हो पाये। पार्टी की राजनीति मोदी नाम केवलम् पर टिक गयी। मनोज तिवारी दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष जरूर थे लेकिन पार्टी उनकी स्थिति स्पष्ट करने में नाकाम रही। भाजपा यह नहीं बता पायी कि अगर उसे जीत मिलती है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? जब कि दूसरी तरफ केजरीवाल जैसे जांचे-परखे नेता का विकल्प मौजूद था।
भाजपा ने गंवा दिया मौका
2017 में दिल्ली नगर निगम का चुनाव हुआ था। अरविंद केजरीवाल प्रचंड बहुमत (67) के साथ मुख्यमंत्री थे। इस चुनाव से कुछ पहले मनोज तिवारी दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष बने थे। फ्री सेवा का सपना सकार करने वाले केजरीवाल की निगम चुनाव में करारी हार हुई थी। केजरीवाल के लिए ये बहुत बड़ा झटका था। इस जीत से मनोज तिवारी का कद बढ़ा था। यही वो मौका था जब भाजपा केजरीवाल पर बढ़त बना सकती थी। नगर निगम के जरिये दिल्ली में बेहतर स्थानीय प्रशासन देकर भाजपा लोगों के दिलों तक पहुंच सकती थी। लेकिन अरविंद केजरीवाल के सधे हुए फैसलों ने भाजपा के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी। मनोज तिवारी को लेकर भी जनता में भ्रम बना रहा। वे कच्ची कालोनी के लोगों के बीच सक्रिय थे। पूर्वांचली लोगों में पैठ भी थी। लेकिन मोदी-शाह ने मनोज तिवारी पर भरोसा ही नहीं जताया। दिल्ली भाजपा में कलह के डर से शीर्ष नेतृत्व खामोश रहा। अगर उसी समय मनोज तिवारी को भावी सीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया गया होता तो शायद भाजपा की ऐसी दुर्गति न होती। विकल्प नहीं देने की गलती भाजपा को भारी पड़ गयी।