Coronavirus vaccine:69% भारतीयों में वैक्सीन लगवाने को लेकर है हिचकिचाहट, सर्वे में सामने आई वजह
Coronavirus vaccine:ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने पिछले हफ्ते ही भारत में बनी दो वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी है। सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड (Serum Institute of India's Covishield) और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन (Bharat Biotech's Covaxin)। उम्मीद थी कि पिछले एक साल से कोरोना वायरस की मार झेल रही देश की जनता इस घोषणा को हाथों-हाथ लेगी। लेकिन, हाल ही में कराया गया एक सर्वे इन उम्मीदों पर पानी फेरता नजर आ रहा है। यह सर्वे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लोकलसर्किल्स (LocalCircles) ने किया है, जिसका दावा है कि 69 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस की वैक्सीन लगवाने की कोई जल्दबाजी नहीं दिख रही है।
69 फीसदी भारतीयों में वैक्सीन लगाने की जल्दबाजी नहीं- सर्वे
लोकलसर्किल्स (LocalCircles) के सर्वे पर यकीन करें तो सिर्फ 26 फीसदी भारतीय ही ऐसे उसे मिले जो इस बात के लिए तैयार हैं कि वैक्सीन उपलब्ध होने के साथ ही वह इसे लगवाना चाहेंगे। सर्वे के लिए लोगों से यह सवाल पूछा गया था- 'भारत में कोविड-19 की पहली वैक्सीन को मंजूरी मिल गई है। वैक्सीन लगवाने को लेकर आपकी की कोशिश क्या होगी?' इस सवाल का कुल 8,723 लोगों ने जवाब दिया है, जिसमें दावे के मुताबिक 69 फीसदी लोगों ने कहा है कि उन्हें वैक्सीन लगवाने की कोई जल्दबाजी नहीं है। वैसे इस सर्वे में 5 फीसदी ऐसे लोग भी शामिल हुए जो या तो हेल्थ वर्कर थे या फिर फ्रंटलाइन वर्कर और उन्होंने कहा कि वो प्राथमिकता के आधार पर सरकारी चैनलों के जरिए वैक्सीन लगवाएंगे।
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जनवरी में ही करवाया गया है ताजा सर्वे
दावे के मुताबिक अक्टूबर के सर्वे में 61 फीसदी भारतीयों ने कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने को लेकर हिचकिचाहट दिखाई थी। जब फाइजर (Pfizer) और मॉडर्ना (Moderna) की वैक्सीन सफल होने की जानकारी आई तो नवंबर के सर्वे में भारतीयों की यह हिचकिचाहट घटकर 59 फीसदी रह गई थी। ऐसे में ऑक्सफॉर्ड-एस्ट्राजेनिका (Oxford-AstraZeneca)की सीरम इंस्टीट्यूट में बनी वैक्सीन और भारत बायोटेक की देसी वैक्सीन आने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया उम्मीदों से उलट मानी जा रही है। पिछले साल अक्टूबर से ही लोकलसर्किल्स (LocalCircles) वैक्सीन को लेकर नागरिकों की प्रतिक्रियाएं ले रहा है और यह डेटा जुटा रहा कि इसे लगवाने की उनकी इच्छा बढ़ती, घटती है या फिर वही रहती है। ताजा सर्वे जनवरी में ही करवाया गया है।
हेल्थकेयर वर्कर्स में भी हिचकिचाहट का दावा किया था
दिसंबर में लोकलसर्किल्स (LocalCircles) के एक मेंबर डॉक्टर अब्दुल गफूर (Dr Abdul Ghafur) ने अपना एक स्वतंत्र सर्वे किया था, जिसके आधार पर दावा किया गया था कि अधिकतर यानि 55 फीसदी हेल्थकेयर प्रोफेशनलों में भी तुरंत कोविड वैक्सीन लगवाने को लेकर हिचकिचाहट नजर आ रही थी। अधिकतर हेल्थकेयर प्रोफेशनल इसके साइड-इफेक्ट या इसके प्रभाव के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं होने की वजह से घबरा रहे थे। इनमें से 60 फीसदी लोग कोविड की ड्यूटी से जुड़े हुए थे।
कोरोना वैक्सीन लगवाने को लेकर लोगों में क्यों है हिचकिचाहट?
भारत में ज्यादातर लोग वैक्सीन को लेकर यह मानते हैं कि उनके पास इसके साइड-इफेक्ट और ट्रायल के दौरान यह कितना कारगर साबित हुआ, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं है। यही वजह है कि वह फिलहाल वैक्सीन लगवाने से हिचकिचा रहे हैं। कुछ एक्सपर्ट इसकी मंजूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी का भी आरोप लगाते हैं। मसलन, वह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जब डीजीसीआई (DGCI) ने 3 जनवरी को दो वैक्सीन की आपात मंजूरी देने की घोषणा की तो मीडिया के सवालों का जवाब दिए बिना क्यों चले गए। इससे पहले सीरम इंस्टीट्यूट की ट्रायल के दौरान भी एक भागीदार के दावों की वजह से काफी बवाल हुआ था। हो सकता है कि इन सब वजहों से लोगों के मन में अभी कुछ आशंकाएं बरकरार हों। जबकि, देश के जाने-माने स्वास्थ्य विशेषज्ञ इन आशंकाओं को खारिज कर चुके हैं।
सिर्फ 26 फीसदी परिजन बच्चों को टीका लगवाने को तैयार-सर्वे
जानकारी के मुताबिक भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 12 साल से ऊपर के बच्चों को भी वैक्सीन लगाने की मंजूरी मिली है। लेकिन, जब लोकलसर्किल्स (LocalCircles) ने परिजनों से पूछा कि अगर स्कूलों में बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध करवाई जाती है तो क्या वह अपने बच्चों को यह टीका लगवाएंगे। इसके जवाब में सिर्फ 26 फीसदी परिजनों ने हामी भरी। इनके अलावा 56 फीसदी परिजन ऐसे भी थे, जिन्होंने इसके लिए 3 महीने या उससे भी ज्यादा इंतजार करने की बात कही। इस सवाल के 10,468 जवाब आए। वैसे 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में वह भी ऑनलाइन सर्वे के आधार इस तरह के निष्कर्ष पर भी सवाल उठ सकते हैं। क्योंकि, ऐसे सर्वे के लिए यह सैंपल साइज बहुत ही छोटा है, जिस मामले से हर भारतीय का भविष्य जुड़ा हुआ है।
61 फीसदी लोगों को फाइजर-मॉर्डना का इंतजार-सर्वे
लोकलसर्किल्स ने यह भी दावा किया है कि उसके सर्वे में 61 फीसदी नागरिक ऐसे मिले हैं, जो चाहते हैं कि केंद्र सरकार फाइजर और मॉडर्ना का ट्रायल भारत में भी करवाए ताकि उनके लिए वह भी बाजारों में उपलब्ध हो सके। क्योंकि, इनके 95 फीसदी तक कामयाबी के दावे किए गए हैं। लेकिन, भारत के लिए मुश्किल ये है कि फाइजर को स्टोर करने के लिए -70 डिग्री का तापमान चाहिए, जबकि मॉडर्ना के लिए -20 डिग्री तापमान की जरूरत है। इनके मुकाबले भारत में तैयार हुई वैक्सीन बहुत ही आसानी से स्टोर किए जा सकते हैं। मसलन कोविशील्ड को सामान्य फ्रीज के तापमान यानि 2 डिग्री से 8 डिग्री तक के बीच स्टोर किया जा सकता है और वह भी कम से कम 6 महीनों तक। कोविशील्ड को अगर एक महीने के अंतराल पर किसी प्रतिभागी को दो पूरा डोज दिया गया तो उसका प्रभाव 62 फीसदी पाया गया, लेकिन जब प्रतिभागी को पहले हल्का डोज मिला और दोबारा फुल डोज दिया गया तो उसका प्रभाव भी 90 फीसदी तक पाया गया है। यही नहीं, अमेरिका में फाइजर वैक्सीन लगने के बाद भी नर्स के कोरोना पोजिटिव हो जाने की बात सामने आ चुकी है। अलबत्ता बाद में पता चला कि वैक्सीन अपना असर दिखाने में थोड़ा वक्त लेता है।