ठसाठस विमान, फिर एयरलाइंस को घाटा कैसे?
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइंस में से एक जेट एयरवेज़ के शेयर में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है. इस साल शेयर 60 फ़ीसदी से अधिक टूट चुका है, वो भी तब जब एयरलाइंस एविएशन मार्केट में अपना हिस्सा बरकरार रखने के लिए अरबों रुपए ख़र्च कर रही है.
इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड यानी इंडिगो का शेयर भी लगातार पिट रहा है, जनवरी में जहाँ इसके एक शेयर की कीमत 1500 रुपए थी, वहीं अगस्त तक इसमें तकरीबन 450 रुपए से अधिक की गिरावट आ चुकी है.
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइंस में से एक जेट एयरवेज़ के शेयर में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है. इस साल शेयर 60 फ़ीसदी से अधिक टूट चुका है, वो भी तब जब एयरलाइंस एविएशन मार्केट में अपना हिस्सा बरकरार रखने के लिए अरबों रुपए ख़र्च कर रही है.
इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड यानी इंडिगो का शेयर भी लगातार पिट रहा है, जनवरी में जहाँ इसके एक शेयर की कीमत 1500 रुपए थी, वहीं अगस्त तक इसमें तकरीबन 450 रुपए से अधिक की गिरावट आ चुकी है. स्पाइसजेट का शेयर भी छह महीनों में 30 फ़ीसदी की गिरावट देख चुका है.
हाल ही में मीडिया में आई कुछ रिपोर्ट्स पर यकीन करें तो हालात बेहद गंभीर नज़र आते हैं. खबरों में कहा गया है कि जेट एयरवेज़ पैसों की तंगी से जूझ रही है और कंपनी स्टाफ़ की सेलरी में कटौती के बारे में सोच रही है.
हालाँकि जेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विनय दुबे ने इन ख़बरों को निराधार और महज़ अफवाह बताया.
कंपनी क्या कहती है?
बीबीसी को भेजे एक बयान में कंपनी ने माना है कि कंपनी अपना मुनाफ़ा बढ़ाने की और ख़र्च में कटौती करने की कोशिश कर रही है. कंपनी सेल्स और डिस्ट्रिब्यूशन, कर्मचारियों की तनख्वाह, रखरखाव और फ्लीट सिम्प्लीकेशन में होने वाले ख़र्च को कम करने की कोशिश में है.
कंपनी का कहना है कि इस मामले में कंपनी अपने कर्मचारियों से पूरे समर्थन की अपेक्षा करती है, उनसे बातचीत कर रही है और देश की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा कर रही है.
लेकिन ऐसा क्यों है कि जब भारत का उड्डयन क्षेत्र अपने स्वर्णिम काल में चल रहा है, एयरलाइंस तब भी घाटे का रोना रो रही हैं.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2018 के शुरुआती छह महीनों में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या रिकॉर्ड 6 करोड़ 80 लाख रही, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 22 फ़ीसदी अधिक है.
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के आंकड़े भी गवाही देते हैं कि भारत का डोमेस्टिक पैसेंजर ट्रैफिक बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है.
इस साल मई में घरेलू पैसेंजरों की संख्या पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 17 फ़ीसदी अधिक थी, जबकि चीन में ग्रोथ का ये आंकड़ा 12 फ़ीसदी रहा और अमरीका में तकरबीन 5.5 फ़ीसदी. यही नहीं लगातार 45 महीने से भारत के एविएशन सेक्टर की ग्रोथ दहाई के आंकड़े में है.
एयरलाइंस भी इस ग्रोथ स्टोरी में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और जेट एयरवेज़ की ही बात करें तो उसकी योजना अगले एक दशक में 225 नए बोइंग 737 विमान ख़रीदने की है.
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इंडिगो की 40 नए प्लेन ख़रीदने की योजना है, जिसमें 25 एयरबस होंगी. इसी तरह स्पाइसजेट भी 10 बोइंग विमान अपने बेड़े में शामिल करने की तैयारी में है.
तो एक तरफ तो एविएशन सेक्टर की ग्रोथ की कहानी है दूसरी तरफ़ एयरलाइंस हैं कि घाटे पर घाटा दिखा रही हैं, क्यों?
जेट एयरवेज़ ने पिछले साल की आख़िरी तिमाही में 1000 करोड़ रुपए से अधिक का घाटा दिखाया. इंडिगो का इस साल अप्रैल-जून तिमाही का मुनाफ़ा पिछले साल के मुक़ाबले 97 फ़ीसदी गिर गया.
दरअसल, एयरलाइंस को घाटे की तीन प्रमुख वजहें गिनाई जा रही हैं.
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पहली- कच्चे तेल के बढ़ते दाम
पिछले छह महीनों में ब्रेंट क्रूड के दामों में 16 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. विमानों में इस्तेमाल होने वाला ईंधन एविएशन टर्बाइन फ्यूल यानी एटीएफ का एयरलाइंस संचालन की लागत में बड़ा हिस्सा होता है. एक्सपर्ट का कहना है कि ऑपरेशनल कॉस्ट में एटीएफ का हिस्सा तकरीबन 45 फ़ीसदी होता है.
दूसरा- कमज़ोर रुपया
डॉलर के मुक़ाबले रुपए में कमज़ोरी जारी है और रुपया अपने ऑल टाइम लो के आस-पास है. ऐसे में एयरलाइंस पर और अधिक दबाव बन गया है.
तीसरा- तगड़ी प्रतियोगिता
एविएशन सेक्टर में अपना हिस्सा बनाए रखने के लिए एयरलाइंस सस्ते टिकटों की स्कीम निकालती रहती हैं. कंपनियाँ रेस में बने रहने के लिए ग्राहकों को सस्ते टिकटों के ऑफर देती हैं. इसका असर भी कंपनी के मुनाफ़े पर पड़ता है.
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जेट की परेशानी ये भी है कि अपनी कुल क्षमता का पाँचवां हिस्सा उसे गल्फ़ रूट्स पर मिलता है, लेकिन यहाँ भी ग्रोथ में सुस्ती है और घरेलू बाज़ार में भी उसका हिस्सा सिकुड़ रहा है. विमानों की मरम्मत का ख़र्च बढ़ रहा है. लैंडिंग और नेविगेशन लागत में भी बढ़ोतरी हुई है.
हालाँकि, उड्डयन क्षेत्र की सलाहकार संस्था सेंटर फ़ॉर एशिया पैसेफिक एविएशन यानी कापा का कहना है कि एयरलाइंस के लिए मध्यम अवधि में हालात बेशक मुश्किल हैं.
पिछले हफ्ते जारी हुई कापा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, "भारतीय एयरलाइंस ईंधन की क़ीमतों पर कुछ ज़्यादा ही आश्रित हैं और ज़ाहिर है कच्चे तेल की क़ीमतें अंतरराष्ट्रीय फैक्टर्स पर निर्भर हैं."
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