Champions of the Earth : मां-बाप से बिछड़ी 5 साल की बच्ची, बड़ी होकर बना डाली दुनिया की 'सबसे बड़ी कॉलोनी'
Champions of the Earth का अवॉर्ड जीतने के लिए रिकॉर्ड संख्या में आवेदन भेजे गए। दुनियाभर के ऐसे 2200 से अधिक आवेदकों में भारत की Dr Purnima Devi Barman किसी परिचय की मोहताज नहीं। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने शायद ऐसी हस्तियों की कल्पना में ही लिखा होगा;
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
दरअसल, पूर्वोत्तर भारत में रहने वालीं पूर्णिमा देवी बर्मन को जब UNEP की तरफ से संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान दिया गया तो जिज्ञासा स्वाभाविक थी कि पूर्णिमा के किन प्रयासों के लिए उन्हें वैश्विक मंच पर सम्मान मिला है। पांच साल की कच्ची उम्र में माता-पिता और परिवार से बिछड़ने के बाद कैसे पूर्णिमा पक्षी प्रेमी बन गईं, ये जानना रोचक है। कैसे उन्होंने 10 हजार से अधिक महिलाओं को एकजुट किया और दुर्लभ सारस के संरक्षण के लिए Hargila Army बनाई। कैसे इनके प्रयासों से भारत में बना दुनिया का सबसे बड़ा सारस प्रजनन कॉलोनी ? जानिए इन सवालों के जवाब- (सभी तस्वीरें फेसबुक वॉल () से साभार)
पक्षियों के प्रति संवेदना
बचपन में मां-बाप का लाड़-प्यार नहीं मिला, लेकिन करुणा और संवेदना इनके व्यक्तित्व का हिस्सा है। ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे दादी के साथ रहते-रहते पक्षियों से प्रेम होने के बाद Dr Purnima Devi Barman ने अपना पूरा जीवन पक्षियों को समर्पित कर दिया। इसी का नतीजा है कि उन्हें आज सबसे बड़ा पर्यावरण सम्मान मिला है। पूर्णिमा के प्रयासों से तिरंगा एक बार फिर बुलंदियों को छू रहा है। असम की पक्षी प्रेमी पूर्णिमा की उपलब्धि पर पूरे देश को नाज है।
वेटलैंड का महत्व बताती हैं
पूर्णिमा आर्द्रभूमि को नुकसान पहुंचाने पर पक्षियों की प्रजातियों पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को उजागर करती हैं। वे बताती हैं कि वेटलैंड खत्म होने पर ऐसी जमीन पर फीड और प्रजनन करने वाली प्रजातियां खतरे में पड़ जाती हैं। पूर्णिमा पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और इन्हें दोबारा बहाल करने के महत्व की याद दिलाती हैं।
स्थानीय लोगों की धारणा बदलने की पहल
यूएनईपी वेबसाइट पर जानकारी के अनुसार, सारस की रक्षा की पहल करने पर पूर्णिमा बर्मन जानती थीं कि ऐसा करने के लिए उन्हें पक्षी के प्रति लोगों की धारणा बदलनी होगी। असमिया भाषा में स्थानीय लोग सारस को "हर्गिला" के रूप में जाते हैं। जिसका अर्थ है "हड्डी निगलने वाला।" उन्होंने गांव की महिलाओं के एक समूह को मदद के लिए एकजुट किया।
सारस की गोद भराई !
पूर्णिमा के प्रयासों का नतीजा है कि आज "हरगिला सेना" में 10,000 से अधिक महिलाएं हैं। उन्होंने बताया कि Hargila Army सारस के घोंसला बनाने और शिकार करने वाली जगहों की रक्षा करती है। घायल सारसों का पुनर्वास किया जाता है। ऐसे पक्षी जो अपने घोंसलों से गिर जाते हैं उनकी देखभाल की जाती है। नवजात चूजों के आगमन का जश्न मनाने के लिए "गोद भराई" की व्यवस्था भी की जाती है।
असम में दुनिया की सबसे बड़ी प्रजनन कॉलोनी
Greater Adjutant Stork की बातें असमिया लोक गीतों, कविताओं, त्योहारों और नाटकों में नियमित रूप से होती हैं। यूएनईपी ने कहा कि जब से बर्मन ने अपना संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया है, कामरूप जिले के दादरा, पचरिया और सिंगिमारी के गांवों में घोंसलों की संख्या 28 से बढ़कर 250 से अधिक हो गई है। इन कोशिशों का ही कमाल है कि ये इलाका दुनिया में ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क (सारस की एक प्रजाति) की सबसे बड़ी प्रजनन कॉलोनी बन गई है।
प्रजनन के खास प्रयास किए गए
आज से करीब पांच साल पहले, 2017 में, डॉ पूर्णिमा देवी बर्मन ने लुप्तप्राय पक्षियों के लिए लंबे बांस के घोंसले के प्लेटफॉर्म का निर्माण शुरू किया। उसके प्रयासों को कुछ साल बाद पुरस्कृत किया गया। इन प्रायोगिक प्लेटफार्मों पर पहली बड़ी एडजुटेंट स्टॉर्क चूजों का प्रजनन हुआ क्योंकि इसे पक्षियों के लिए कुछ इस तरह तैयार किया गया था जिससे वे अंडे से सकें। UNEP अवॉर्ड के बाद उन्होंने इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए आभार प्रकट किया।
नीचे देखें डॉ पूर्णिमा की इंस्टा पोस्ट--
अगली पीढ़ी को प्रेरित करने की उम्मीद
यूएनईपी के मुताबिक पूर्णिमा बर्मन बताती हैं कि उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है हरगिला आर्मी के सदस्यों में गर्व की भावना का संचार। पूर्णिमा को उम्मीद है कि उनकी सफलता अगली पीढ़ी के संरक्षणवादियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। पक्षियों से प्रेम करने वाले लोग संरक्षण के सपनों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
17 साल पहले हुई शुरुआत
बकौल पूर्णिमा, "एक पुरुष प्रधान समाज में संरक्षण के काम में जुटी महिला के सामने अक्सर चुनौतीपूर्ण हालात पैदा होते हैं, लेकिन हरगिला आर्मी ने दिखाया है कि महिलाएं कैसे बदलाव ला सकती हैं।" यूएनईपी ने कहा कि 2005 में चैंपियंस ऑफ़ द अर्थ अवार्ड की स्थापना के बाद से कई लोगों को वार्षिक चैंपियंस ऑफ़ द अर्थ अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। यह संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान है। ऐसे लोगों में प्राकृतिक दुनिया की रक्षा के प्रयासों में सबसे उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले अग्रणी लोगों (Trailblazers) को सम्मानित किया जाता है।
अवॉर्ड के लिए रिकॉर्ड संख्या में नामांकन
इस साल के अवॉर्ड के बारे में UNEP ने बताया कि 111 पुरस्कार विजेताओं को अवॉर्ड मिलेगा। 26 विश्व नेता, 69 व्यक्तियों और 16 संगठनों को पुरस्कार के लिए चुना गया है। इस साल दुनिया भर से रिकॉर्ड 2,200 नामांकन प्राप्त हुए थे। अवॉर्ड जीतने वाले अन्य लोगों में आर्सेनसील (लेबनान); कॉन्स्टेंटिनो (टीनो) औक्का चुटस (पेरू); यूनाइटेड किंगडम के सर पार्थ दासगुप्ता और सेसिल बिबियाने नदजेबेट (कैमरून) के नाम शामिल हैं।