रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर केंद्र ने दी अच्छी खबर, आज से 1.5 लाख वाइल का उत्पादन शुरू
नई दिल्ली, 18 अप्रैल: कोविड के इलाज में काम आने वाली रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत दूर करने के मोर्चे पर केंद्र सरकार ने बहुत बड़ी बात कही है। केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा है कि देश में रेमडेसिविर इंजेक्शन के उत्पादन में तेजी आए और इसकी कीमतें कम हों, इसके लिए भारत सरकार लगातार कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा है कि आज से इस दवा की 1.5 लाख वाइल का प्रतिदिन उत्पादन शुरू हो गया है और आने वाले 15 दिनों में इसका उत्पादन बढ़कर रोजाना 3 लाख वाइल हो जाएगा। इसके लिए इसके 20 प्लांट बढ़ाने की भी मंजूरी दी गई है, जिससे यह मौजूदा 20 प्लांट से दोगुनी हो जाएगी। उन्होंने कहा है कि सरकार ने रेमडेसिविर की कीमतें कम करने के लिए भी सभी कंपनियों से बातचीत की है, जिसकी वजह से सभी कंपनियों ने अपनी कीमतें घटा दी हैं। यही वजह है कि कल तक इसकी खुदरा कीमतें जो 5,000 रुपये या उससे भी ज्यादा थी, अब वह घटकर 3,500 रुपये से भी कम हो गई है।
899
रुपये
तक
हो
गई
कीमत
गौरतलब
है
कि
रेमडेसिविर
इंजेक्शन
कोविड
के
उन
मरीजों
के
इलाज
में
काम
आती
है,
जिनकी
स्थिति
गंभीर
होती
है।
देश
के
कई
हिस्सों
से
इसकी
मांग
में
इजाफे
के
बाद
इसकी
जमाखोरी,
कालाबाजारी
और
किल्लत
की
खबरें
आ
रही
थीं,
जिसके
बाद
केंद्र
सरकार
ने
इसमें
पिछले
हफ्ते
दखल
दिया
था।
इसके
चलते
इसकी
100
एमएल
वाइल
के
दाम
2,800
से
5,400
रुपये
से
घटकर
899
से
3,490
रुपये
तक
रह
गई
है।
इसे
बनाने
वाली
7
कंपनियों
ने
महामारी
की
मौजूदा
हालात
को
देखते
हुए
यह
कदम
उठाया
है।
मांग
पूरा
करने
के
लिए
उठाया
कदम
बता
दें
कि
इससे
पहले
केंद्र
सरकार
ने
इसकी
जमाखोरी
और
कालाबाजारी
रोकने
और
सप्लाई
सामान्य
बनाए
रखने
के
लिए
इसकी
निर्यात
पर
रोक
लगा
दी
थी।
इसके
साथ
ही
केंद्र
ने
इन
कंपनियों
को
इसकी
उत्पादन
क्षमता
बढ़ाने
के
लिए
भी
जल्दी
मंजूरी
देने
का
फैसला
उठाया
था,
ताकि
महीने
में
इसके
मौजूदा
उत्पादन
क्षमता
38.80
लाख
वाइल
से
बढ़ाकर
78
लाख
वाइल
के
करीब
किया
जा
सके।
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7
कंपनियों
ने
कम
कर
दिए
हैं
दाम
जिन
कंपनियों
ने
इसकी
कीमतें
घटाई
हैं,
उनमें
कैडिला
हेल्थकेयर,सिप्ला,
डॉक्टर
रेड्डीज
लैबोरेटरीज,
हिट्रो
लैब्स,
जुबिलिएंट
फार्मा,
मायलैन
और
सिंजीन
इंटरनेशनल।
इस
दवा
का
इस्तेमाल
मूल
रूप
से
इबोला
वायरस
के
इलाज
में
होता
था,लेकिन
दुनिया
के
कई
डॉक्टरों
ने
इसे
कोविड
के
गंभीर
मामलों
में
भी
कारगर
माना
है।
हालांकि,
तथ्य
यह
भी
है
कि
विश्व
स्वास्थ्य
संगठन
ने
इसे
कोरोना
के
इलाज
के
लिए
उपयुक्त
नहीं
बताया
है।