Bulandshahr violence: कॉस्टेबल बोला, मैंने साहब को बचाने की कोशिश की, लेकन खुद की जान बचाने के लिए भागना पड़ा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जिस तरह से उग्र भीड़ ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया, उसने एक बार फिर से प्रदेश की योगी सरकार पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। इस घटना के बाद लगातार योगी सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर क्यों प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने में प्रशासन विफल रहा है। सुबोध कुमार सिंह जिस वक्त उग्र भीड़ के बीच फंसे थे वह मंजर काफी भयावह था। घटना के बारे में सुबोध कुमार के ड्राइवर ने बताते हुए कहा कि वह अपने साहब को बचाना चाहता था, लेकिन भीड़ इतनी उग्र थी कि उसकी जान को ही खतरा था।
मैंने बचाने की पूरी कोशिश की
इंस्पेक्टर के ड्राइवर राम आसरे ने बताया कि साहब दीवार के पास बेहोश पड़े हुए थे, मैंने उन्हें उठाया और पुलिस जीप के भीतर लिटाया, लेकिन जैसे ही मैंने जीप चलानी शुरू की तो कुछ आदमियों ने पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी और हमपर गोली चलानी शुरू कर दी। जिस तरह से लोग पत्थर फेंक रहे थे और गोली चला रहे थे, मुझे वहां से अपनी जान को बचाने के लिए भागना पड़ा। आसरे ने यह बयान स्थानीय मीडिया से बात करते हुए दिया है, जिसमे वह कहते हैं कि मैंने अपने साहब को बचाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन मेरी ही जान पर बन पड़ी थी।
खेत से लोग कर रहे थे फायरिंग
राम आसरे ने बताया कि जो लोग हमपर गोलियां चला रहे थे वह गन्ने के खेत में छिपे हुए थे। आपको बता दें कि यूपी पुलिस ने इस बात की पुष्टि की है कि सुबोध कुमार सिंह की मृत्यु उनके सिर में लगी गोली की वजह से हुई है। एक्स रे रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि हुई है। घटना की जांच के लिए योगी सरकार ने एसआईटी का गठन किया है, जोकि इस मामले की जांच करके अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगी। साथ ही योगी सरकार ने सुबोध कुमार सिंह के परिवार वालों को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी ऐलान किया है।
लोगों को भड़काया गया
राम आसरे ने बताया लोगों ने हमपर दोबारा हमला किया था और वह लोगों को हमारे खिलाफ भड़का रहे थे, हमे गालियां दे रहे थे। ये लोगों को हमारे खिलाफ भड़का रहे थे और हमपर हमला करने के लिए कह रहे थे। आसरे ने बताया कि हालांकि इस दौरान कुछ स्थानीय लोगों ने हमारी मदद की ताकि हम घायल पुलिस इंस्पेक्टर को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचा सके। मेरे साथ घटनास्थल पर मेरे दो और सहयोगी थे, बिरेंद्र सिंह और सुभाष भी थे।
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